- ट्रॉमा सेंटर की पैथोलॉजी में चल रहा जांच के नाम पर खेल

- हेपेटाइटिस के मरीज को बता दिया कोई बीमारी नहीं, शिकायत पर बदली रिपोर्ट

- ट्रॉमा में वसूला जा रहा एचआईवी की जांच का भी चार्ज

sunil.yadav@inext.co.in

LUCKNOW: जगह, ट्रॉमा सेंटर। ख्8 अप्रैल की रात। घड़ी की सूईयां क्क् बजा रही थीं। न्यूरोलॉजी विभाग में भर्ती नवनीत के परिजनों को डॉक्टर्स ने एचआईवी, एचसीवी और एचबीएसएजी जांच के लिए सैम्पल देकर ट्रॉमा भेज दिया। रिपोर्ट दो बजे के बाद मिलनी थी, लेकिन यह क्या? रिपोर्ट देखकर नवनीत के परिजन दंग रह गए। नवनीत को पहले से मालूम था कि उन्हें हेपेटाइटिस बी है। और पीजीआई में इसकी जांच में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। वायरस की डीएनए जांच भी हो चुकी है, लेकिन केजीएमयू में पहुंचने पर रिपोर्ट निगेटिव मिली।

भ् मिनट में बदल गई रिपोर्ट

परिजनों ने जब टेक्नीशियन को इसकी जानकारी दी तो पहले तो उन्होंने कहा कि जांच में निगेटिव आया तो निगेटिव ही होगा। मगर उन लैब टेक्नीशियन में से एक उठा और बोला कि फिर से जांच कर लेता हूं। कूड़े की मेडिकल वेस्ट की टोकरी में पड़े ब्लड के सैम्पल को दोबारा निकाला और अटेंडेंट के सामने ही एक अन्य मरीज की जांच के लिए आई किट में ब्लड डालकर देखा। इस बार उसी मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। इसके बाद टेक्नीनिशयन ने पहली वाली रिपोर्ट में काटकर लिख दिया कि रिपोर्ट पॉजिटिव है। अब आप ही देखिए कि पहले एचआईवी, एचसीवी और एचबीएसएजी की रिपोर्ट कॅन रिएक्टिव थी। अगर पेशेंट के अटेंडेंट शिकायत न करते तो कर्मचारी निगेटिव रिपोर्ट दे देते और उसी आधार पर पेशेंट का इलाज शुरू हो जाता।

नहीं होती जांच

सूत्रों की माने तो ट्रॉमा सेंटर की लैब में ज्यादातर मरीजों की जांच नहीं की जाती। क्योंकि, एचआईवी और हेपेटाइटिस बी के लिए कार्ड से जांच की जाती है। उसकी किट वहीं के मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ती है। यह किट वहां के कर्मचारी अपने पास रख लेते हैं। किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव तो किसी की निगेटिव लिख दी जाती है। जिसकी, पॉजिटिव लिखते हैं उनके आगे यह भी लिख दिया जाता है, 'एलाइजा टेस्ट से कन्फर्म करें.'

गायब हो जाती है किट

शायद यही नवनीत की जांच के साथ भी हुआ होगा। जब अटेंडेंट ने उन्हें हेपेटाइटिस होने की सूचना दी तो उन्होंने सामने जांच की। एक सवाल यह भी कि नवनीत की जांच के लिए जिस दूसरे मरीज की जांच के लिए आई किट का प्रयोग किया गया अब उसकी जांच कैसे होगी? उसकी रिपोर्ट भी इसी तरह हवा में बना दी जाएगी और फेक रिपोर्ट पर ही उसका इलाज डॉक्टर शुरू कर देंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि गलत रिपोर्ट के आधार पर इलाज मिलने पर उसकी जान पर बन आए।

एचआईवी टेस्ट की भी वसूल रहे कीमत

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में एचआईवी की जांच मुफ्त में की जाती है। मगर केजीएमयू के ही ट्रॉमा सेंटर में इसकी कीमत वसूली जा रही है। जांच के लिए क्00 रुपए और किट अलग से खरीद कर देनी पड़ती है। एक ही अस्पताल में एक ही जांच के लिए दो-दो नियम होने के कारण अकसर मरीजों का झगड़ा होता है। यह हाल तब है 'नाको' सभी चिकित्सालयों को भारी भरकम राशि हर माह देता है।

ट्रॉमा में एचआईवी की जांच के लिए रुपए क्यों लिए जाते हैं इसकी जानकारी नहीं है। पेशेंट की तरफ से शिकायत मिलने पर ही जांच की जाएगी।

प्रो। एससी तिवारी

सीएमएस, केजीएमयू।