-एचआईवी को खत्म करने में मददगार बैक्टीरिया की पहचान की

-केजीएमयू ने अब तक कराई 39 जोड़ों की शादी

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LUCKNOW: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी नई दिल्ली के साझा प्रयास से ऐसे बैक्टीरिया की पहचान कर ली गई है जो एचआईवी वायरस को खत्म करने में अहम रोल अदा करते हैं। डॉक्टर्स को उम्मीद है कि सभी परीक्षण सफल रहे तो आने वाले समय में इनकी मदद से एचआईवी को पूरी तरह खत्म किया जा सकेगा। एचआईवी से परेशान पूरी दुनिया के लिए यह उम्मीद की किरण साबित हो सकती है।

बैक्टीरिया की हुई पहचान

केजीएमयू के डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि ऐसे बैक्टीरिया की पहचान की गई है जो बैक्टीरिया को मारने में सहायक साबित हो सकते हैं। अब बेहतर दवाएं मौजूद हैं फिर भी एचआईवी वायरस खत्म नहीं होता। दरअसल, यह वायरस इम्यून सेल्स में छिप जाता है। कुछ ऐसे बैक्टीरिया पहचाने गए हैं जो इस वायरस को इम्यून सेल से बाहर लाने में मदद करते हैं। दवा देकर इन वायरस को खत्म किया जा सकता है। अभी जानवरों पर इसका परीक्षण किया गया है और रिजल्ट बहुत उत्साहजनक आए हैं। इस पर आगे रिसर्च के लिए सरकार ने प्रोजेक्ट स्वीकृत किए हैं।

एचआई मरीजों में भूलने की दिक्कत

डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि एचआईवी से ग्रसित बच्चों के शोध में पाया गया है कि उनमें पैथोजेनिक बैक्टीरिया (हानिकारक) बढ़ रहे हैं। यह बैक्टीरिया एजिंग और इम्युनिटी की प्रासेस तक बदल दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि केजीएमयू में हुए एक अन्य शोध में पाया गया है कि एचआईवी के करीब 70 फीसद मरीजों में भूलने की बीमारी (डिमेंशिया) की समस्या हो रही है। करीब 20 फीसद में यह सीवियर कंडीशन में हैं। वे अपनी रोजमर्रा की चीजें और रिश्तेदारों तक को भूल जाते हैं इसलिए एचआईवी मरीजों को सपोर्ट दें।

एआरटी सेंटर से एड्स संग टीबी की दवा-- डॉ। डी हिमांशु की फोटो

डॉ। डी हिमांशु ने बताया कि करीब 70 फीसद एचआईवी रोगियों को टीबी की समस्या हो रही है। ये मरीज तभी पकड़ में आते हैं जब टीबी का इलाज शुरू किया जाता है और उसके बाद उनकी एचआईवी की जांच की जाती है। एचआईवी मरीजों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण टीबी की बीमारी जल्दी हो जाती है। अब इन मरीजों में दोनों ही बीमारियों की दवा चलानी आवश्यक है इसलिए तय किया गया है कि एआरटी (एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी) सेंटर से ही टीबी और एचआईवी दोनों ही दवाएं दी जाएंगी। किसी मरीज को यदि टीबी की बीमारी है तो उसे एचआईवी की भी जांच करा लेनी चाहिए। एआरटी सेंटर में दवा लेने के लिए मरीज को आने जाने के लिए 100 रुपए और टीबी के मरीज को 500 रुपए का प्रोत्साहन भत्ता भी दिया जाता है।

केजीएमयू ने कराई 39 जोड़ों की कराई शादी

एआरटी सेंटर में परामर्शदाता डॉ। सौरभ पालीवाल ने बताया कि एचआईवी या एड्स होने पर जिंदगी खत्म नहीं हो जाती है। इसके साथ भी जिंदगी खुशहाल हो सकती है। केजीएमयू के एआरटी सेंटर में मरीजों की जिंदगी सुधारने के लिए 2006 में प्रयास शुरु किया गया और अब तक 39 जोड़ों की शादी कराई जा चुकी है। डॉ। सौरभ ने बताया कि शादी केयरिंग सपोर्ट के लिए होती है, जिसका 90 फीसद रोल रहता है। जिसके आधार पर जिंदगी चलती है। एचआईवी पॉजिटिव शादी करता है तो इमोशनल सपोर्ट दे सकता है इसलिए यह प्रोग्राम चलाया गया। हम सिर्फ जरिया हैं, जिससे मरीजों की जिंदगी बेहतर हो सके। शादी होने के बाद मरीज अब दूसरों की मदद कर रहे हैं।