कुआं और तालाब में खजाना!
राजमहल में एक मान्यता आज भी लोगों को दीवाना बना देती है। इसके अनुसार हीरे-मोती से जड़े सोने के नेकलेस, कुंदन का मंगटीका, सोने की हार, मोतियों की माला जैसे अमूल्य रत्नों से भरा राजमहल की रानियों का शाही खजाना शाह शुजा के किले में बने कुएं में दफन है। ये मान्यता राजमहल में बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। सच तो ये है कि राजमहल क्षेत्र अपने नाम के अनुरूप ही कई खजानों को छिपाए हुए है। इनमें मैना बीवी का वह तालाब भी शामिल है, जिसमें माना जाता है कि सोने की नाव डूबी हुई है। इसी सोने की नाव से मैना बीवी उस तालाब में स्नान करने जाती थी।

लोग कहते हैं खजाना है यहां
कंजरवेशन एक्सपर्ट और इंटैक के एक्स कन्वेनर श्रीदेव सिंह ने बताया कि वे हाल में ही राजमहल का दौरा करके आए हैं। यहां के लोग कहते हैं कि साहेबगंज जिले के राजमहल क्षेत्र में स्थित शाह शुजा के महल में एक 80 फीट गहरा कुआं है। जब औरंगजेब ने शाह शुजा के किले पर अटैक किया था, तो किले के शाही खजाने और महल में रह रही जनानियों के गहने लूट से बचाने के लिए इसी कुएं में डाल दिए गए थे। उनका मानना था कि कुएं में इतनी गहराई है कि इसमें डाल गया खजाना दुश्मन कभी नहीं निकाल पाएंगे और यह खजाना शाह शुजा के किले में ही सिमट कर रह जाएगा। किंवदंती है कि ये खजाना अभी भी उसी कुएं में है। इस कुएं में इतना पानी है कि इसके पानी का इस्तेमाल ब्रिटिशर्स स्टीम इंजन में पानी भरने के लिए किया करते थे। अभी भी उस कुएं में जमीन से आठ फीट नीचे पानी है। आज तक  खजाना निकालने की कोई कोशिश नहीं हुई है।

सोने की नाव डूबी है यहां
राजमहल में ही एक मैना बीवी का तालाब है, जिसके बारे में प्रचलित धारणा है कि यहां मुगलकाल में तत्कालीन सूबेदार की मैना  बीवी किले से निकल कर तालाब के बीचों-बीच सोने के नाव से नहाने जाती थी। श्रीदेव सिंह कहते हैं कि वह जब राजमहल गए, तो उन्होंने लोगों को ऐसा कहते पाया। उन्हें लोगों ने बताया कि इस तालाब को आप मामूली नहीं समझें, यही वह तालाब है, जिसमें मैना बीवी सोने की नाव में चढ़कर बीचों बीच नहाने आती थी। जब मैना बीवी नहीं रहीं तो वह सोने की नाव भी इसी तालाब में गुम हो गई।

नाम ही है राजमहल
श्रीदेव सिंह कहते हैं कि राजमहल में खजाना होने की काफी पॉसिबलिटीज हैं। वजह एक तो इसका नाम ही राजमहल है, जिसका मतलब होता है राज्य के सर्वोच्च आदमी का निवास। दूसरे 1579 ईं में अकबर ने राजा मानसिंह को बंगाल की सूबेदारी सौंप दी थी। उस समय इसके अंदर असम, बंगाल, बिहार और उड़ीसा के साथ पूरा झारखंड भी आता था और यहीं बने किले से पूरे बंगाल का नेतृत्व मानसिंह करता था।

मिलता रहा है खजाना
झारखंड की धरती खजाने से खाली नहीं है। इसका प्रमाण जियोलॉजिस्ट डॉ नीतिश प्रियदर्शी देते हैं। वह कहते हैं कि झारखंड गजट में जिक्र आया है कि रांची के आसपास सबसे पहले कुछ गोल्ड क्वाइंस खूंटी के बेलवादाग में पाए गए थे। पहली शताब्दी के माने जानेवाले कुछ सोने के सिक्के 1960 में लोहरदगा के पास मिले थे। कुछ चांदी के सिक्के 1916 में अनगड़ा के पास पाए गए थे। जिन पर दिल्ली के सुल्तान की मुहर थी। करीब 100 चांदी के और 20 सोने के सिक्के मांडर के पास मुंडारी और सरवा गांव के नजदीक मिले थे। वहीं 18 तांबे के सिक्के 1916 में ही गेतलसूद के पास मिले थे.