ं-लूट, हत्या जैसी संगीन घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले दर्ज हुई कमी

-राजधानी में मुठभेड़ की दो घटनाओं के बाद अपराधी दहशत में

LUCKNOW : पुलिस फोर्स भी वही, संख्या भी पहले जितनी लेकिन, राजधानी के क्राइम ग्राफ में भारी गिरावट। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि अपराधी अपने बिलों में दुबक गए। दरअसल, यह चमत्कार यूपी पुलिस के एक्शन में आने भर से हो गया है। राजधानी के दो समेत प्रदेश भर में सात एनकाउंटर्स के बाद अपराधी दहशत में हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर वारदात को अंजाम देने के बाद भागने में नाकाम रहे या फिर पुलिस से मुठभेड़ हो गई तो परलोक पहुंचने में रत्तीभर भी देर नहीं लगेगी। पुलिस का यह एक्शनमोड आम लोगों को भी खूब भा रहा है। सोशल मीडिया हो या फिर आम चर्चा, हर कोई पुलिस के इस एक्शन मोड की तारीफ करते नहीं थक रहा।

घटती जा रही वारदातें

राजधानी में बाइकर्स द्वारा लूटपाट की घटनाएं पुलिस के लिये सबसे बड़ी समस्या बनी हुई थीं। यह समस्या ट्रांसगोमती इलाके में सबसे ज्यादा विकराल थी। हालांकि, पुलिस को 'एक्शन' मोड में देख लुटेरे बैकफुट पर आ गए हैं। अगर पिछले तीन साल के जून से लेकर अगस्त तक के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि लूट व छिनैती की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 50 परसेंट की कमी आई है। हत्या की वारदातों में कमी तो आई लेकिन, जो भी वारदातें हुई उनमें से अधिकांश को किसी अपराधी ने नहीं बल्कि, मृतक के करीबी ने ही मौत के घाट उतारा। चोरी व नकबजनी की घटनाएं भी पहले के मुकाबले खासी कम हो गई। दहशत का आलम यह है कि छुटभैये अपराधियों ने भी मानो फिलहाल कुछ दिन घर में बैठने में ही भलाई समझ ली है।

बॉक्सफोटो लगाएं विक्रम सिंह की।

इकबाल बढ़ाने के लिये फ्री हैंड जरूरी

प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं कि जब अपराधियों को सत्ता का संरक्षण मिलता है तो पुलिस डिफेंसिव मोड में आ जाती है। नतीजतन, पुलिस का इकबाल खत्म हो जाता है और पुलिस चाहकर भी अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाती। ऐसी ही स्थिति में थाने व चौकियों पर तोड़फोड़ व आगजनी की घटनाएं होती हैं और गाहे-बगाहे पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट भी होती है। वहीं, इसके ठीक उलट जब पुलिस को अपराधियों को काबू में करने के लिये फ्री हैंड मिलता है तो पुलिस का इकबाल बुलंद होता है। ऐसी स्थिति में नतीजा क्या होता है वह सबके सामने है। न सिर्फ अपराधी अपराध करने से खौफ खाते हैं बल्कि, उन्हें हर पल डर सताता है कि अगर पुलिस से भिड़ने की कोशिश की तो उन्हें उसी भाषा में जवाब मिलेगा।

बॉक्स।

कब कितनी घटनाएं

वर्ष हत्या लूट चोरी नकबजनी

2015 21 48 42 19

2016 23 52 55 24

2017 16 26 33 10

(आंकड़े जून से अगस्त माह तक के हैं)