खोया मेले का गुरुवार को हो गया समापन
हाथ से बने होली के सामानों को शहरियों ने खूब किया पसंद
vikash.gupta@inext.co.in
ALLAHABAD: ऐसे समय जब रोजगार घट रहे हैं और मध्यम वर्गीय या उससे नीचे के परिवारों में आर्थिक तंगी बढ़ रही है। तब खुद से कुछ सीखकर इनकम कैसे पैदा की जा सकती है? इसका नजारा ग्रामीणों ने कंपनी बाग मेन गेट के सामने स्थित सड़क पर लगाए गए खोया मेले में बखूबी पेश किया। यहां लगाए गए कुल 16 स्टालों में केवल उन ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों के चीजों सामान बेचे गये। जिन्होंने खुद के हाथों से खाने की चीजों को बनाना सीखा। होली के शुभ अवसर पर ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों ने खोया, चिप्स, पापड़, गुजिया, मटरी, कुल्फी, हल्दी, बरी, सेंव इत्यादि चीजों की पेशकश देकर ग्राहकों का दिल जीत लिया। खोया मेले का आयोजन 26 फरवरी से 01 मार्च, गुरुवार तक किया गया।
इन बातों पर करें गौर
जार्जटाऊन स्थित स्वयं सहायता समूह ई पहल ने महिलाओं और पुरुषों को दिया है प्रशिक्षण
जिन ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया गया उनमें कौडि़हार, मऊआइमा, होलागढ़, सोरांव, फुलपुर के लोग हैं शामिल
ई पहल लोगों को पशुपालन का व्यवसाय भी सिखा रही है।
ज्यादा से ज्यादा इस बात पर जोर रहता है कि जो भी चीजें ग्रामीणों द्वारा तैयार की जाएं वे केमिकल फ्री हों।
खोया मेले में आए ग्रामीणों की मेहनत को मुकाम देने के लिए बड़ौदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक एवं नाबार्ड ने भी सहयोग दिया है।
मैं ग्रामीणों को प्रशिक्षण देने का काम कर रहा हूं। जिससे वे अपने पैर पर खड़े हो सकें। आज सभी की पहचान उनके काम से हो रही है।
डॉ। गोपाल कृष्ण, निदेशक ई पहल
मैने मेले में बेसन और खोया का स्टॉल लगाया। यही मेरा व्यवसाय है। इसी से मेरा घर चलता है और बच्चों का पेट भरता है।
सुशीला देवी
मुझे गुजिया, मठरी, खोया, पापड़ आदि बनाना आता है। मेरे ग्राहकों में मेरे द्वारा बनाए गए सामान की बहुत डिमांड है। मैं खुश हूं कि कुछ सीखा और अपने पैर पर खड़ी हूं।
प्रेमा
मुझे चिप्स, पापड़, अचार, शुद्ध घी जैसी चीजें बनानी आती हैं। इसके लिए मुझे बाकायदा प्रशिक्षण दिया गया। आज मैं अपने समूह के साथ इस काम को बढ़ा रही हूं।
शिमला
गांव में लोगों के पास पैसे की काफी दिक्कत है। ऐसे में आज जब देखती हूं कि सभी अपना अपना छोटा समूह बनाकर और लोगों को सीखाने के लिए प्रेरित करते हैं तो अच्छा लगता है।
माधुरी