ड्राइवर्स की नहीं होती चेकिंग, अनटे्रंड चला रहे वाहन
शहर में डेली 25 हजार बच्चे सफर करते हैं बस से

नीरज की जान चली गई। उसे बेलगाम स्कूली बस ने ठोकर मार दी। उसकी स्पॉट डेथ हो गई। घटना बुधवार की है.रूपसपुर में स्कूल बस ने टक्कर मारी और महिला गंभीर रूप से जख्मी हो गई। शहर में लगभग छह सौ स्कूल बसें हैं। इससे डेली करीब 25 हजार बच्चे इससे आते-जाते हैं। ऐसे में इन बसों की रफ्तार रोड पर चलने वाले लोगों के अलावा जो बच्चे इसमें सफर करते हैं, उनके लिए भी डेंजरस है।

तहकीकात भी नहीं होती
स्कूल बसों की बेलगाम रफ्तार की चर्चा हर कोई करता है। बेली रोड पर स्कूल बस से कई एक्सीडेंट की वारदातें हो चुकी हैं। हर बार ड्राइवर्स को लेकर सवाल खड़े किए जाते हैं। पुलिस की ओर से भी कई बार स्कूलों को ड्राइवर्स के बारे में जानकारी देने को कहा गया, लेकिन उसे स्कूलों ने कोई जानकारी नहीं दी। मैक्सिमम स्कूल बसों को तो ऐसे ड्राइवर चलाते हैं, जो अनट्रेंड होते हैं। उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी होता है या नहीं, इसकी भी तहकीकात नहीं होती है।

खटारा वाहनों का होता यूज
जितनी भी बसें स्कूलों में चलती हैं, उनकी कभी चेकिंग नहीं होती। बच्चों के सफर करने के कारण पुलिस और ट्रैफिक पुलिस की ओर से कभी बसों को रोका नहीं जाता। इसमें मैक्सिमम वैसी बसें होती हैं, जो ऑफ रोड हो चुकी होती हैं। यूं कहें खटारा बसों को बच्चों को ढोने में लगा दिया जाता है।

टाइमिंग को लेकर लफड़ा
ऐसी बसों की संख्या भी कम नहीं, जो एक से अधिक स्कूलों के बच्चों को ढोती है। वैसी बसें टाइमिंग पकडऩे को लेकर हमेशा रफ्तार में रहती हैं। एक्सीडेंट का एक बिग फैक्टर यह भी है। हालांकि स्कूल भी इसे समझने को तैयार नहीं होते। पुलिस की ओर से तो बस पर स्कूल का नाम अंकित करना अनिवार्य किया गया है, लेकिन अब भी कई बसें शहर में दौड़ रही हैं, जिन पर स्कूल का नाम नहीं होता।

कार्रवाई नहीं होने से बेपरवाह
अक्सर एक्सीडेंट के ऐसे मामलों में स्कूल बसों पर कोई खास कार्रवाई नहीं होती। इसकी वजह से स्कूल प्रशासन से लेकर बस मालिक तक लापरवाह हो जाते हैं। ड्राइवर्स भी पकड़े नहीं जाते हैं। उनकी रफ्तार बढ़ती ही जाती है। कई बार तो नशे में धुत ड्राइवर पकड़े गए हैं। एक बार तो बेलगाम रफ्तार से बस को चलाते ड्राइवर को तत्कालीन टै्रफिक एसपी शिवदीप लांडे ने अरेस्ट किया था।