गांधी से मिलने के बाद पत्रकार बने था बलराज
युद्धिष्टिर साहनी उर्फ बलराज साहनी का जनम 1 मई 1913 में ब्रिटशि इंडिया के पंजाब प्रांत के रावलपिण्डी में हुआ था। उन्होंने इंग्लशि लिट्रेचर में अपनी मास्टर डिग्री लाहौर यूनिवर्सिटी से की। इसके बाद वो अपने परिवार के व्यापार को संभालने के लिये वापस रावलपिण्डी आ गये। उन्होंने हिन्दी में बैचलर डिग्री भी ले रखी थी। इसके बाद उन्होंने दायावंती साहनी से विवाह कर लिया। 1938 में उन्होंने माहात्मा गांधी के साथ मिलकर काम किया। गांधी जी से मिलने के बाद वो बीबीसी लंदन हिंदी को ज्वाइन करने इंग्लैंड चले गये। फिल्म वक्त में उन्होंने दो मशहूर डायलॉग लिखे। पहला था वक्त ही सब कुछ है, वक्त ही बनाता है और वक्त ही बिगाड़ता है। दूसरा किस्मत हथेली में नहीं, इंसान के बाजुओं में होती है।
क्रांतिकारी,पत्रकार फिर कलाकार बने बलराज साहनी का सफर,जिनकी किस्‍मत हथेलियों में नहीं बाजुओं में थी
बलराज साहनी ने किया टॉप बॉलीवुड एक्ट्रेस के साथ काम
1943 में वो सब कुछ छोड़ कर फिर से अपने वतन भारत लौट आये। साहनी को शुरुआत से ही एक्टिंग में शौक था। उन्होंने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत इंडियन पीपुल थियेटर के साथ की। 1946 में फिल्म इंसाफ के साथ उन्होंने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों को निर्देशित किया। साहनी की पत्नी दयावंती ने 1947 में बनी फिल्म गुडि़या में लीड एक्ट्रेस का किरदार निभाया। उसी साल पत्नी की मौत के बाद बलराज ने अपनी कजिन संतोष चंडोक से शादी कर ली। साहनी ने पद्मिनी, नूतन, मीरा कुमारी, वैजंतीमाला, नर्गिस जैसी सभी टॉप एक्ट्रेस के साथ कम किया। साहनी को लिखने का बेहद शौक था। उन्होंने हिंदी, अग्रेजी और पंजाबी में कई रचानयें लिखी।
क्रांतिकारी,पत्रकार फिर कलाकार बने बलराज साहनी का सफर,जिनकी किस्‍मत हथेलियों में नहीं बाजुओं में थी
बलराज साहनी ने किया कई देशों का दौरा
1960 में पाकिस्तान दौरे के बाद उन्होंने मेरा पाकिस्तानी सफर नामक एक किताब की भी रचना की। उन्होंने कई देशों की यात्रायें की और उन पर किताबें भी लिखी। जब पर्दे पर वह अपनी दो बीघा जमीन फिल्म में जमीन गंवा चुके मज़दूर, रिक्शा चालक की भूमिका में नजर आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शा चालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। दरअसल पात्रों में पूरी तरह डूब जाना उनकी खूबी थी। यह काबुली वाला, लाजवंती, हकीकत, दो बीघा जमीन, धरती के लाल, गर्म हवा, वक़्त, दो रास्ते सहित उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है।
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