आप लोगों ने छोटा चेतन फिल्म जरूर होगी. कुछ खास था इसमें ! जी हॉं यह फिल्म भारत की पहली 3D मूवी थी, जिसे देखने के लिए लोगों को एक खास तरह का चश्मा लगाना होता था, दर्शकों के बीच इस फिल्म का क्रेज़ चश्में के कारण ही काफी बढ़ गया था.

 यह फिल्म 1984 में रिलीज़ हुई, जिसे 1998 में कुछ अतिरिक्त फुटेज के साथ इसे फिर से रहलीज किया गया, और इस बार भी फिल्म ने जबरदस्त सफलता और प्रशंसा पाई. हालांकि भारत में 3D मूवीज़ नाममात्र की ही बन पाई हैं, लेकिन हॉलीवुड में 3D मूवीज़ का मार्केट काफी बड़ा है. इन फिल्मों को देखने वाले दर्शकों को हमेशा ही यह लगता है कि उन्हे इन फिल्मों को देखने के लिए आखिर चश्मा क्यों लगाना पड़ता है ?  जानना चाहते हैं तो आइये इस पर डीटेल में बात करते हैं.

3D फिल्मों की कैटेगरी में दो प्रकार की फिल्मों का बनाया जाता है, यानि कि एक तो वो फिल्में जिनमें 3D Animation का इस्तेमाल किया गया हो और ऐसी फिल्में पूरी तरह से कंप्यूटर जनरेटेड हों. जैसे cartoon Film, Avatar, Beowulf  आदि. इसके दूसरी तरफ वे फिल्में 3D कहलाती हैं जो वास्तविक शूटिंग के साथ 2D वीडियो के रूप में बनाई जाती हैं. इन फिल्मों को stereoscopic 3D film भी कहा जाता है. ऐसी फिल्में वास्तव में 2D यानि द्विआयामी ही होती हैं लेकिन उन्हे सिनेमा स्क्रीन पर 3D रूप में दिखाने के लिए इस तरह से दो  फ्रेम्स में प्रोसेस किया जाता है कि वीडियो का प्रत्येक सिंगल फ्रेम दो रंगों यानि लाल और हरे / नीले में तकनीकि रूप से बँट जाता है और यह प्रत्येक रंग अलग अलग ऑंख द्वारा देखा जाता है

 जो स्पेशल चश्में digital 3-D glasses के द्वारा दर्शकों को एक साथ मर्ज होकर दिखाई देता है. इससे फिल्म में 3D Depth का जबरदस्त प्रभाव बढ़ जाता है. और देखने वालों को ऐसा आभास होता है कि वे फिल्म की स्क्रीन में ही मौजूद हैं.फिल्म देखने के शौकीनों के लिए यह 3D अनुभव बिल्कुल ही यूनीक है.

इस प्रकार की stereoscopic 3D  फिल्में वास्तविकता में दर्शकों के सामने द्रश्य भ्रम की स्िथति पैदा कर देती हैं जिससे दर्शक फिल्म को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. लेकिन वास्तव में ऐसी 3D फिल्में अपने 3D होने का आभास भर कराती हैं. भले ही उनका निर्माण 3D पर आधारित न रहा हो. पिछले कुछ सालों में हॉलीवुड ने तमाम ऐसी फिल्में लॉन्च कीं जो कि 3D एनीमेशन पर आधारित होने के साथ साथ उनका सिनेमा प्रेसेन्टेशन भी 3D में किया गया. इस प्रकार के 3D प्रस्तुतिकरण  को बेहतर रूप देने में तकनीकि स्तर पर कई और कम्पनियों ने भी काफी काम किया है जिनमें RealD 3D cinema और IMAX  सिनेमा थियेटर्स सबसे आगे गिने जाते हैं. इस प्रकार की stereoscopic 3D film को बनाने के लिए सामान्य फिल्म को काफी तकनीकि और लम्बे व कठिन प्रोसेस से गुज़ारना पड़ता है, इसी कारण काफी संख्या में फिल्म निर्देशक ऐसा करने को लेकर उत्साहित नहीं दिखते हैं. यह ज़रूर जान लें कि कौन सी फिल्म 3D बन पाएगी, और कौन सी नहीं यह इस्तेमाल की गई शूटिंग तकनीकि पर डिपेंड करेगा.

शुरूआत में मैने कुछ फिल्मों के नाम लिए थे. Avatar, Beowulf, The Incredibles, Cars and the Shrek जैसी तमाम फिल्में अपनी शूटिंग के दौरान ही पूरी तरह से 3D Environment में बनी हैं. अवतार और ब्यूल्फ जैसी फिल्में कंप्यूटर जनरेटेड तो थीं  लेकिन उनमें एक विश्ोष टेक्नोलॉजी Motion Capture का भी इस्तेमाल किया तब ही ये फिल्में 3D कैरेक्टर्स को बिल्कुल जीवित बना सकीं. इस विशेष टेक्नोलॉजी में कोई असली कलाकार या एक्टर जब एक्टिंग करता है तो उसके चेहरे पर बहुत सारे सेन्शर्स लगा िदए जाते हैं ताकि उसके सभी मूवमेंट और फेशियल एक्सप्रेशन्स बिल्कुल उसी रूप में रिकॉर्ड किए जा सकें. ये एक्सप्रेशन्स ही बाद में विशेष कम्पोजिटिंग साफ्टवेयर्स के द्वारा एनीमेटेड कैरेक्टर्स पर फिट कर दिए जाते हैं जिससे नकली कैरेक्टर्स बिल्कुल असल एक्टिंग करते नज़र आते हैं.