चीन के ओबीओआर से भारत को क्यों है आपत्ति
चीन के बिजनेस कोरिडोर ओबीओआर को लेकर भारत हमेशा से आपत्ति दर्ज कराता आया है। चीन इस प्रोजेक्ट के तहत पाक अधिकृत कश्मीर से रोड निकालेगा, जिसका भारत ने विरोध किया है। भारत का कहना है यह उसके विवादित क्षेत्र में आता है ऐसे में उसकी अनुमति के बिना चीन यहां सड़क नहीं बना सकता। चीन के लिए भारत की लाल झंडी उसके ड्रीम प्रोजेक्ट पर ग्रहण लगा रही है। दरअसल चीन अपने ओबीओआर प्रोजेक्ट के तहत यूरोपियन देशों में अपने व्यापार को बढ़ाना चाहता है। आपको बता दें कि मई महीने में चीन में OROB का समिट भी आयोजित किया गया था। इसमें 29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस, विश्व बैंक के प्रेसिडेंट जिम योंग किम, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टीन लगार्ड के अलावा 130 देशों के अधिकारी, उद्योगपति, फाइनेंसर और पत्रकारों ने हिस्सा लिया था।

क्या है ओबीओआर
चीन पूर्व से पश्चिम तक सड़क और समुद्र के रास्ते एक ऐसा जाल बिछाने जा रहा है जिससे कि वो पूरी दुनिया पर अपनी धाक जमा सके। इसे वन बेल्ड वन रोड नाम दिया जा रहा है। वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार लाना है। इसमें जमीन के साथ-साथ समुद्री मार्गों को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। यह रास्ता चीन के जियान प्रांत से शुरू होकर, अफ्रीकी देश, रुस, यूरोप को सड़क मार्ग से जोड़ते हुए फिर समुद्र मार्ग के जरिए एथेंस, केन्या, श्रीलंका, म्यामार, जकार्ता, कुआलालंपुर होते हुए जिगंझियांग (चीन) से जुड़ जाएगा। यह नीति चीन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उद्देश्य देश में घरेलू विकास को बढ़ावा देना है। विशेषज्ञों के मुताबिक ओबीओआर आर्थिक कूटनीति के लिहाज से चीन की रणनीति का भी एक हिस्सा है।
जानें चीन के obor के जवाब में क्‍या है भारत का aagc
भारत और जापान ला रहे एएजीसी
भारत और जापान चीन की वन बेल्ट वन रोड की नीति के जवाब में एक नई सिल्क रोड की तैयारी कर चुका है। इसे एएजीसी (एशिया अफ्रीका ग्रोथ कोरिडोर) नाम दिया जा रहा। भारत और जापान के बीच में एएजीसी के तहत अफ्रीका के साथ दक्षिण, पूर्व और पूर्वी एशिया की अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से एकीकृत करने की साझेदार पहल हुई है। इसके तहत भारत, अफ्रीका और अन्य सहयोगी देशों के बंदरगाहों को एक नए रूट से जोड़ा जाएगा। जो सुरक्षित होने के साथ ही फायदा देने वाला होगा। इसके तहत भारत के जामनगर पोर्ट, अफ्रीकी देश दिजिबूती के पोर्ट, मोंबासा, जांजीबार के पोर्ट के साथ ही म्यांमार के सित्तवे पोर्ट को आपस में जोड़ा जाएगा। एएजीसी को ओबीओआर के टक्कर का इसलिए भी माना जा रहा कि चीन भी अपने व्यापार को अफ्रीकी देशों मे बढ़ाना चाह रहा लेकिन वह यूरोपियन देशों से घुमाकर अफ्रीका रूट लाएगा, जबकि भारत सीधे समुद्र के रास्ते से अफ्रीकी महाद्वीप से जुड़ जाएगा।
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ओबीओआर और एएजीसी में क्या है अंतर :

1. ओबीओआर और एएजीसी में सबसे बड़ा अंतर है इसका रूट। चीन का ओबीओआर जमीन पर बनेगा जबकि एएजीसी कोरिडोर समुद्र पर बनेगा।

2. चीन का ओबीओआर पूरी तरह से चीनी सरकार के प्रभुत्व वाली परियोजना है। जिसपर आने वाला पूरा खर्च भी चीनी सरकार उठा रही है। जबकि एएजीसी कोरिडोर पूरी तरह से प्राइवेट कंपनियों के हाथ में है। भारत और जापान के निवेशक इसमें पैसा लगाएंगे। इसकी फंडिंग सरकारों के जिम्मे न होकर अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक जैसी बड़ी संस्थाएं फंड करेंगी।

3. एएजीसी का रूट सीधा और सपाट है। साथ ही यह सुरक्षित, छोटा और सुविधाजनक भी होगा। जबकि ओबीओआर काफी लंबा और अव्यवस्थित रूट है जिसे मैनेज करने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।

4. जापान को बंदरगाह विकसित करने की तकनीकी के मामले में महारत हासिल है। ऐसे में वह एएजीसी कोरिडोर में सभी जरूरी टेक्नोलॉजी मुहैया कराएगा। वहीं भारत अपने अफ्रीका में काम करने के अनुभव का इस्तेमाल करेगा।

5. ओबीओआर कोरिडोर बनाने में चीनी सरकार का करीब 900 अरब डॉलर का खर्चा आएगा। जबकि एएजीसी को बनाने में सिर्फ 40 अरब डॉलर खर्च होंगे।

International News inextlive from World News Desk

 

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