कैसे जायें कैलाश मानसरोवर
यदि आप महाशिवरात्री पर शिव की पावन स्थली कैलाश मानसरोवर का दर्शन करना चाहते हैं तो उत्तराखंड से होकर जाने वाले पुराने रास्ते के अलावा सिक्किम के नाथूला दर्रे से भी यात्रा शुरू कर सकते हैं। ये मार्ग वाहनों के लिए पूरी तरह से योग्य है, जिससे बुजुर्ग और पूरी तरह स्वस्थ ना होने वाले लोग भी आसानी से पहुंच सकते हैं। भारत सरकार के द्वारा उपलब्ध सड़क के रास्ते मानसरोवर की यात्रा में करीब 28 से 30 दिनों का समय लगता है। इसके लिए सीटों की बुकिंग एडवांस भी हो सकती है। एयर रूट के जरिए नेपाल में काठमांडू पहुंचकर वहां से सड़क के रास्ते मानसरोवर तक पहुंचा जा सकता है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुंचकर, वहां से हिलसा तक हेलिकॉप्टर से पहुंचा जा सकता है। काठमांडू से लहासा के लिए ‘चाइना एयर’ एयर सेवा उपलब्ध कराता है, जहां से तिब्बत के विभिन्न कस्बों शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुंचकर मानसरोवर जा सकते हैं।

क्या है कैलाश
हिमालय की पहाड़ियों में स्थित है कैलाश पर्वतमाला जो कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। तिब्बत में स्थित इसके उत्तरी शिखर को कैलाश कहते हैं। यह 2,028 फीट ऊंचा पिरामिड नुमा शिखर है, जो सालभर बर्फ से ढंका रहता है। यहां से ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज समेत कई महत्वपूर्ण नदियां भी निकलती हैं।

महाशिवरात्रि पर देखिए कैलाश की झलक

झील है मानसरोवर
ऐसी मान्यता है कि महाराज मांधाता ने एक पवित्र झील की खोज करके कई सालों तक इसके किनारे तपस्या की थी। ये कैलाश शिखर के पास स्थित है। इसी झील का नाम मानसरोवर रखा गया। बौद्ध धर्मावलंबियों के अनुसार इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों को खाने से सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों का उपचार हो सकता है। ऐसा कहा मानते हैं कैलाश पर्वत और मानसरोवर धरती का केंद्र है। संस्कृत शब्द मानसरोवर शब्द मानस तथा सरोवर को मिला कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है मन का सरोवर।
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शिव का पौराणिक स्थान
विश्वास है कि मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। इस स्थान के पास एक सुन्दर सरोवर रकसताल है। इन दो सरोवरों के उत्तर में कैलाश पर्वत है। जबकि इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यही स्थान कुमाऊं है जिसे उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊंचा है और हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। प्राचीन काल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को बताती हैं कि ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही शिव है। यह स्थान तिब्बती बौद्ध और सभी देशों के बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू धर्म जैसे चार धर्मों का आध्यात्मिक केन्द्र है। कहते हैं कि गुरु नानक ने भी यहां कुछ दिन रुककर ध्यान किया था, इसलिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है।
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कैलाश का इतिहास
यह क्षेत्र को स्वंभू कहलाता है। वैज्ञानिक के अनुसार करीब 10 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप के चारों और पहले समुद्र होता था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यहां पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों के अद्भुत समागम से‘ॐ’ की प्रतिध्वनि आती है। कैलाश पर्वत की तल में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में मान्यता प्राप्त है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह कुबेर की नगरी भी है। यहीं से भगवान विष्णु के हाथों से निकलकर गंगा कैलाश की चोटी पर गिरती है। जहां से शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती पर धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। एक विश्वास के अनुसार कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है। मानसरोवर पहाड़ों से घीरी झील है जिस का पुराणों में 'क्षीर सागर'के नाम से वर्णन मिलता है।
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कठिन है कैलाश की यात्रा
कैलाश में जनजीवन बड़ा कठिन बताया जाता है और माना जाता है कि इस स्थान पर सिर्फ सन्यासी और योगी ही रह सकते हैं या वे जिन्हें इस वातावरण में रहने की आदत है। यहां चारों तरफ ऊंचे बर्फीले पहाड़ हैं। चीन से अनुमति मिलने के बाद नाथुरा दर्रा से यात्रा करने की अनुमति के बाद अब कार द्वारा भी वहां पहुंचा जा सकेगा। फिर भी 10-15 किलोमीटर तक तो पैदल चलना ही होता है। पर कार से जाएं या पैदल यह दुनिया का सबसे दुर्गम और खतरनाक स्थान है। यहां सही सलामत पहुंचना और वापस आना तो शिव के आर्शिवाद पर ही निर्भर करता है। यहां पर ऑक्सीजन की मात्रा भी काफी कम हो जाती है, जिससे सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ आदि परेशानियां हो सकती हैं। साथ ही तापमान शू्न्य से नीचे -2 सेंटीग्रेड तक चला जाता है।

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