राष्‍ट्रपति के साइन करके बेच दिए थे ताजमहल और देश के सभी सांसद और भी हैं ऐसे अनोखे ठग

हर्षद मेहता
हर्षद मेहता एक शेयर ब्रोकर था जो 1991 में बीएसई सेंसेक्स में घपला करके चर्चा में आया। उसने कुल कितने का घपला किया इस बात की सही जानकारी आज तक जांच एजेंसियां नहीं हासिल कर पायी हैं। दरसल बैंकों के पास हर समय एक निश्चित धनराशि होनी चाहिए और प्रति सप्ताह शुक्रवार को कम हो या ज्यादा इस राशि का ब्यौरा उन्हें प्रशासन को देना होता है। यहीं से मेहता का खेल शुरू होता था। वो कम पैसे वाले बैंक के अधिकारियों से संपर्क करके ज्यादा राशि दिलाने का भरोसा देता। उन्हें मदद के नाम पर वो अपने लिए कमीशननुमा एक चेक लेता। ऐसा वो कई बैंकों के साथ करता था। इसके बाद इस पैसे को उसने शेयर बाजार में लगा दिया जिससे एकदम से मार्केट में बूम आया पर फिर कुछ दिनों में मार्केट पूरी तरह बैठ गया। इस खेल में मेहता के तो वारे न्यारे हो गए पर बाकी कई लोगों का दिवाला निकल गया। कहते हैं इस हादसे के बाद विजया बैंक के प्रमुख ने आत्महत्या कर ली और कई और वरिष्ठ बैंक अधिकारियों ने इस्तीफे दे दिए। कई मुकदमें होने के बावजूद मेहता पर कुल 27 दर्ज हुए और उनमें से एक केवल एक मामले में उसे सजा हुई। इसके बावजूद आजतक पता नहीं चला कि उसने कितना पैसा बनाया और वो पैसा कहां है।

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मिथलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ 'नटवरलाल'
जाने कितनी फिल्मों की प्रेणना और ठगी का मास्टर नटवरलाल जिसका असली नाम मिथलेश कुमार श्रीवास्तव था भारत के चंद जाने पहचाने नामों में से एक है। नटवरलाल कोई छोटा मोटा ठग नहीं था बल्कि उसने तो ऐसा कमाल किया कि पूरे खुफिया विभाग का दिमाग घूम कर रह गया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र कुमार के हस्ताक्षर कापी करके उसने देश के राष्ट्रपति भवन से लेकर, संसद भवन ताज महल, लाल किला और 545 सांसद तक बेच डाले और करोड़ों रुपया कमा लिया। वो करीब नौ बार गिरफ्तार हुआ और हर बार फरार हो गया। करीब 97 साल की उम्र में उसकी मौत हुई पर इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है कि वो कब मरा। कुछ की जानकारी के अनुसार उसकी मौत 2009 हुई, लेकिन उसके भाई का कहना है कि वो 1996 में ही आखिरी बार फरार होने के बाद मर गया था।  

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अब्दुल करीम तेलगी
सरकार को चूना लगा कर करोड़ों कमाने वालों में एक बड़ा नाम अब्दुल करीम तेलगी का भी है। उसके नाम से स्टाम्प पेपर स्कैम जुड़ा हुआ है। न्यायालय या राजस्व विभाग में हर बात के लिए स्टाम्प पेपर लगते हैं। पेपर के बिना किसी भी दस्तावेज को सरकारी मान्यता नहीं मिलती। तेलगी ने यही स्टाम्प पेपर छापने का धंधा शुरू किया। चूंकि 10 रुपए के स्टाम्प पेपर और 1,000 रुपए के स्टाम्प पेपर छापने के लिए तकनीक एक ही होती है। इसलिए उसने दक्षिण मुम्बई के फोर्ट इलाके में एक प्रिंटिंग प्रेस में हजारों रुपए मूल्य के स्टाम्प पेपर छापने शुरू कर दिए।ये मशीन वो नासिक स्थित रुपए मुद्रण करने वाली सरकारी प्रेस से नीलामी में खरीद कर लाया था। इसे भी उसने बड़ा जुगाड़ लगा कर बेकार घोषित करवा के हासिल किया। स्टांप पेपर छाप कर उन्हें बेचने के लिए भी तेलगी खासा जुगाड़ किया।नासिक की प्रेस में जिस नम्बर के स्टाम्प पेपर छपते थे, उन्हीं नम्बरों के स्टाम्प तेलगी भी बनाने लगा। जब तक नासिक से असली स्टाम्प पेपर मुम्बई पहुंचते, उससे पहले ही तेलगी के फर्जी स्टाम्प पेपर तैयार होते थे। इसके बाद विभाग के अधिकारियों से मिली भगत कर स्टांप पेपर की कमी दिखा कर तेलगी अपने स्टांप्स बेच लेता और सरकारी स्टांप स्टाक में पड़े रह जाते। जब स्टाम्प पेपर घोटाले में उसे गिरफ्तार किया गया तब उसकी कुल सम्पत्ति निकली 100 करोड़ रुपए। कहते है कि एक बार तेलगी ने 31 दिसम्बर की रात मुम्बई के एक जाने-माने शराबखाने में बार डांसर्स 500 रुपए के नोट फेंकने शुरू किए तो वे नोट उठाते- उठाते थक गयी थीं। उस एक रात में तेलगी ने एक करोड़ रुपए उन पर उछाले थे। फर्जी स्टाम्प पेपर बेचने के लिए तथा पैसों का हिसाब रखने के लिए उसने लगभग 300 बाजार विशेषज्ञ और बिजनेस मैनेजमेंट प्रशिक्षित लोग रखे थे।

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1987 की ओपेरा हाउस डकैती
आप की जानकारी के लिए पहले ही बता दें कि फिल्म स्पेशल 26 इसी कांड पर बनी है। इसे पुलिस इतिहास की सबसे परफेक्ट ठगी माना जाता है, क्योंकि इसके अपराधी मोहन सिंह को आज तक पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी है। फिल्म से हट कर वास्तव में मोहन सिंह ने अकेले ही इस पूरे कांड को अंजाम दिया था उसका कोई साथी नहीं था। मोहन सिंह ने 18 मार्च को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक एड निकाला था जिसमें ‘इंटेलिजेंस अफसर और सिक्योरिटी अफसर’ की पोस्ट के लिए आवश्यकता बतायी गयी थी। उम्मीदवार ताज कॉन्टिनेंटल होटल पहुंचे, जहां उनका इंटरव्यू लिए गया। उनमें से 26 लोगों को सिलेक्ट किया गया। आइडेटिटी कार्ड देकर एक बस में बैठाया गया, जो उन्हें ओपेरा हाउस लेकर गई। वहां सीबीआई का नाम सुनकर लोग इतना डर गए कि किसी ने भी मोहन का विरोध नहीं किया। इसी डर का फायदा उठा कर मोहन सिंह करोड़ों के जेवरात लेकर गायब हो गया।

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2012 का एटीएम मामला
स्मार्ट क्राइम का सबसे शानदार उदाहरण है ये केस। बहुत से लोग जानते हैं कि पहले एटीएम से पैसे निकालने पर अगर पैसा मशीन से बाहर आते ही फौरन ना कलेक्ट किया जाए तो कुछ ही सेकेंड में वो मशीन में वापस चला जाता है और निकाली गयी राशि पुन व्यक्ति के खाते में जमा हो जाती थी। इसमें एक ट्विस्ट ये था कि अगर आपने 10,000 रुपए निकाले और उसमें से 5000 ले लिए और बाकी छोड़ दी तो वापस भले ही पांच हजार जायें पर आपके खाते में पूरे दस हजार ही जमा होते थे। इसी टेक्निकलटी का फायदा इन एटीएम चोरों ने उठाया और कई एटीएम धारकों के नंबर पता करके उनके खातों से पैसे निकलवाये और कुछ रकम उठायी और बाकी छोड़ दी तो खाता धारकों के खातों में तो पूरी रकम जमा हो गयी लेकिन बैंक का पैसा निकल गया। इस कांड का सबसे पहले पता चला जब इन लोगों ने केरल और पंजाब के फेडरल बैंक से 75 लाख रूपए लूट लिए और बैंक को इसकी जानकारी हुई तो उसने पुलिस में रिपोर्ट की। पुलिस ने मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया और तब पता लगा कि विभिन्न बैंको से ये लोग करीब 2 करोड़ रुवया लूट चुके थे। बाद में रिजर्व बैंक के आदेश पर पैसा वापस होने सुविधा एटीएम पर बंद कर दी गयी। 

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1987 की पंजाब नेशनल बैंक डकैती
ये डकैती जितनी बड़ी है उतनी ही हास्यास्पद भी है और आपको लगेगा जरा सा दिमाग लगा कर लोग कितने कमाल कर सकते हैं। क्या ही अच्छा हो अगर ये दिमाग बेहतरी की ओर लगाया जाए। खैर बात डकैती की, 1987 में 12 फरवरी को एक व्यक्ति लाभ सिंह और उसके कुछ साथी पंजाब नेशनल बैंक की ब्रांच में गए और वहां मौजूद सभी ग्राहकों को कर्मचारियों सहित बंदी बना लिया। इसके बाद बेंक का दरवाज़ा बंद करके उन्होंने वहीं से पुलिस को फोन लगा कर इसी बैंक की किसी दूसरी शाखा में डकैती पड़ने की खबर दी। इसके चलते वहां मौजूद पूरी पुलिस फ़ोर्स उस शाखा की ओर रवाना हो गयी और यहां लाभ सिंह और उसके साथी आराम से बैंक लूट कर चलते बने।

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