सादगी पसंद प्रणब दा की पहचान है धोती-कुर्ता पसंद , वैसे वे बंद गले का प्रिंस सूट खूब पहनते हैं. पाइप पीने के खास शौकीन प्रणब दा को वैसे गुस्सा भी खूब आता है. तो आइए जानते हैं दादा के बारे में बहुत कुछ-

दादा की पहचान हमेशा उनके चश्मे से होती है. उन्हें राजनीति की किताब का खुला पन्ना भी कहा जाता है. चश्मे के भीतर चमकती उनकी आंखों ने हिंदुस्तान की राजनीति के पांच दशकों का इतिहास देखा है. वे पांच दशकों की इंडियन पॉलिटिक्स के विकिपीडिया है. सियासी गलियारों में लोग उन्हें दादा कहते हैं. उनका एक नाम कांग्रेस का संकटमोचक भी है.

पश्चिम बंगाल में वीरभूम जिले के किरनाहर के पास 11 दिसम्बर 1935 को प्रणब मुखर्जी का जन्म हुआ. उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी थे, एक पुराने कांग्रेसी. प्रणब दा ने कोलकाता यूनिवर्सिटी से इतिहास, पॉलिटिकल साइंस में एमए और लॉ की डिग्री लेने के बाद टीचर बन गए. फिर कुछ दिनों तक वकालत की. 60 के दशक में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1969 में राज्यसभा पहुंच गए.

पॉलिटिक्स में बेहद एक्टिव रहने की वजह से उन्हें जल्दी ही दिल्ली में जगह मिल गई. वे 1973 में पहली बार केंद्रीय औद्योगिक विकास विभाग के मंत्री बने. इसके बाद तो उन्होंने पीछे देखा ही नहीं. 1982 में वे देश के वित्त मंत्री बने.

बजट नहीं,दादा को जानिए

इंदिरा के भरोसेमंद

इंदिरा गांधी प्रणब मुखर्जी पर बहुत भरोसा करती थीं, वो इंदिरा गाधी के सबसे करीबी नेताओं में शामिल थे, लेकिन जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो प्रणब दा का ऊंचा कद कांग्रेस में ही कई लोगों को रास नहीं आया. हालात कुछ ऐसे बने कि दादा को कांग्रेस से बाहर भी होना पड़ा.

उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से अपनी पार्टी बनाई, लेकिन 1989 में  राजीव गांधी के मनाने पर दादा फिर कांग्रेस में लौट आए. राजीव गांधी की मौत के बाद प्रणब दादा देश के प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे, लेकिन समीकरण कुछ ऐसे बैठे कि पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री बन गए.

पी.वी. नरसिंह राव ने 1995 में प्रणब दादा को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी दी. 2004 की यूपीए सरकार में प्रणब दा को रक्षा मंत्री का जिम्मा मिला. फिर 24 जनवरी 2009 को प्रणब मुखर्जी दूसरी बार देश के वित्त मंत्री बने. लंदन की मैगजिन इमर्जिंग  मार्केट्स ने प्रणब मुखर्जी को 2010 में एशिया के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के तौर पर शुमार किया.

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