सैनिकों व शहीदों को सम्मान

देश में 7 दिसंबर का दिन सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद साफ है कि इसके जरिए शहीदों और देश के सम्मान की रक्षा के सीमाओं पर लड़ने वाले सैनिकों को सम्मान देना है।

7 दिसंबर 1949 से शुरू

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर लाल, गहरे नीले और हल्के नीले रंग के रंग के झंडे देश की तीनों सेवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस खास दिन को मनाए जाने की  शुरुआत देश में 7 दिसंबर 1949 को हुई थी।

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10 लाख रुपये तक दान

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर लोगों को छोटे-छोटे झंडे दिए जाते हैं और इसके बदले में डोनेशन यानी कि दान लिया जाता है। दान की रकम कोई निश्चित नहीं है। यह 1 रुपये से लेकर 10 लाख तक भी हो सकती है।

रकम कल्याण में खर्च होती

यह रकम देश के जवानों के अलावा उनके परिजनों के लिए भी मददगार होती है। यह जमा रकम दिव्यांग हुए सैनिकों, युद्ध में शहीदों की विधवा और उनके परिवार-बच्चों के कल्याण में खर्च की जाती है।

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बड़ी रकम की जरूरत पड़ी

1947 में देश आजाद होने के बाद सरकार को सैनिकों के रखरखाव के लिए बड़ी रकम की जरूरत आन पड़ी थी। इसके लिए गहन विचार कर 28 अगस्त 1949 को रक्षा मंत्री के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई।

सशस्त्र बल झंडा दिवस कोष

कमेटी ने इस खास मौके पर 7 दिसंबर को झंडा दिवस मनाने जानें का ऐलान किया। वहीं इसके बाद 1993 में सशस्त्र बल झंडा दिवस कोष की स्थापना हुई। इस कोष में ही दान की रकम जमा की जाती है।

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