साधना क्या है? साधना साध शब्द से बना है, जिसका अर्थ है, सफलता पाने के लिए मनुष्य द्वारा लगातार प्रयास करना। इसके बाद उसे कर्म में सफलता मिलती है, तो उसे साधना कहते हैं। आध्यात्मिक साधना में जब मनुष्य मन को एकाग्र कर ईश्वर के साथ एकात्म होने के लिए जो लगातार प्रयास करता है, वही साधना है। तब सेवा क्या है? जब कोई दूसरों की सेवा नि:स्वार्थ भाव से करता है और इस तरह की सेवा के बदले में पाने की कुछ भी इच्छा नहीं रखता है, तो यही सच्ची सेवा है। दूसरे की भलाई के उद्देश्य से जब कोई कुछ छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है, तो उसे त्याग कहते हैं।

एक विदुषी राजकुमारी ने राजपुत्र को कुछ इस तरह से एक कहानी सुनाई : एक बार एक राजकुमारी स्नान कर के लौट रही थी। रास्ते में एक कुष्ठ रोगी से उसकी भेंट हो गई। रोगी ने कहा, 'मेरी प्रार्थना है कि आप मेरी पद सेवा कर मुझे कुछ क्षणों के लिए सुख दें। पहले तो राजकुमारी चौंकी, लेकिन बाद में अपनी उदारता का परिचय देती हुई बोली-मेरी शादी एक राजकुमार से तय हुई है। पहले मैं उनसे आज्ञा लूंगी, तब आपके प्रश्नों का उत्तर दूंगी, क्योंकि मैं वचन नहीं तोड़ सकती। रोगी राजी हो गया।

राजकुमारी की शादी जिस राजकुमार से तय थी, उससे एक दिन राजकुमारी ने उस कुष्ठरोगी की बात कही। राजकुमार बोला- ठीक है, आप उसकी पद सेवा कर सकती हैं, क्योंकि वचन निभाना सभी का कर्तव्य होता है। राजकुमारी चल पड़ी। कुछ दूर चलने पर रास्ते में एक चोर मिला। राजकुमारी को आभूषणों से लदा देखते ही उसकी चौर्य वृत्ति जाग्रत हो उठी। वह चिल्लाकर बोला- राजकुमारी, रुक जाओ। मुझे गहने उतारकर दे दो। राजकुमारी ने कहा कि आवश्यक कार्य करने के बाद वह गहने दे देगी। चोर मान गया। कुछ दूर चलने के बाद एक बाघ मिला। राजकुमारी को देखकर उसकी क्षुधा जाग्रत हो गई। उसने भी राजकुमारी को खाकर अपनी भूख मिटाने की इच्छा जाहिर की। राजकुमारी ने उसे भी थोड़ी देर बाद आने की बात कही।

जब राजकुमारी कुष्ठरोगी के पास पहुंची, तो वह उसे देखकर भावुक हो गया। उसने राजकुमारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उसे घर चले जाने को कहा। रास्ते में क्रम से जब बाघ और चोर मिले, तो राजकुमारी ने उन दोनों से अपने कर्तव्य पूरे करने की बात कही। दोनों ने उसकी वचनबद्धता को देखकर न उसे खाया और न ही उसके गहने लिए। राजकुमारी घर लौट गई। अब विदुषी राजकुमारी ने पूछा-बताओ इन तीनों में किसका त्याग सर्वोपरि है।

राजपुत्र ने उत्तर दिया- संसार में इज्जत बहुत बड़ी चीज है। सबसे बड़ा त्याग राजकुमार ने किया, जिसने कर्तव्य की पुकार पर राजकुमारी को उस रोगी के पास जाने की आज्ञा दी। अब मंत्री-पुत्र ने कहा-सबसे बड़ा त्यागी तो बाघ है, जिसने क्षुधाग्नि से दग्ध होने के बावजूद राजकुमारी को जाने दिया। इसके बाद सेनापति-पुत्र ने जवाब दिया-इसमें सबसे बड़ा त्याग उस चोर का है, क्योंकि आसानी से प्राप्त आभूषणों का त्याग उसने कर दिया। इसलिए मनुष्य के जीवन में त्याग, सेवा और साधना बहुत बड़ी चीज है, जो मनुष्य को महान बनाता है।

प्रस्तुति: दिव्यचेतनानन्द अवधूत

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