प्रत्येक धर्म में प्रार्थनाएं हैं। एक बात ध्यान में रखनी होगी कि आरोग्य या धन के लिए प्रार्थना भक्ति नहीं है-वह सब कर्म है। किसी भौतिक लाभ के लिए प्रार्थना करना निरा कर्म है, जैसे किसी कार्य की सफलता के लिए प्रार्थना करना निरा कर्म है। जो ईश्वर से प्रेम करना चाहता है या भक्त होना चाहता है,तो उसे ऐसी प्रार्थनाएं छोड़ देनी चाहिए।

जो ज्योतिर्मय प्रदेश में प्रवेश चाहता है, उसे इस क्रय-विक्रय की गठरी बांधकर अलग रख देनी होगी। इसके बाद उस प्रदेश के द्वार में प्रवेश करना होगा। ऐसी बात नहीं कि जिस वस्तु के लिए प्रार्थना करेंगे, उसे नहीं पाएंगे। आप सभी कुछ पा सकते हैं, पर यह तो नीच का धर्म हुआ। वह सचमुच मूर्ख है, जो गंगा किनारे रहकर पानी के लिए कुआं खोदता है। जो हीरों की खान में आकर कांच के टुकड़ों की खोज करता है, वह मूर्ख नहीं तो और क्या है?

आरोग्य और धन की प्रार्थना में रखा ही क्या है? यह शरीर तो नश्वर है ही। धनी से धनी मनुष्य भी अपने धन के थोड़े से ही अंश का उपभोग कर सकता है। हम संसार की सभी चीजें प्राप्त नहीं कर सकते। जब हम उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते, तो क्यों हमें उनकी चिंता में डूबे रहना चाहिए? जब यह शरीर ही नष्ट हो जाएगा, तब इन वस्तुओं की परवाह कैसी?

यदि अच्छी चीजें आएं तो भली बात है। आने दें। यदि ये चीजें जाती हैं तो भी अच्छी बात है। अपनी मानसिक प्रवृत्ति को इससे कुछ ऊपर उठाएं। इस तरह की छोटी-छोटी बातों के लिए प्रार्थना करने की अवस्था से अपने को परे समझें। यदि मनुष्य अपनी मानसिक शक्ति को ऐसी चीजों के लिए प्रार्थना करने में लगा दे, तो फिर मनुष्य और पशु में अंतर ही क्या रहा? ऐसी समस्त इच्छाओं का यहां तक कि स्वर्ग-प्राप्ति की कामना का भी परित्याग करना भक्त का प्रथम कार्य है।

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