औद्योगिक क्रांति के बाद श्रमिक हुए बेहाल
सन् 1750 के आसपास यूरोप में हुई औद्योगिक क्रांति. क्रांति के परिणामस्वरूप मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय होती चली गई. मजदूरों से लगातार 12-12 और 18-18 घंटे तक काम लिया जाने लगा. न कोई अवकाश और न ही दुर्घटना में कोई मुआवजा. ऐसे में मजदूरों की सहनशीलता चकनाचूर हो कर रहा गई. यूरोप में औद्योगिक क्रांति के अलावा अमेरिका, रूस आदि विकसित देशों में भी बड़ी-बड़ी क्रांतियां हुईं. उन सबके पीछे मूल मकसद मजदूरों का हक मांगना रहा. यह अमेरिका में उन्नीसवीं सदी की शुरुआत थी. अब मजदूरों ने ‘सूर्योदय से सूर्यास्त’ तक काम करने का विरोध करना शुरू किया. सन् 1806 में फिलाडेल्फिया के मोचियों ने ऐतिहासिक हड़ताल की. अमेरिका सरकार ने साजिशन हड़तालियों पर मुकदमे भी चलाए. उस समय इस तथ्य का सार्वजनिक तौर पर खुलासा हो सका कि मजदूरों से 19-20 घंटे लगातार काम लिया जाता है. उन्नीसवीं सदी के दूसरे व तीसरे दशक में 'मैकेनिक्स यूनियन ऑफ फिलाडेल्फिया' नामक श्रमिक संगठन का गठन हुआ. यह संगठन सामान्यतः दुनिया की पहली ट्रेड युनियन मानी जाती है. इस युनियन के अंतर्गत मजदूरों ने 1827 में बड़ी हड़ताल की. इसमें इन्होंने काम के लिए दस घंटे निर्धारित करने की मांग की. वॉन ब्यूरेन की संघीय सरकार को इस मांग पर मुहर लगानी ही पड़ी.

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'आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम' के लगने लगे नारे
इस सफलता से मजदूरों में एक नई ऊर्जा का आ गई. कुछ दशकों बाद ऑस्ट्रेलिया के मजदूरों ने संगठित हो आठ घंटे काम और आठ घंटे आराम के नारे संग संघर्ष शुरू किया. अमेरिका में भी मजदूरों ने अगस्त, 1866 में स्थापित राष्ट्रीय श्रम संगठन नेशनल लेबर यूनियन के बैनर तले 'काम के घण्टे आठ करो' आंदोलन शुरू किया. 1868 में इस मांग के ही ठीक अनुरूप एक कानून अमेरिकी कांग्रेस ने पास कर दिया. 'मई दिवस' मनाने की शुरुआत दूसरे इंटरनेशनल की ओर से सन् 1886 में हेमार्केट घटना के बाद हुई. दरअसल, शिकागों के इलिनोइस (संयुक्त राज्य अमेरिका) में तीन दिवसीय हड़ताल का आयोजन हुआ. इसमें 80,000 से अधिक आम मजदूरों, कारीगरों, व्यापारियों व अप्रवासी लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. हड़ताल के तीसरे दिन पुलिस ने मेकॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी संयंत्र में घुसकर शांतिपूर्वक हड़ताल कर रहे मजदूरों पर फायरिंग कर दी. मजदूरों व पुलिस में सीधा खूनी टकराव हो गया. इस घटना के बाद कई मजदूर नेताओं पर मुकदमें चलाए गए. आखिर में न्यायाधीश गैरी ने 11 नवम्बर, 1887 को कंपकंपाती, लड़खड़ाती आवाज में चार मजदूर नेताओं स्पाइडर, फिशर, एंजेल तथा पारसन्स को मौत और अन्य कई लोगों को लंबी अवधि की कारावास की सजा सुनाई. इस ऐतिहासिक घटना को चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1888 में अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर ने इसे मजदूरों के बलिदान को स्मरण करने के लिए हर साल 1 मई को ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला लिया.

...और पूरी दुनिया मनाने लगी '8 घंटे' का जश्‍न

कार्ल मार्क्स को जाता है श्रेय
इंग्लैंड में पहली बार 'मई दिवस' को 1890 में मनाया गया. इसके बाद धीरे-धीरे सभी देशों में प्रथम मई को ‘मजदूर दिवस’ व ‘मई दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा. 1919 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रथम अधिवेशन में प्रस्ताव को पारित किया गया. सभी औद्योगिक संगठनों में काम की अवधि ज्यादा से ज्यादा आठ घंटे निर्धारित हो. अनेक शर्तों को भी कलमबद्ध किया गया. विश्व के अधिकतर देशों ने इन शर्तों को स्वीकार करके उन्हें लागू भी कर दिया. 1935 में इसी संगठन ने आठ घंटे को घटाकर सात घंटे की अवधि का प्रस्ताव पारित किया. इसके अंतर्गत किसी भी मजदूर से 40 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाना चाहिए. ऐसे में मजदूरों को जागरूक एवं संगठित करने का बहुत बड़ा श्रेय साम्यवाद के जनक कार्ल मार्क्स को जाता है. वहीं काम के घंटों को 8 घंटे के लिए तय कराने का श्रेय भी कार्ल मार्क्स को ही जाता है. कार्ल मार्क्स ने समस्त मजदूर-शक्ति को एक होने व अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना सिखाया. इसके अंतर्गत कार्ल मार्क्स ने जो भी सिद्धांत बनाए, सब पूंजीवादी अर्थव्यस्था का विरोध करने व मजदूरों की दशा सुधारने के लिए बनाए थे. ऐसे में कार्ल मार्क्स का पहला उद्देश्य श्रमिकों के शोषण, उनके उत्पीड़न तथा उनपर होने वाले अत्याचारों का सख्त विरोध करना था.  कार्ल मार्क्स का दूसरा बड़ा उद्देश्य श्रमिकों की एकता व संगठन का निर्माण करना था. वह चाहते थे कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित हो, जिसमें लोगों को आर्थिक समानता का अधिकार हो.

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अलग-अलग देशों में अलग-अलग है तारीख
लेबर-डे को अलग-अलग देशों में अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है. जैसे भारत समेत कई देशों में इसे 1 मई को मनाया जाता है. वहीं कनाडा और यूनाइटेड स्टेट्स में इसे सितंबर महीने के पहले सोमवार को मनाया जाता है. इस दिन यहां पब्लिक स्कूल, यूनीवर्सिटी व अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में छुट्टी घोषित की जाती है. ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र में, न्यू साउथ वेल्स और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में इस दिन को अक्टूबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है. बांग्लादेश में इसे 24 अप्रैल को मनाने की गुजारिश की गई. भामाज़ इसे जून के पहले शुक्रवार को सेलीब्रेट करते हैं. जमाइका के सीएम ने 1938 में लेबर-डे को 23 मई को मनाने का फैसला लिया, जो अब तक यथावत है. वहीं न्यूजीलैंड में अक्टूबर के चौथे सोमवार को लेबर-डे के रूप में मनाया जाता है. त्रिनिदाद और टोबैगो में लेबर-डे हर साल 19 जून को मनाया जाता है.

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