जानिये रोहतक से रियो का सफर तय कर ओलंपिक मेडल लाने वाली साक्षी मलिक को

बस कंडक्टर पिता की बेटी
रियो ओलंपिक्स में ब्रांज मैडल जीत कर भारत के पदक विहीन बंजर पहली बूंद की तरह गिरीं साक्षी मलिक के पिता सुखबीर मलिक दिल्ली में डीटीसी बस के कंडक्टर हैं जबकि उनकी मां सुदेश मलिक रोहतक में आंगन बाड़ी सुपरवाइजर हैं। साक्षी 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स की रजत पदक विजेता भी रह चुकी हैं।

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6 से 7 घंटे का अभ्यास
साक्षी मलिक के कोच विवेक दहिया ने बताया की वे रोजाना 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस करती हैं। साक्षी ओलिंपिक की तैयारी के लिए वे पिछले एक साल से रोहतक के साई(स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) होस्टल में रह रही थीं।

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अच्छी छात्र भी हैं साक्षी
साक्षी के परिवार का कहना है कि साक्षी एक शानदार खिलाड़ी तो हैं ही पर उसके साथ साथ अच्छी छात्रा भी रही हैं।

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खेल में कामयाबी ने बनाया गंभीर
साक्षी की मां बताती हैं कि वो बचपन में बेहद चंचल और शरारती थीं लेकिन जैसे जैसे खेल में आगे बढ़ती गयीं उनमें गंभीरता आती गयी और अब वे काफी चुपचाप रहती हैं।

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रिपचेज राउंड में जीतीं साक्षी
हालाकि साक्षी अपना क्वार्टर फाइनल मुकाबला हार गयी थीं इसके बावजूद उन्हें कांस्य पदक मिला क्योंकि वे रिपचेज राउंड की दावेदार बनी और कांस्य पदक के लिए अइसुलू टाइबेकोवा को 58 किलोग्राम वर्ग में हरा कर विजेता बन गयीं।

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क्या होता है रिपचेज
कुश्ती में रिपचेज राउंड पहलवानों के लिए दूसरे मौके की तरह होता है। इसके अनुसार फाइनल में पहुंचने वाले दो पहलवानों जिन पहलवानों को नॉक आउट राउंड में हराया होता है उन्हें एक मौका दिया जाता है। कुश्ती में इसीलिए दो कांस्य पदक होते हैं जो फाइनल खेलने वालों के सबसे मजबूत प्रतिद्वंदियों को दिये जाते हैं।

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नेशनल स्तर से शुरू हुआ था जीत का सिलसिला
अंतर राष्ट्रीय मंच पर जीत का या सिलसिला राष्ट्रीय मैचों में साक्षी के अपने जौहर दिखाने के साथ शुरू हुआ था। साक्षी ने जूनिर और नेशनल स्तर पर करीब एक दर्जन पदक जीते हैं।

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