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KANPUR : नाम : गोपालदास सक्सेना 'नीरज'
पिता का नाम : बाबू बृजकिशोर सक्सेना
जन्म स्थान : ग्राम पुरावली, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश
कार्यक्षेत्र : कवि सम्मेलन, 50 वर्षों से निरन्तर मंच पर काव्य पाठ

गीत के माहौल को सिर्फ अपनी मौजूदगी से जीवन्त कर देने वाले महाकवि गोपाल दास नीरज यह जहां छोड़कर चले गए। 93 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को उनका एम्स में निधन हो गया। वो पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें सीने में संक्रमण की शिकायत हो रही थी। उन्होंने देहदान की घोषणा की थी जिसकी प्रक्रिया शुक्रवार को पूरी होगी व शनिवार को अंतिम संस्कार होगा।

3 बार मिला फिल्मफेयर
उत्तर प्रदेश के इटावा में रहने वाले गोपालदास 'नीरज' ने फिल्मों में पहला गाना 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे' लिखा था। उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। वे पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। पहले पद्मश्री (1991) और फिर पद्मभूषण (2007) से सम्मानित किया। फिल्म जगत में नीरज को सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए 70 के दशक में लगातार तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। जिन गीतों पर उन्हें यह पुरस्कार मिला वो हैं, 'काल का पहिया घूमे रे भइया! (फिल्म - चन्दा और बिजली-1970), बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (फिल्म : पहचान-1971) और ए भाई! जरा देख के चलो (फिल्म: मेरा नाम जोकर-1972), 'प्रेम पुजारी' में देवानंद पर फिल्माया उनका गीत 'शोखियों में घोला जाए...' भी उनके लोकप्रिय गीतों में शामिल है जो आज भी सुने जाते हैं।

इसलिए छोड़ी थी फिल्म इंडस्ट्री
एक टीवी इंटरव्यू में नीरज ने खुद को अनलकी कवि बताते हुए फिल्म इंडस्ट्री छोडऩे का कारण बताया था। इसकी वजह थी उन म्यूजिक डायरेक्टर्स की मौत, जिनके लिए उन्होंने बेहद सफल और लोकप्रिय गीत लिखे थे। इनमें शंकर-जयकिशन व एसडी बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकार शामिल थे। जब इनकी मौत हुई तब नीरज अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे।

राजकीय सम्मान के साथ अंतिम यात्रा
मुख्यमंत्री योगी ने नीरज के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाएगी। सीएम ने उनकी स्मृति में हर वर्ष उनके स्मृति दिवस पर यूपी हिंदी संस्थान द्वारा प्रदेश के 5 नवोदित कवियों को 1-1 लाख रुपए पुरस्कार, अंगवस्त्र व सम्मान-पत्र देने की घोषणा की है।

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