- जेनेटिक कुंडली से जान सकेंगे बुढ़ापे तक का हाल

- एसजीपीजीआई में प्रो। एसएस अग्रवाल मेमोरियल लेक्चर का आयोजन

LUCKNOW: अब बचपन में ही जेनेटिक कुंडली यानी क्लीनिकल एक्सोमा आगे की जिंदगी में होने वाली बीमारियों की आशंका के बारे में जानकारी देगी। ऐसे में भविष्य में होने वाली जेनेटिक बीमारियों के बारे में पूरी जानकारी मिल सकेगी। यह जानकारी एसजीपीजीआई में प्रो। एसएस अग्रवाल मेमोरियल लेक्चर के दौरान डॉ। अश्रि्वन दलाल ने दी। वह सेंटर फॉर डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक हैदराबाद के डायग्नोस्टि डिवीजन के प्रमुख हैं।

5 हजार बीमारियों की जानकारी

डॉक्टर्स के मुताबिक डीएनए फिंगरप्रिंटिंग से 25 हजार जीन की सीक्वेंसिंग होती है, जिससे लगभग 5 हजार बीमारियों के बारे में पहले से जानकारी मिल जाती है। यही नहीं, यह भी पता लगाना अब संभव हो गया है कि बीमारी में कौन सी दवा काम करेगी। उन्होंने बताया कि एटीसीजी न्यूक्लोटाइड ही जीन का आधार है, जिनकी जगह जीन में फिक्स होती है। वहीं, पीजीआई की जेनेटिक डिपार्टमेंट की एचओडी प्रो। शुभा फड़के ने कहा कि अब यह देख सकते हैं कि कौन से जीन से कौन सा प्रोटीन निकल रहा है, जिससे बीमारी का पता लगाना काफी हद तक संभव हो गया है। न्यू बॉर्न बच्चों की स्क्रीनिंग कर आगे चलकर होने वाली बीमारियों की आशंका को कम कर सकते हैं। इसके लिए विभाग में सरकार के सहयोग से यह प्रोग्राम शुरू किया है।

एक दवा का असर अलग-अलग

डॉक्टर्स के अनुसार, जीन में बदलाव के कारण ही एक ही दवा सभी लोगों के एक बराबर असर नहीं करती। कई बार एक दवा 100 लोगों को दी जाती है, लेकिन 80 तो ठीक हो जाते हैं और 20 को फायदा नहीं होता। क्योंकि उनका जीन सीक्वेंस बदला हुआ होता है। इसका मतलब है कि यह दवा उन लोगों के लिए नहीं है और उन्हें अनावश्यक रूप से देने से साइड इफेक्ट हो सकते हैं और कई बीमारियों का खतरा हो सकता है। देश में ही कोलकाता और लखनऊ के लोगों के जीन अलग-अलग हैं। इसलिए जरूरी नहीं है कि जो कोलकाता के मरीजों पर दवा असर कर रही हो, वह लखनऊ में भी करे।

पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का समय

कार्यक्रम में निदेशक प्रो। राकेश कपूर ने बताया कि प्रो। एसएस अग्रवाल और प्रो। डीके छाबड़ा ने पहले पीजीआई ज्वाइन किया था और उन्हीं की ही देन है कि पर्सनलाइज्ड मेडिसिन की शुरुआत हुई। इसमें जेनेटिक मेकअप के आधार पर मरीज को दवा दी जाती है और वह दवा शत-प्रतिशत काम करती है।

गर्भवती की ट्रिपल टेस्ट जांच जरूरी

डॉ। शुभा फड़के ने कहा कि पैदा होने वाले 800 बच्चों में से एक को डाउन सिंड्रोम होने की आशंका रहती है। अगर मां की उम्र 40 से अधिक है तो दो से तीन बच्चों को इस समस्या का खतरा रहता है। ट्रिपल टेस्ट से इस बीमारी की आशंका का पता लगा कर 20 हफ्ते के गर्भ से पहले इन बच्चों का जन्म रोका जा सकता है। ऐसा न किया तो ये बच्चे जिंदगी भर दूसरों के सहारे रहते हैं।

प्रेगनेंसी से पहले ही करें तैयारी

डॉक्टर्स ने बताया कि मां बनने की योजना बनाने से पहले ही फोलिक एसिड की गोली लेना शुरू कर देना चाहिए। इससे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट की आशंका को कम किया जा सकता है। प्रो। शुभा फड़के के अनुसार 100 दंपतियों में से तीन के बच्चों को आनुवांशिक बीमारी का खतरा रहता है, इसलिए प्रेगनेंसी से पहले ही जेनेटिक काउंसलिंग भी करानी चाहिए। यह सुविधा एसजीपीजीआई में उपलब्ध है।