सुपौल ज़िले के निर्मली क्षेत्र में कोसी नदी पर चार सौ करोड़ रूपए से भी अधिक की लागत से बने इस चार लेन वाले पुल की लम्बाई लगभग दो किलोमीटर है। इसके पहुँच-पथ की लम्बाई आठ किलोमीटर है.यहाँ 78 साल पहले जो पुल था, वह वर्ष 1934 के भूकंप में ध्वस्त हो गया था। उसके बाद से उत्तर बिहार के मुज़फ्फ़रपुर, दरभंगा और मधुबनी ज़िले का सीधा सड़क-संपर्क सुपौल, सहरसा और मधेपुरा ज़िलों से टूट गया था।

'कोसी महासेतु' नाम से नवनिर्मित इस पुल की आधारशिला वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखी थी। लगभग नौ वर्षों में बने इस पुल का उदघाटन केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी ने किया।

विस्थापितों ने किया विरोध

इस मौक़े पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे। उन्हें संबंधित क्षेत्र के विस्थापित हुए लोगों का विरोध भी झेलना पड़ा। उचित मुआवज़ा नहीं मिलने पर रोष ज़ाहिर करने वाले लोगों ने इस दौरान मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाए।

इस महासेतु के निर्माण के लिए अगल-बगल बाँध बनाने से कोसी नदी की मुख्य धारा में जो परिवर्तन हुआ, उस कारण प्रभावित हज़ारों परिवार विस्थापन की समस्या झेल रहे हैं। मेधा पाटकर के नेतृत्व में कोसी अंचल के विस्थापितों ने हाल ही में वहाँ विरोध प्रदर्शन भी किया था।

बावजूद इस समस्या के आम तौर पर कोसी अंचल के लोग इस बहुप्रतीक्षित पुल के चालू होने से ख़ासे प्रसन्न हैं। इस कारण ना सिर्फ दो भागों में बंटे मिथिलांचल के बीच सड़क मार्ग वाली दूरी कम होगी, बल्कि संबंधित इलाके के विकास की गति भी तेज़ होगी।

ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर (एनएच-57) पर बने इस कोसी महासेतु ने लगभग तीन हज़ार किलोमीटर के महत्त्वपूर्ण सड़क- मार्ग को वहाँ जोड़ दिया है, जहाँ उसका जुड़ना ख़ासा मुश्किल माना जा रहा था।

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