साहित्यकार व समालोचक कुमार विमल का निधन
कुमार विमल अपने आप में इनसाइक्लोपीडिया थे। इनके निधन की सूचना के बाद हम कंकड़बाग स्थित उनके घर एमआईजी-96 गए। उस घर को देखा, जहां वे हॉस्पीटल जाने के पहले तक पढ़ा-लिखा करते थे। हॉस्पीटल में एडमिट होने के दो दिन पहले ही उन्होंने एक ठेले पर 50 किताबें मंगवाई थीं। उनके घर में कमरे की क्षमता से अधिक किताबें रखी थीं। हर तरह की किताबें। धर्म-अध्यात्म से लेकर दलित विमर्श और नारी विमर्श तक। जितनी किताबें हिंदी में, उतनी ही अंगे्रजी में भी होंगी। सैकड़ों जर्नल उनके सोफे के ठीक बगल में रखे हुए हैं।
दो किताबें रह गईं
डॉ कुमार विमल की दो पुस्तकें रह गईं, जिनका लोकार्पण वे अपने हाथों से नहीं कर पाए। पढऩे-लिखने में रुचि का संकेत इस बात से मिलता है कि 80 साल की उम्र में भी वे इसको लेकर कितने क्रियाशील थे। इनमें एक है 'साहित्येतर'। यह पुस्तक भवन नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है। दूसरी है 'स्त्री विमर्श-कामाध्यात्म और साहित्य'। इसका प्रकाशन सद्विचार प्रकाशन पटना ने किया है। कुमार विमल की केवल हिंदी साहित्य पर ही अच्छी पकड़ नहीं थी, बल्कि बंग्ला, मराठी, तेलुगु, चेक और कश्मीरी भाषाओं पर भी उन्होंने काम किया था। उन्होंने कई कविताओं का इन भाषाओं में अनुवाद भी किया है.

जीवन परिचय
जन्म - 12 अक्टूबर, 1931
जिन पदों को सुशोभित किया 
- वर्तमान में बिहार अंतर विश्वविद्यालय बोर्ड के अध्यक्ष पर कार्यरत थे।
- बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष.
- बिहार सरकार द्वारा स्थापित साहित्यकार-कलाकार-कल्याण कोष परिषद के संस्थापक।
- ज्ञानपीठ पुरस्कार से संबद्ध हिंदी समिति के सदस्य.
- बिहार सरकार की उच्चस्तरीय पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष.
- बिहार सरकार की उच्चस्तरीय पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष.
- सदस्य : साहित्य अकादमी-दिल्ली, केंद्रीय हिंदी संस्थान-आगरा, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्-दिल्ली सहित भारत सरकार के कई मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समिति।