-अब नहीं कोई ठिकाना, घूम-घूमकर जगा रहे अलख

manish.mishra@inext.co.in
PRAYAGRAJ: घर के इकलौते होनहार बेटे को जब सेना की नौकरी मिली तो पूरे गांव में मिठाई बंटी। घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं था। पहली पोस्टिंग बर्फीली पहाडि़यों पर हुई। यहीं से उनका दिमाग बदल गया और अध्यात्म की तलाश में 1983 में नौकरी छोड़ दी। घरवालों का दबाव बना तो फिर इस होनहार ने आरपीएफ की नौकरी पाई। लेकिन भगवान की तलाश में तपस्या की ठान चुका था। आरपीएफ की नौकरी भी नहीं भाई और कई प्रदेश में नौकरी करने के बाद रिजाइन देकर तपस्या करने चले गए और देव से देव स्वरूप नंद बाबा बन गए।

2012 में नौकरी को मारी लात
दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट से विशेष बातचीत में देव स्वरूप नंद बाबा ने बताया कि सेना की नौकरी में पहाडि़यों की पोस्टिंग में उनका जुड़ाव शिव से हो गया। भक्ति की लगन लगने के बाद उनका देश दुनिया से मन हट गया था। इसके बाद वह लगातार शिव की भक्ति में लीन रहने लगे। घरवालों का दबाव कुछ दिन तक काम किया लेकिन भक्ति के लिए घर तक छोड़ दिया। काफी दिनों तक जंगलों में तपस्या की और फिर संसार को अपना घर मान लिया। उनका अब न तो कोई घर है और न ही कोई स्थाई ठिकाना।

शिव की भक्ति में रहते हैं लीन
देव स्वरूप नंद बाबा का कहना है शिव की भक्ति में लीन रहने वाले को कभी कोई परेशानी नहीं आती है। यही कारण है कि उनकी सबसे बड़ी सांसारिक मोह की समस्या भी दूर हो गई। वह न तो घरवालों के बारे में बताते हैं और न ही किसी से कोई मोह अपेक्षा रखते हैं। अब तो सिर्फ शिव उनके संरक्षक हैं और वह शिव के सेवक हैं। बाबा का कहना है कि उनका बस एकमात्र उद्देश्य है कि अधिक से अधि लोगों को सनातन धर्म की रक्षा और सुरक्षा के लिए आगे लाया जाए। कुंभ में भी वह अधिक से अधिक लोगों को सनातन धर्म की रक्षा के लिए जगाने का काम कर रहे हैं। कुंभ में भी उनका कोई ठिकाना नहीं, जहां ठहर गए वहीं पड़ाव बन जाता है।