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PRAYAGRAJ: प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला का श्रीगणेश पहले शाही स्नान पर्व मकर संक्रांति के साथ मंगलवार को हो गया। सनातन संस्कृति में सैकड़ों वषरें पुरानी अखाड़ों की परंपरा का ऐसा विहंगम नजारा दिखा। इसकी बदौलत इसे यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया है। आकर्षण का केन्द्र सेक्टर-16 रहा, जहां संन्यासी परंपरा, वैरागी परंपरा व उदासीन परंपरा का निर्वहन करते हुए शाही स्नान के लिए निकले थे। प्रशासन का दावा है कि मकर संक्रांति के मौके पर सोमवार और मंगलवार को कुल करीब दो करोड़ लोगों ने संगम तट पर डुबकी लगायी है। देर शाम तक पूरे कुंभ एरिया में किसी प्रकार की कोई घटना न होने से भी प्रशासन को बड़ी राहत रही।

संन्यासी परंपरा के अखाड़े
हरहरमहादेव
संन्यासी परंपरा के अन्तर्गत आने वाले श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, श्री पंचायती अखाड़ा आनंद, श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, श्री पंचायती अखाड़ा अटल, श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा और श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़ा की छावनी में भोर चार बजे से ही हर-हर महादेव का उद्घोष होने लगा था। खासतौर से श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी का शाही स्नान का क्रम सबसे पहले था तो अखाड़े की छावनी में रात तीन बजे भगवान कपिल मुनि महाराज की चांदी के बहुपात्रों से आरती उतारी गई। आरती के वक्त भगवान कपिल मुनि की कुटी के बाहर दो दर्जन नागा संन्यासी शरीर पर भभूत लगाकर प्रणाम की मुद्रा में सिर झुकाकर बैठे थे तो छावनी के मुख्य गेट पर संत-महात्मा घंटा-घडि़याल के साथ सभी का शाही स्नान में चलने का अभिनंदन करते रहे। सवा पांच बजे निर्धारित स्नान क्रम का ध्यान रखते हुए संत-महात्मा और नागा संन्यासियों का रेला वीवीआईपी घाट से पूरे शाही अंदाज में संगम स्नान को पहुंचा। इस अखाड़े के साथ श्री पंचायती अखाड़ा अटल के एक दर्जन संत-महात्मा पालकी में बैठकर जैसे ही अखाड़े से निकले वैसे ही दस मिनट तक छावनी का परिसर हर-हर महादेव का जयकारे से गूंजता रहा।

प्रभु जी दर्शन दो दर्शन
महानिर्वाणी और अटल अखाड़ा के बाद क्रम को ध्यान में रखते हुए श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी की छावनी में अपनी-अपनी कुटी में हवन कुंड की राख से नागा संन्यासियों ने अपने शरीर पर तिलक, चंदन व फूल की माला एक-दूसरे के शरीर पर लगाते हुए दिखाई दिए। जब शाही स्नान के लिए अखाड़े के ब्रहमचारी, आचार्य महामंडलेश्वर व महामंडलेश्वरों के संग नागा संन्यासियों ने हाथों में त्रिशूल व फरसा लेकर स्नान के लिए वीवीआईपी मार्ग पर दौड़ पड़े। इस नजारे को देखकर सेक्टर सोलह में सड़क के दोनों ओर खड़े श्रद्धालुओं ने नागा संन्यासियों पर पुष्प वर्षा की और एक सुर में प्रभु जी दर्शन दो दर्शन का जयकारा लगाया तो संन्यासियों ने भी दौड़ लगाकर अभिवादन स्वीकार किया। वीवीआईपी मार्ग से जाते समय संतों की पालकी खींचने की होड़ लगी रही तो पालकी पर सवार महामंडलेश्वरों ने इस दृश्य को देखकर श्रद्धालुओं पर प्रसाद रूप में फूल बरसाया। इस अखाड़े के साथ आनंद अखाड़े के नागा संन्यासी जब स्नान के लिए हर-हर महादेव का जयकार लगाते हुए दौड़ने लगे उसके बाद तो संगम नोज तक जहां से संत-महात्मा व संन्यासी जा रहे थे वहां पर देवताओं का दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का समूह मौजूद दिखाई दिया।

नागा संन्यासियों के करतब से अचंभित
सर्वाधिक नागा संन्यासियों वाले श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में सुबह पांच बजे का नजारा अलौकिक सा दिखाई देने लगा। अखाड़े के आराध्य देव भगवान दत्तात्रेय की सोने की प्रतिमा का सेवकों द्वारा सेमर से हवा दी जा रही थी। संत-महात्माओं ने शंखनाद किया तो अपनी-अपनी कुटी से निकलकर नागा संन्यासी और महिला संन्यासी दौड़ते हुए आराध्य देव के सामने नतमस्तक होकर लेट गए। छावनी में कोई संन्यासी खुद का श्रृंगार मोबाइल में देखता रहा तो अधिकतर संन्यासी अपने शस्त्रों का प्रदर्शन कर रहे थे। इसके बाद पांच मिनट तक लगातार शंखनाद किया गया उसके बाद सैकड़ों की संख्या में नागा संन्यासी शाही स्नान के लिए दौड़ पड़े। दौड़ते-भागते नागा संन्यासियों ने तलवार, फरसा से अचंभित कर देने वाला करतब दिखाया। करतब दिखाने का यह सिलसिला संगम नोज तक लगातार दिखाई दिया। इनके पीछे आधा घंट के अंतराल पर श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा व श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़ा के महात्मा और महामंडलेश्वर फूलों से सुशोभित चांदी की पालकी पर विराजमान होकर संगम नोज तक पहुंचे।

वैरागी परंपरा

जय श्रीराम, जय श्रीराम, यही वैरागी शान
शाही स्नान क्रम के अनुसार वैरागी परंपरा के अन्तर्गत आने वाले अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनि अखाड़ा, श्री पंच दिगंबर अनि अखाड़ा व श्री पंच निर्वाणी अनि अखाड़े की छावनी में पवनसुत हनुमान की मंगलाआरती उतारी गई। आरती के बाद जय श्रीराम, जय श्रीराम का जयकारा लगाते हुए त्यागी संन्यासियों ने पट्टा व गतका का मनोहारी प्रदर्शन अपनी-अपनी छावनी में किया। डमरू बजाकर त्यागी संन्यासियों ने छावनी में शाही स्नान में चलने का आवाहन किया गया। उसके बाद सबसे पहले निर्मोही अनी अखाड़े के संत-महात्मा व त्यागी संन्यासी हाथों में गतका व पट्टा लेकर दौड़ पड़े। संन्यासियों का यह क्रम संगम नोज तक अनवरत चलता रहा। करीब चालीस मिनट के अंतराल पर दिगंबर अनि अखाड़ा और उसके बाद निर्वाणी अनि अखाड़े के त्यागी पालकी में चलते हुए संगम पहुंचे तो रास्ते भर जय श्रीराम, जय बजरंग बली का संत-महात्माओं ने खूब जयकारा लगाया।

परंपरा के साथ निकले उदासीन अखाड़े
उदासीन परंपरा के तहत आने वाले श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन और श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की छावनी में सुबह सात बजे से ही ढोल-ताशा की धुन सुनाई देने लगी। सबसे पहले जहां लगातार ढोल-ताशा की धुन पर बड़ा उदासीन के संत-महात्मा शांत भाव के साथ संगम नोज पर पहुंचे। बीच-बीच में बड़ी-बड़ी शंख से ऐसी नाद सुनाई दे रही थी कि देवताओं को देखने के खड़े जनसमूह ने सिर झुकाकर महात्माओं को प्रणाम किया। इसके बाद डमरू और शंखनाद के बीच चालीस-चालीस मिनट के अंतराल पर निकले नया उदासीन और निर्मल अखाड़े के संत-महात्मा संगम नोज पहुंचे।

चरण रज छूने की लगी होड़
शाही स्नान के क्रम में जैसे-जैसे अखाड़ों के संत-महात्मा वीवीआईपी मार्ग से संगम नोज पहुंच रहे थे वैसे-वैसे प्रशासनिक मार्ग पर खड़े श्रद्धालु देवताओं के चरणों की रज को छूने के लिए बेताब दिखाई दिए। श्रद्धालुओं द्वारा नतमस्तक होने के अनगिनत दृश्य दिखाई दिए तो उसी तरह अखाड़ों के संत-महात्माओं ने श्रद्धालुओं पर दूर से ही फूल और माला फेंक रहे थे। अलौकिक नजारा ऐसा रहा कि फेंके गए फूलों और मालाओं को अपने मत्थे पर लगाकर अपनी झोली में उसे रखते रहे।