- ध्वनि प्रदूषण को लेकर अवेयर नहीं गोरखपुराइट्स

- क्षेत्रीय प्रदूषण कार्यालय में आती ही नहीं शिकायत, जि6मेदारों को भी नहीं पड़ता फर्क

GORAKHPUR: ध्वनि प्रदूषण ने भले ही सिटी में खतरनाक रूप धारण कर लिया हो लेकिन प4िलक से लेकर सरकारी जि6मेदार तक भी इस मुसीबत से बेपरवाह बने हुए हैं। शहर में जहां साइलेंस जोन तक में वाहनों का शोर लोगों को बहरा बनाने पर आमादा है। वहीं, क्षेत्रीय प्रदूषण कार्यालय में पिछले पांच साल में ध्वनि प्रदूषण की एक शिकायत तक नहीं आई है। वहीं, क्षेत्रीय प्रदूषण कार्यालय के जि6मेदारों ने भी इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया है।

खतरनाक है ये समस्या

ध्वनि प्रदूषण के चलते कम उम्र में ही लोगों के सुनने की श1ित क्षीण हो रही है। वाहनों के तेज हॉर्न इस समस्या का प्रमुख कारण हैं। ईएनटी ए1सपर्ट डॉ। राजेश यादव बताते हैं कि एक बार हार्न बजाने से ही 100 डेसिबल से अधिक आवाज निकलती है। जबकि कानों के लिए 30 से 40 डेसिबल ध्वनि पर्याप्त है। अगर इससे अधिक आवाज कान के अंदर लगातार प्रवेश करे तो इसका फर्क निश्चित तौर पर सुनने की क्षमता पर पड़ेगा। इतना ही नहीं कभी-कभी तो इससे बहरा होने का खतरा भी रहता है।

यहां भी बढ़ रही बहरेपन की परेशानी

डॉ। राजेश यादव ने बताया कि पहले अमूमन 50-60 साल की उम्र में लोगों में बहरेपन की शिकायत मिलती थी। लेकिन अब तो युवक-युवतियां तक बहरेपन का शिकार हो रहे हैं। इसके लिए बढ़ता ध्वनि प्रदूषण जि6मेदार है। जिसके चलते 30 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लोगों में कम सुनने की शिकायत मिल रही है। ऐसे मरीजों की सं2या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है जो कम उम्र के हैं।

ध्वनि प्रदूषण के मानक

एरिया तय किए गए मानक

आवासीय - 55 से 45 डेसिबल

इंडिस्ट्रयल - 75 से 70 डेसिबल

व्यवसायिक - 75 से 70 डेसिबल

साइलेंस - 40 से 50 डेसिबल

शहर में इन एरियाज में ज्यादा ध्वनि प्रदूषण

- मोहद्दीपुर

- कूड़ाघाट

- बिछिया

- असुरन चौक

- नौसड़

- तारामंडल

- बेतियाहाता

- राजेंद्र नगर

- नंदानगर

वर्जन

तेज आवाज से लोगों के कान में कई तरह की दि1कत आ रही हैं। कम सुनने के साथ-साथ अन्य कई परेशानी है, जिसका असर समय के साथ दिखता है। अधिक समय तक तेज ध्वनि से सुनने की श1ित कम होती है। इसे लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है।

- डॉ। राजेश यादव, ईएनटी ए1सपर्ट