- सुविधाओं के भारी अभाव से जूझ रहा बीआरडी मेडिकल कॉलेज का ट्रामा सेंटर

- इन दिनों जिले और आसपास बढ़े गोलीबारी और एक्सीडेंट्स के चलते काफी आ रहे क्रिटिकल केस

- हार्ट और न्यूरो सर्जन न होने से क्रिटिकल केस बिना अटेंड किए ही कर दिए जा रहे रेफर

GORAKHPUR: पहले ही मरीजों के लोड के नीचे दबे बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर जिले के सीमावर्ती इलाकों का गैंगवार भी भारी पड़ने लगा है। आपसी रंजिश में गोली लगने से लेकर बवाल के गंभीर घायल आए दिन बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर पहुंच रहे हैं। जिससे लंबे समय से हार्ट स्पेश्यलिस्ट और न्यूरो सर्जन की कमी से जूझ रहे ट्रामा सेंटर के जिम्मेदारों पर प्रेशर बढ़ गया है। हाल यह कि ज्यादातर केसेज को गंभीर बताकर सीधे लखनऊ रेफर कर दिया जा रहा है।

मेडिसीन विभाग के भरोसे क्रिटिकल केस

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर में लंबे समय से डॉक्टर्स व कर्मचारियों की भारी कमी है। यहां तक कि यहां स्टाफ की कमी के चलते गंभीर घायलों का मेडिको लीगल तक सही से नहीं हो पाता। विशेषज्ञों के मुताबिक हर रोज करीब 25 से 30 क्रिटिकल केस सर्जरी के आते हैं। इनमें ज्यादा गोली लगने या ब्रेन हैमरेज या आर्थो के होते हैं। लेकिन ट्रामा सेंटर में हार्ट स्पेश्यलिस्ट और न्यूरो सर्जन न होने से विभाग पर काफी वर्कलोड बढ़ गया है।

कब मिलेगा हार्ट सर्जन

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक्सपर्ट विशेषज्ञों की बेहद कमी है। यहां हार्ट पेशेंट्स को हैंडल करने के लिए डॉक्टर नहीं हैं। मेडिसिन विभाग के डॉक्टर हार्ट पेशेंट्स को देखते हैं। यदि हालत बिगड़ जाती है तो वे हाथ खड़े कर देते हैं। जबकि कार्डियोलॉजी यूनिट में दो विशेषज्ञ डॉक्टर के पद सृजित हैं। मई 2010 में कार्डियोलाजिस्ट डॉ। मुकुल मिश्रा के लोहिया संस्थान जाने के बाद अस्पताल में आज तक कोई दूसरा कार्डियोलॉजिस्ट नहीं आया। वहीं न्यूरो विशेषज्ञ की बात की जाए तो न्यूरो सर्जन डॉ। एके ठक्कर, एनेस्थिसिया के डॉ। दीपक मालवीय समेत कई डॉक्टर मेडिकल कॉलेज छोड़ कर लखनऊ चले गए। साथ ही वर्तमान में न्यूरो सर्जन विजय शंकर मौर्या ने भी वीआरएस ले लिया है। वहीं संविदा पर तैनात न्यूरो सर्जन डॉ। मुकेश शुक्ला ने मेडिकल कॉलेज को पत्र लिखकर सेवा देने में असमर्थता जताई है

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विभाग बढ़ते गए कर्मचारी घटते गए

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में डिपार्टमेंट तो बढ़ाए गए लेकिन कर्मचारियों की संख्या कम होती गई। 1972 में 500 बेड वाला मेडिकल कॉलेज बनाया गया। इसके लिए करीब 84 स्टाफ नर्स और 32 सिस्टर, 70 वार्ड ब्वॉय और 70 स्वीपर की नियमित भर्ती की गई। इसमें से ज्यादातर रिटायर्ड हो चुके हैं। पूरा मेडिकल कॉलेज वर्तमान में आउटसोर्सिग की बदौलत चल रहा है। ट्रामा सेंटर में भी कर्मचारियों की कमी है।

जब क्रिटिकल पेशेंट्स को न िमल सकी मदद

-30 मई को बिहार के गोपालगंज में गैंगवार के दौरान तीन लोगों को गोली लगी। इसमें मुखिया महातम यादव, उनकी पत्नी और बेटे को बीआरडी मेडिकल कॉलेज लाया गया। मुखिया की बुधवार को इलाज के दौरान मौत हो गई। महिला को जहां हार्ट के बगल में गोली लगी थी। जबकि बेटे को स्पाइनल कॉर्ड के बीचों-बीच गोली लगी थी। दोनों को ट्रामा सेंटर में हार्ट सेपेश्यलिस्ट और न्यूरो सर्जन न होने के चलते लखनऊ, केजीएमयू के लिए रेफर कर दिया गया।

- 26 मई को कैंट एरिया के गोपालपुर में आईपीएल सट्टेबाजी को लेकर दो पक्षों में चाकूबाजी में चार युवक घायल हुए। जिनमें एक की बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई। बाकी तीनों को एक्सेस ब्लीडिंग हो रही थी। ट्रामा सेंटर में न्यूरो सर्जन न होने की वजह से लखनऊ केजीएमयू रेफर कर दिया गया।

- 27 मई को तिवारीपुर एरिया के बख्तीयार मोहल्ले में एक पिता ने खुद सहित अपने तीन बच्चों के हाथ की नस काट दी। सभी को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। लेकिन न्यूरो सर्जन न होने की वजह से हालत गंभीर होने पर डॉक्टर ने लखनऊ रेफर कर दिया।

- 24 मई को पुलिस लाइंस में मरम्मत के दौरान पंप एक्शन गन दगने से अंडर ट्रेनिंग दरोगा को गोली लग गई। आनन-फानन में उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर लाया गया। लेकिन न्यूरो सर्जन न होने के चलते गंभीर हाल में ही उन्हें बीआरडी डॉक्टर्स ने लखनऊ के लिए रेफर कर दिया गया।

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सीएम के उद्घाटन के बाद धरा रह गया आईसीयू

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ट्रामा सेंटर में नया आईसीयू होन के बावजूद गंभीर मरीज तड़प-तड़पकर दम तोड़ने को मजबूर हैं। चार साल पहले ट्रामा सेंटर को संसाधनों से पूरी तरह लैस करने और सितंबर 2017 में सीएम द्वारा उद्घाटन के बावजूद आईसीयू को शुरू नहीं किया जा सका है। हाल ये कि भीषण गर्मी में भी यहां आने गंभीर मरीजों को जनरल वार्ड में ही एडमिट कर दिया जाता है। जिनमें से ज्यादातर एसी आदि सुविधाओं के अभाव में तड़प-तड़पकर दम तोड़ देते हैं। बिहार के गोपालगंज में गैंगवार के दौरान घायल मुखिया महातम यादव की जान भी इसी अव्यवस्था के कारण चली गई। उन्हें बुधवार को बीआरडी के ट्रामा सेंटर लाया गया था। केस क्रिटिकल होने के बावजूद उन्हें इमरजेंसी में ही बाहर रख दिया गया। परिजनों के पूछने पर कह दिया गया कि आईसीयू खाली नहीं है।

ट्रामा सेंटर के आईसीयू में बेड - 10

सर्जरी आईसीयू - 6

पीडिया आईसीयू - 8

मेडिसिन आईसीयू - 14

एनआईसीयू - 8

हर रोज ट्रामा सेंटर में भर्ती होने वाले मरीज

सर्जरी - 25-30

आर्थो - 20-25

मेडिसीन - 65-90

गायनिक - 5-6

पीडिया - 15-20

ट्रामा सेंटर में बेड की संख्या - 60

वर्जन

पहले 500 बेड का नेहरू चिकित्सालय था लेकिन धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया। एक्सपर्ट डॉक्टर व कर्मचारी भी कम हो गए। इस वजह से मेडिकल कॉलेज पर काफी प्रेशर है। इस समय ट्रामा सेंटर में गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ी है। सुविधाएं हैं लेकिन मानव संसाधन की कमी है।

- डॉ। आरएस शुक्ला, एसआईसी बीआरडी