- फुटबॉल के लिए गोरखपुर में नहीं है कोई परमनेंट फैसिलिटी

- जुगाड़-तुगाड़ से जाती है स्टेट और नेशनल की टीम तैयार

- एसोसिएशन नहीं प्रोवाइड कराता है कोई भी फैसिलिटी

GORAKHPUR: खेल है, खिलाड़ी हैं, साजो-सामान हैं, लेकिन खेलने के लिए मैदान नहीं है। यह हाल है गोरखपुर के फुटबॉल का, जहां ग्राउंड न होने की वजह से इस गेम की नर्सरी खिलने से पहले ही मुरझाने लगी है। मैदानों की कमी से जहां खिलाड़ी इस गेम से किनारा कर रहे हैं, वहीं शहर में मौजूद टैलेंट को भी अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं मिल पा रहा है। हालत यह है कि दुनिया के सबसे पॉप्यृलर गेम फुटबॉल शहर में अपनी चमक खोता जा रहा है और इसे फिर वही दर्जा दिलाने की पहल अब तक नहीं हो सकी है।

एक मैदान से कैसे पड़े जान?

गोरखपुर में अगर फुटबॉल ग्राउंड की बात की जाए तो इनकी तादाद काफी ज्यादा है। लेकिन जिसमें सभी बरोक-टोक प्रैक्टिस कर सके, ऐसा ग्राउंड सिर्फ रीजनल स्टेडियम है। यहां भी खिलाडि़यों को अपना रजिस्ट्रेशन कराना ही पड़ेगा। इसके अलावा शहर में जो भी ग्राउंड हैं, उन पर 'रिजर्वेशन' का बोर्ड लटका है। जहां अलग-अलग ग्राउंड्स पर सिर्फ चुनिंदा खिलाडि़यों की एंट्री है। इस वजह से वहां आसपास टैलेंट होने के बाद भी उन्हें प्रैक्टिस के लिए जगह नहीं मिल पाती है।

अब नहीं निकलते खिलाड़ी

गोरखपुर में फुटबॉल की हालत काफी खराब है। स्पो‌र्ट्स ग्राउंड की भरमार के बाद भी खिलाडि़यों को जगह नहीं मिल पा रही है। गोरखपुर के ईस्टर्न एरियाज में बड़ी तादाद में नेशनल फुटबॉल तक खिलाडि़यों ने अपनी धमक दिखाई है। जीआरडी और नंदानगर में खिलाडि़यों की पूरी सेना हुआ करती थी, लेकिन जीआडी ग्राउंड पर स्कूल बन जाने से वहां के खिलाडि़यों के पास खेलने की जगह नहीं रही, वहीं मिलेट्री इंजीनियरिंग सर्विस ग्राउंड नंदानगर को एयरफोर्स ने टेकओवर कर लिया, जिसकी वजह से वह ग्राउंड भी खत्म हो गया। ऐसी कंडीशन में वहां के खिलाडि़यों के लिए कोई ऑप्शन नहीं बचा।

यहां होते हैं टूर्नामेंट

- रीजनल स्पो‌र्ट्स ग्राउंड

- सेंट एंड्रयूज कॉलेज

- एमपी इंटर कॉलेज

- एमजी इंटर कॉलेज

- किसान इंटर कॉलेज

खिलाडि़यों के लिए अब कोई ग्राउंड ही नहीं बचा है। अपनी प्रैक्टिस के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है, काफी परेशानी होती है। कॉम्प्टीशन के लिए कई ग्राउंड हैं।

- सुनील पासवान, नेशनल अंडर-19 प्लेयर

नंदानगर में पहले ग्राउंड था, तो यहां काफी तादाद में खिलाड़ी प्रैक्टिस के लिए आते थे, लेकिन अब ग्राउंड पर जीआरडी का स्कूल बन गया है, इससे ग्राउंड खत्म हो गया है।

- जीत राणा, नेशनल अंडर-21

एमईएस के ग्राउंड में प्रैक्टिस होती थी, लेकिन एयरफोर्स ने उसे टेकओवर कर लिया। अब आसपास के लिए खिलाडि़यों को ग्राउंड ढूंढना पड़ता है।

- अमित पासवान, नेशनल अंडर-21

फुटबॉल की नर्सरी के लिए गोरखपुर में कोई ग्राउंड नहीं है। रीजनल स्टेडियम में खिलाड़ी तभी जाता है, जब उन्हें इसे अपना प्रोफेशन बनाना होता है, वरना कोई ग्राउंड नहीं है।

- अजय यादव, सेक्रेटरी, तालुकदार फाउंडेशन

गोरखपुर से फुटबॉल बिल्कुल नेगलेक्टेड है। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर कुछ भी नहीं है। रीजनल स्टेडियम में जो खिलाड़ी आते हैं, उन्हें कोच ट्रेनिंग देते हैं। लेकिन बाकी कहीं सबके लिए व्यवस्था नहीं है।

- हमजा खान, फुटबॉल कोच