-कुसम्हीं जंगल के रजहीं में खुली पाठशाला

-वनटांगियां के बच्चे सीख रहे हैं ककहरा

GORAKHPUR: सुबह करीब साढ़े आठ बजे का वक्त है। सहायक अध्यापक रामआशीष यादव खुले आसमान के नीचे व्हाइट बोर्ड जमा रहे हैं। एक अन्य शख्स कुर्सियां लगा रहा है। बच्चों के बैठने के लिए प्लास्टिक की बोरियां बिछाई जा रही हैं। बच्चों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। यहां नियुक्त अन्य टीचर्स भी पहुंच चुकी हैं। बच्चों को लाइन में बिठाया जाता है। एक बच्चा छड़ी लेकर व्हाइट बोर्ड पर लिखे अक्षरों को बोलना शुरू कर देता है। बाकी बच्चे दुहराते हैं। बच्चों की क्षमता आंकी जा रही है। मौजूद अध्यापक इसके हिसाब से उनका नाम रजिस्टर में दर्ज करते चलते हैं। यह नजारा है कुसम्हीं जंगल स्थित वनटांगिया बस्ती का। यहां नई-नई शुरू हुई पाठशाला से जंगल में तालीम का चिराग जल चुका है।

पाठशाला से चेहरे पर आई चमक

सीएम महंत योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर शुरू हुई पाठशाला में फिलहाल 64 बच्चों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। आमबाग नर्सरी में पेड़ के नीचे चल रही पाठशाला में 65 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। प्राथमिक विद्यालय रजहीं के सहायक अध्यापक राम आशीष यादव को बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनके सहयोग में अनुदेशक रंजना और महिला प्रेरक संध्या कुशवाहा और बबिता मौर्या बच्चों की पढ़ाई के लिए इंतजाम कर रही हैं। टेस्ट लेकर उनकी कक्षा निर्धारण करने के लिए घर-घर जाकर बच्चों को बुलाया जा रहा है।

पेड़-पत्तों में सिमट गई थी दुनियां

कुसम्ही जंगल के वनटांगियां नर्सरी में रहने वाले लोग समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ सके थे। अंग्रेजों के जमाने में बसाए गए नर्सरी के लोगों की दुनियां जंगल के पेड़-पत्तों में सिमटकर रह गई। अन्य ग्राम पंचायतों की अपेक्षा उनको किसी तरह की बुनियादी सुविधा नहीं मिल पा रही थी। बुनियादी सुविधाओं से अछूते गांव के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने की पहल हुई। रामगढ़ उर्फ रजहीं गांव के वनटांगियां नर्सरी में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाएं देने के लिए संघर्ष शुरू हुआ। वर्ष 2015 में वनटांगियां को राजस्व गांव में समाहित कर दिया गया। लेकिन गांव के लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल सकी। यहां की समस्याएं सदर सांसद महंत योगी आदित्यनाथ तक पहुंची तो उन्होंने मंडलभर के वनटांगियों मजदूरों को हक दिलाने की लड़ाई शुरू कर दी। उनके सीएम बनने के बाद नर्सरी में जिले के प्रशासनिक अफसरों की भागदौड़ बढ़ गई।

बच्चे 457, सिर्फ 31 जाते थे स्कूल

गांव के लोगों को सुविधाएं देने के लिए सर्वे कराया गया। पता चला कि गांव में रहने वाले 457 बच्चों में सिर्फ 31 बच्चे ही किसी तरह से स्कूल जा पाते थे। इनके गार्जियन मजदूरी करने के लिए निकलने के पहले आसपास किसी गांव के प्राइमरी स्कूल में छोड़ जाते थे। काम से लौटते समय वह बच्चों को घर ले आते थे। मजदूरी करने और कामकाज में उलझे गार्जियन कुछ दिन बाद खुद ही बच्चों को स्कूल ले जाना बंद कर देते थे। इससे जंगल के बीचोंबीच रहने वाले बच्चों की पढ़ाई नहीं हो सकी। सीएम के निर्देश पर 13 अप्रैल को डीएम संध्या तिवारी की मौजूदगी में पाठशाला का आगाज हुआ। पेड़ के नीचे चौपाल लगाकर बच्चों के बीच किताब-कॉपी बांटी गई।

प्रधान बनवाएंगे कटरैन का कमरा

जंगल में पाठशाला की शुरूआत आम के पेड़ के नीचे हुई है। बुनियादी सुविधाएं दे पाने में लाचार बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने पूरी जिम्मेदारी प्रधान के जिम्मे के छोड़ दी है। बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रधान रणविजय सिंह मुन्ना एक हफ्ते के भीतर कटरैन का कमरा बनवा देंगे। ताकि मौसम के असर से पढ़ाई बाधित न हो। प्रधान के प्रयास से गांव के लोग काफी खुश हैं।

बच्चों की पढ़ाई शुरू कर दी गई है। बच्चों के बीच स्कूल जाने की आदत विकसित की जा रही है। लगातार पढ़ाई चल रही है, ताकि बच्चों में रुझान बना रहे।

-राम आशीष यादव, सहायक अध्यापक

हमारी पीढ़ी मजदूरी करती रही। अब उम्मीद जगी है कि हमारे बच्चे भी पढ़ लिखकर मुख्य धारा से जुड़ सकेंगे। 13 अप्रैल को जब चौपाल लगाकर स्कूल की शुरुआत की गई तो हम लोगों को अच्छा लगा।

-विश्वभर मौर्य, मुखिया

वनटांगिया नर्सरी के लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है। मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ महाराज से मिलकर यहां की समस्याओं को बताया गया था। वनटांगियां मजदूरों को मुख्य धारा में लाने के लिए सार्थक पहल हुई है। इसके लिए हम सभी लोग महाराज जी को धन्यवाद देते हैं।

रणविजय सिंह मुन्ना, प्रधान रजहीं