- आद्री के सिल्वर जुबली कांफ्रेंस में जमीन की समस्या के मुद्दे पर लेक्चर

- घनी आबादी वाले शहरों में जमीन के स्वामित्व व अन्य समस्याएं हैं गंभीर

- बिहार में औद्योगिकरण ही है उपाय: मेघनाद देसाई

- लैंड एक्वीजिशन एक्ट में सुधार जरूरी : प्रोफेसर ब‌र्द्धन

PATNA : बिहार व यूपी जैसे घनी आबादी वाले राज्यों में जमीन की कीमत लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि कुछ शहरों की जमीन की कीमत दुनिया के महंगे शहरों की कीमत के बराबर है। लेकिन अफसोस की ऐसी स्थिति में भी संबंधित कीमती जमीन का प्रोडक्टिविटी के लिए योगदान नहीं है। ये बातें यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के प्रोफेसर प्रणब व‌र्द्धन ने कही। वे आद्री के सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन पर इंटरनेशनल कांफ्रेंस में आयोजित लेक्चर के दौरान बोल रहे थे। टॉपिक था लैंड एंड इक्विटी- सम अंडरस्टडीज इश्यूज।

कहा कि भारत के शहरी क्षेत्र और कुछ ग्रामीण क्षेत्र में जमीन की कीमत इतनी बढ़ गई है जो दुनिया के अन्य शहरों से शायद अधिक होंगे। इस प्रकार से घनी आबादी वाले शहरों में जमीन के बेहतर इस्तेमाल और यूटिलिटी की समस्या गंभीर है।

मुआवजा के साथ-साथ पेंशन

ऐतिहासिक तौर पर ग्रामीण व आदिवासी बहुल क्षेत्रों में विकास कार्यो के लिए मुआवजा दिया जाता है, जो बेहद कम होता है। इसका सही और व्यापक तौर पर जमीन के पहले मालिक को लाभ नहीं मिल पाता है। लेक्चर में आगे चर्चा करते हुए प्रणब ब‌र्द्धन ने सुझाया कि ऐसे लोगों के साथ जमीन की बिक्री का लाभ तब होगा जब उन्हें मामूली रूप से एकमुश्त राशि दिए जाने के साथ-साथ उन्हें मासिक रूप से पेंशन सुनिश्चित किया जाए। यह आंध्र प्रदेश व दक्षिण के अन्य राज्यों में शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य किसान और भूमिहीन श्रमिकों को पेंशन राशि का भुगतान सुनिश्चित करना है।

बढ़े हैं भूमिहीनता के मामले

यदि हम केवल अंतिम तीन दशकों पर गौर करें तो स्पष्ट है कि मूल कृषकों की भूमि आधे से भी कम रह गई है। इसका कारण बाजार का प्रभाव और जनसांख्यिकी भी है। कुल मिलाकर भूमिहीनता के मामले बढ़े हैं। इसका जोत की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस संबंध में ब‌र्द्धन ने सुझाया कि बिहार जैसे राज्य के लिए को-आपरेटिव पॉलिसी पर जोर देना चाहिए। सेल्फ हेल्प ग्रुप तथा किसानों द्वारा उत्पादक कंपनियों के निर्माण को एक बेहतर विकल्प माना जा सकता है। मध्य प्रदेश व तमिलनाडू में ऐसे उदाहरण देखे गए हैं।

औद्योगिकरण को बताया उपाय

पहले दिन आद्री के सिल्वर जुबली लेक्चर की अध्यक्षता करते हुए लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के सीनियर प्रोफेसर व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लार्ड मेघनाद देसाई ने कहा कि बिहार में एक बड़ी आबादी रोजगार से वंचित है। भूमि सीमित है और आबादी घनी। ऐसी स्थिति में बिहार के लिए समाधान दो माध्यमों से होगा। एक तो कृषि को सहकारिता से जोड़ा जाए। इसमें लक्ष्य निर्धारित हो। लेक्चर के बाद आई नेक्स्ट से खास बातचीत में कहा कि यहां उद्योगीकरण की जरूरत है। इससे रोजगार की समस्या दूर होगी और जनसंख्या का दबाव भी घटेगा। इस अवसर पर आद्री के डायरेक्टर प्रभात घोष, सदस्य सचिव शैबाल गुप्ता, आईजीसी, इंडिया के डायरेक्टर अंजन मुखर्जी व अन्य शामिल थे।

इन पांच बिंदुओं पर ब‌र्द्धन ने की चर्चा

- भूमि सुधार के सामान्य साम्य संबंधी प्रभाव

- भूमि वितरण पर जनसांख्यिक और बाजार प्रभावों से संबंधित भूमि सुधार का महत्व

- 'जमीन जोतने वाले को' की अपर्याप्तता

- भूमि और लैंगिंक समानता, और

- भूमि और अंतरक्षेत्री समानता

सिल्वर जुबली लेक्चर में आज

- कास्ट इन द इंडियन इकोनॉमी टॉपिक पर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के। मुंशी का लेक्चर। चेयरपर्सन होंगे एनआईपीएफपी के प्रोफेसर सुदीप्तो मंडल।