खाना खाकर भी भूल जाती हैं

पुष्पा देवी की उम्र 75 साल है। पिछले दो साल से उन्हें भूलने की आदत है। वो अक्सर खाना खाकर भी भूल जाती हैं कि उन्होंने खाना खाया है। पहले पुष्पा देवी की बहू अर्चना उनकी इस आदत से परेशान थीं। चेकअप के बाद डॉक्टर ने उन्हें डिमेंशिया की प्रॉब्लम बताई।

भूलना हर उम्र में बीमारी है

डिमेंशिया अक्सर उम्रदराज लोगों में पाई जाने वाली बीमारी है। ऐसा माना जाता है कि उम्र बढऩे के साथ याददाश्त का कमजोर होना स्वभाविक है। हर सौ में से सत्तर बुर्जुगों में डिमेंशिया की बीमारी पाई जाती है। मगर यंग ऐज में भी भूलने की आदत सामने आई हैं। ऐसा नहीं है कि यंग्स्टर में डिमेंशिया की बीमारी बढ़ रही है। दरअसल हमारा लाइफ स्टाइल और वर्क प्रेशर स्ट्रेस और उससे आगे बढ़कर डिप्रेशन की शक्ल में युवाओं को घेर रहा है। इन दोनों ही परेशानियों में भूल जाना आम आदत है।

क्यों भूल जाते हैं

जब सोचने, याद रखने और तर्क शक्ति में कमी आती है और ये रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने लगे तो भूलना एक बीमारी की शक्ल ले लेती है। इसके कई कारण हैं तो कई लक्षण भी। कारणों में ड्रग्स लेना, एल्कोहल लेना, हारमोन और विटामिन इंबेलेंस और डिप्रेशन सबसे आगे हैं। डिमेंशिया नाम की इस बीमारी में ब्रेन का लर्निंग वाला पार्ट इफेक्टिड होता है। डिमेंशिया का सबसे कॉमन कॉज एल्जाइमर्स डिसीज हैं। कई डिसऑर्डर्स भी डिमेंशिया का शिकार बनाते हैं और अधिकतर मामलों में ट्रीटमेंट बहुत फायदेमंद नहीं रहता।

पर्सनेल्टी और मूड भी

डिमेंशिया एक ऐसी बीमारी है जिसका व्यक्ति की  पर्सनेल्टी से लेकर मूड और व्यवहार तक पर असर दिखाई देता है। जिन लोगों को ये प्रॉब्लम होती है वो कुछ रिजर्व नेचर के हो जाते हैं। साथ ही उनकी सहन शक्ति भी बहुत कम हो जाती है।

ये हैं खास कारण

-न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डस

-एल्जाइमर

-ब्लड फ्लो से जुड़ी वस्कुर्लर डिसीज

-मल्टी इंफ्रेक्ट डिसीज

-एचआईवी इनफेक्शन

-मल्टीपल स्ट्रोक

-क्रॉनिक ड्रग यूज

-डिप्रेशन

-ब्रेन इंजरी, ट्यूमर

अक्सर भूल जाते हैं

-अपना मोबाइल कहीं रखकर भूल जाना।

-पेन या हाथ में कैरी करने वाली डायरी आदि को भूलना।

-चश्मा भूल जाना।

-मेडिसिन खाना भूल जाना।

-अपना सामान रखकर भूलना।

-बात करते-करते अचानक टॉपिक भूल जाना।

-किसी से सामान लेकर भूल जाना।

महामारी की शक्ल ले रहा डिमेंशिया

डिमेंशिया की बीमारी देश में अब महामारी की तरह फैल रही है। इससे ग्रसित 60 वर्ष की उम्र से ऊपर वाले व्यक्तियों की संख्या 92 मिलियन हो गई है। यदि इसे नहीं रोका गया तो इस बीमारी के मरीजों की संख्या 20 फीसदी और बढ़ जाएगी। भारत में 31 लाख लोग अल्जाइमर से पीडि़त हैं। जिसमें से उत्तर प्रदेश में साढ़े चार लाख लोग हैं। यही हाल रहा तो साल 2020 तक यह संख्या दोगुनी हो जाएगी। एक हजार में 19 पुरुष एवं 49 महिलाएं डिमेंशिया से ग्रस्त हैं। यह आंकड़ा शहरी क्षेत्र में और भी ज्यादा भयानक है। शहरी इलाकों में हजार में से 33 पुरुष एवं 55 महिलाएं डिमेंशिया की शिकार हैं। सीटी स्कैन से इस बीमारी की डायग्नोसिस कर रोग की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है। अक्सर देखा गया है कि डिमेंशिया से पीडि़त व्यक्ति की देखभाल करने वाला भी तनाव में आ जाता है और खुद इसकी गिरफ्त में फंसता जाता है। ऐसे लोगों को बीमारी की गिरफ्त में आने से बचाने के लिए परिवार केलोगों को चाहिए कि उसे तनाव मुक्त रहने में मदद करें। डिमेंशिया की शुरुआत में याद्दाश्त की कमी पैदा होती है जो बढ़ती जाती है। व्यक्तित्व में न्यूरोलॉजिकल (नसों से संबंधित) जैसे कि हाथ-पैर में कंपन, चलने में शिथिलता एवं लडख़ड़ाहट, आवाज में लडख़ड़ाहट जैसे लक्षण मरीज में आने लगते हैं।

"भूलने की आदत हर उम्र में बीमारी होती है। डिमेंशिया अक्सर उम्रदराज लोगों को होती है। इसलिए ट्रीटमेंट में बहुत ज्यादा फायदा होने की उम्मीद नहीं होती."

-डॉ। विकास सैनी, साइकेट्रिस्ट