समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस गांगुली सोमवार शाम राज भवन पहुंचे और उन्होंने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया.

जस्टिस गांगुली की राज्यपाल के साथ मुलाकात क़रीब 45 मिनट तक चली.

उनसे जब बाद में पूछा गया कि क्या उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया है तो उन्होंने कहा, "मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा."

पूर्व एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने जस्टिस गांगुली के इस्तीफ़े पर टिप्पणी करते हुए कहा, "यह अच्छी बात है कि उन्होंने मुझसे बात करने के एक दिन बाद इस्तीफ़ा दे दिया."

सही फ़ैसला

उन्होंने कहा कि जस्टिस गांगुली ने एक दिन पहले उन्हें फ़ोन करके कहा था कि वह इस्तीफ़ा देने पर विचार कर रहे हैं.

जस्टिस गांगुली के इस्तीफ़े की जोर-शोर से मांग कर रही अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल  इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उन्हें काफ़ी पहले ही इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था. उन्होंने कहा कि यह सही फ़ैसला है.

जस्टिस गांगुली का यह फ़ैसला केन्द्रीय मंत्रिमंडल के गुरुवार को लिए गए इस फ़ैसले के बाद आया है जिसमें इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति की राय भेजे जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी.

मंत्रिमंडल के इस क़दम जस्टिस गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाए जाने की दिशा में एक कड़ी माना जा रहा था.

आरोपों की पुष्टि

इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित तीन न्यायाधीशों की एक समिति ने जस्टिस गांगुली पर लगे आरोपों की पुष्टि की थी.

समिति ने कहा कि इंटर्न के लिखित एवं मौखिक बयान से प्रथम दृष्टया लगता है कि जस्टिस गांगुली ने उसके (पीड़िता के) साथ 24 दिसंबर 2012 को दिल्ली के ली मैरिडियन होटल में अशोभनीय आचरण किया था.

जस्टिस गांगुली ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि कुछ ताक़तवर लोग उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने उनके ख़िलाफ़ चंद फ़ैसले किए थे.

जस्टिस गांगुली ने पिछले महीने भारत के प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम को लिखे  पत्र में कहा था कि उन्होंने लॉ इंटर्न को कभी परेशान नहीं किया तथा न ही कभी उसके या किसी अन्य महिला इंटर्न के प्रति अवांछित व्यवहार किया.

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