इस आदेश मे एक तरह से मधुमक्खी के छत्ते को ही हिलाकर रख दिया है क्योंकि सभी राजनीतिक दल इस फ़ैसले से खुश नज़र नहीं आते.

भारतीय जनता पार्टी सहित विभिन्न दलों का मानना है कि सरकार इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक जल्द ही बुलाए ताकि कोई बीच का रास्ता निकल पाए.

भारतीय जाता पार्टी के प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के ग़लत इस्तेमाल की आशंका ज़्यादा है.

उन्होंने कहा, "चुनाव सुधार की दिशा में लगभग एक दशक से कोई काम नहीं हुआ है. आखिरी बार 2003 में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल के दौरान ही चुनाव सुधार हुए थे. सरकार को चाहिए कि सभी दलों और दूसरी संस्थाओं को साथ लेकर चुनाव सुधार की दिशा में काम करे."

सर्वदलीय बैठक की मांग

भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि चुनाव सुधार से संबंधित कई समितियों की रिपोर्टें अभी तक लंबित हैं. मसलन, गोस्वामी समिति, इन्द्रजीत गुप्ता समिति, विशी आयोग और जॉइंट पार्लियामेंट्री समिति की रिपोर्टें.

नकवी का कहना है कि सरकार सभी समितियों की रिपोर्टों का अवलोकन करे और सभी से चुनाव पर चर्चा करे.

सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करने वालों में समाजवादी पार्टी भी शामिल है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता कमाल फ़ारूकी कहते हैं सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति को अपराध मुक्त करने के लिए इलाज तो ज़रूर सुझाया है मगर ये इलाज भी 'ख़तरनाक' है. उनका कहना है कि इस आदेश के दुरुपयोग की आशंका ज़्यादा है क्योंकि सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर सकता है.

'कानून बनाना संसद का काम'

इससे पहले समाजवादी पार्टी के शिवपाल यादव ने इस मुद्दे को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग की है.

समाजवादी पार्टी का कहना है कानून बनाना संसद का काम है.

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के एक अनुच्छेद के तहत अगर कोई सांसद या विधायक किसी आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे कुर्सी छोड़ने की ज़रुरत नहीं थी और उसे ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए तीन महीनो की मोहलत का प्रावधान था.

मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि सजा सुनाए जाने के साथ ही ऐसे राजनेताओं की संसद और विधान सभा की सदस्यता रद्द हो जानी चाहिए.

फ़ैसले पर सवाल

इतना ही नहीं अदालत ने यहां तक कह दिया कि यदि किसी राजनेता पर किसी थाने में अगर मामला दर्ज होता है तो उसे भी चुनाव लड़ने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए.

इसपर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण का कहना है कि ये आदेश सही नहीं है.

प्रशांत भूषण ने बीबीसी से कहा, "चुनाव के दौरान नामांकन की प्रक्रिया चंद हफ़्तों की ही होती है. अगर इस दौरान किसी पर विद्वेषपूर्ण तरीके से कोई मामला दर्ज करता है तो उसे चुनाव लड़ने से वंचित होना पड़ेगा. ये सही नहीं है क्योंकि हर कोई अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ मामले दर्ज कर उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश करेगा. इसपर विचार होना चाहिए.”

प्रशांत भूषण का कहना है कि दूसरे आदेश को लेकर सरकार को अदालत में रिव्यू पेटीशन दायर करनी चाहिए.

International News inextlive from World News Desk