18 वर्ष की उम्र में शुरू किया काम, साढ़े छब्बीस साल में मिल गया मुकाम

पीजीटी 2013 फाइनल रिजल्ट में बाजी मार युवाओं के लिए नजीर बने रमाकांत

ALLAHABAD: मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, स्वप्न के पर्दे निगाहों से हटाती हैं, हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर, ठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैं। यह बात आई नेक्स्ट के समाचार पत्र विक्रेता रमाकांत मौर्य पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। आर्थिक तंगी को झेलते और हर पड़ाव को पार करते आज रमाकांत ने सफलता की वो नई इबारत लिख डाली है जो मुश्किल वक्त में हर युवा के लिए नजीर है। रमाकांत ने माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा जारी पीजीटी 2013 के फाइनल रिजल्ट में कामयाबी हासिल की है। इस सफलता से आने वाले कुछ ही दिनो में अब वह इंटरमीडियट कॉलेज के लेक्चरर कहलाएंगे।

साथी छात्रों ने किया उत्साह वर्धन

अपनी सफलता से चहकते वेंडर रमाकांत ने आई नेक्स्ट से हुई बातचीत में बताया कि उनके पिता रामआसरे एक गरीब किसान हैं। उनके परिवार की ऐसी हालत नहीं है कि वे घर पर रहकर पढ़ाई जारी रख पाते। ऐसे में उन्हें वर्ष 2009 में महज 18 वर्ष की उम्र में इलाहाबाद में सलोरी स्थित लाला की सरांय में रहकर पेपर बांटने का काम शुरू किया। पहले तो इस काम में झेप महसूस हुई, लेकिन जैसे जैसे वक्त गुजरा उनके साथ रहने वाले बाकी छात्रों ने उनका खूब उत्साहवर्धन किया। सपोर्ट के लिये उनके एरिया के छात्र सिर्फ उन्हीं से पेपर भी खरीदते थे। उनके अलावा उनके शिक्षक और साथी छात्रों को विश्वास था कि उन्हें एक न एक दिन सफलता जरुर मिलेगी।

प्रोफेसर बनने का है सपना

वहीं अब वह महज साढ़े छब्बीस साल की उम्र में सफलता के मुकाम पर हैं। रमाकांत का टार्गेट पीजी कॉलेज में प्रोफेसर बनने का है। उन्होंने बताया कि इस लम्बे सफर में कई बार ऐसा वक्त आया जब घरवालों और रिश्तेदारों के उन्हें ताने भी सुनने पड़े। ग्राम सुखीपुर आजमगढ़ के मूल निवासी रमाकांत ने वर्ष 2011 में संस्कृत विषय में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एमए पास किया। इसके बाद उन्होंने यूजीसी नेट का भी एग्जाम क्वालीफाई किया। वे अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षक सर्वज्ञ भूषण एवं साथी वेंडर सितर्जन पाल एवं महेश कुमार को देते हैं। रमाकांत के बड़े भाई लक्ष्मीकांत चाय बेचते हैं। उनकी दो बहने रेखा और सरोजा हैं। रमाकांत कहते हैं कि वे नौकरी में ज्वाइनिंग लेने तक पेपर बांटने का काम जारी रखेंगे।