ज्यादा देर तक कॉन्टैक्ट में न रहें
आसपास की दुनिया को रोशन करने वाली एलईडी लाइट्स आपके जीवन में अंधेरा कर सकती हैं। दिखने में खूबसूरत और इलेक्ट्रिसिटी बचाने वाली इन एलईडी लाइट्स के कॉन्टैक्ट में ज्यादा देर तक रहना खतरनाक साबित हो सकता है। दरअसल इनसे निकलने वाले हाई लेवल रेडिएशंस आंखों की रेटिना को पूरी तरह से डैमेज कर देता है। जिससे व्यक्ति की आंखों की रोशनी खत्म हो सकती है। मेड्रिड की कमप्ल्यूटेंस यूनिवर्सिटी में एक दर्जन से ज्यादा साइंटिस्ट ने पांच लोगों के ऊपर एक रिसर्च की। इन लोगों को 24 घंटे में से 12 घंटे एलईडी लाइट्स के बीच ही रखा गया। कई दिनों के बाद जब इनकी आंखों को टेस्ट किया गय तो वो काफी वीक हो गईं थी। साइंटिस्ट की टीम ने रिपोर्ट में इस बात का जिक्र भी किया गया है कि एलईडी लाइट्स एक बेहतर विकल्प हैं लेकिन जरूरी है कि इनका यूज पूरी एहतियात और प्रोटेक्शन के साथ किया जाए।


आटोमोबाइल्स में खौफनाक नीली रोशनी
रिसर्च में इस बात को कोट किया गया है कि सबसे ज्यादा नुकसान ब्लू एलईडी से होता है। शॉकिंग फैक्ट ये है कि इन ब्लू एलईडी का यूज इस वक्त कम्प्यूटर्स, मोबाइल, टीवी और स्ट्रीट लाइट्स में बड़े पैमाने पर हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक और ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट अजय साहनी बताते हैं कि मौजूदा समय में फोर व्हीलर्स में भी हाईबीम के लिए ज्यादातर लोग ब्लू एलईडी लाइट्स लगवा रहे हैं। जो हाईवे में सामने से आने वालों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति लगातार 25 मिनट तक इनको देखे तो वो अंधा हो सकत है।

एक साल में 6000 घंटे
सीनियर आई सर्जन डॉक्टर आकाश मेहता के मुताबिक एक व्यक्ति एक साल में लगभग 6000 घंटे अपनी आंखें खोले रहता है। मॉडर्न लाइफ स्टाइल में इनमें से ज्यादातर समय व्यक्ति आर्टिफिशियल लाइट्स के बीच में रहता है। जिसकी वजह से उसकी आंखों को ज्यादा नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। आज के दौर में एलईडी लाइट्स को ज्यादा प्रिफरेंस दी जा रही है। इलेक्ट्रिसिटी मार्केट के बिजनेस का ग्राफ भी बता रहा है कि पिछले दो सालों में एलईडी लाइट्स का बिजनेस लगभग दोगुना बढ़ गया है। ऐसी कंडीशन में डॉक्टर्स का कहना है कि आंखों के डैमेज को कम करने के लिए लगातार आंखों को खोले रखने से बेहतर है कि बीच-बीच में आंखों को झपकाते रहें।


Blue radiations more dengerous
एलईडी लाइट्स एक बेहतर विकल्प है लेकिन इनका यूज प्रोटेक्शन के साथ ही होना चाहिए। एक्सपर्ट के मुताबिक एलईडी लाइट्स से निकलने वाली ब्लू रेडिएशंस आंखों के रेटिना को डैमेज कर देती हैं। डॉ। आरसी गुप्ता बताते हैं कि रेटिना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जिसे मेकुला कहते हैं। एलईडी लाइट्स की ‘हाई इंटेनसिटी’ के कांटेक्ट में आने से जल जाता है। डॉ। हेमंत मोहन ने बताया  कि रेटिना के इस डैमेज को दोबारा सही नहीं किया जा सकता है। रेटिना को किसी भी कीमत में डैमेज नहीं होने देना चाहिए। इसको बचाने के लिए जो भी हो सके वो प्रिकॉशन लेने चाहिए। क्योंकि आंखें अनमोल हैं।

Remember this
-हमारी आंखों की देखने की एक निश्चित क्षमता होती है।
-आंखों की विजिबिल वेवकंथ ऑफ लाइट्स 400 से 700 मिली माइक्रॉन होती है।
-400 से कम या 700 से ज्यादा विजिबिल वेवलेंथ ऑफ लाइट्स आंखों की रेटिना डैमेज कर सकती है और एलईडी लाइट्स कुछ इसी फ्रिक्वेंसी की रोशनी देती है।
-लाइट्स की इंटेंसिटी भी ज्यादा होने से रेटिना को नुकसान होता है।
-एलईडी लाइट्स से निकलने वाली रेडिएशंस की इंटेंसिटी 700 मिली माइक्रान से ज्यादा होती हैं।
-लाइट्स की इंटेनसिटी हाई होने की वजह से आंखों की रेटिना का सबसे इम्पॉर्टेंट पार्ट मेकुला बर्न हो जाता है।
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इन बातों का ध्यान रखें
-ब्लू एलईडी की रोशनी की चमक को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक इक्यूपमेंट्स में फिल्टर लगाए जा सकते हैं।
-इसके बेड इफेक्ट को कम करने के लिए थोड़े-थोड़े समय बाद आंखों को झपकाना फायदेमंद रहता है।
-यूवी फिल्टर रेज वाले सनग्लासेस का यूज करें, ब्लैक सनग्लासेस का भी यूज कर सकते हैं।
-विटामिन ए से भरपूर डाइट को अपने खाने में शामिल करें।
-एलइडी लाइट का फुल फॉर्म है

एलईडी लाइट्स का यूज आजकल ज्यादातर इलेक्ट्रॉनिक चीजों में हो रहा है। पर फिर भी आप इसकी खतरनाक रेडिएशंस से अपनी आखों को बचा सकते हैं। इसके लिए आपको एक कम्प्टयूटर पर काम करते वक्त और टीवी देखते वक्त एक स्पेशल गॉगल्स का यूज करना चाहिए। कोशिश करिए की घर में एलईडी लाइट्स का यूज कम से कम करिए। आंखों में थोड़ी सी भी प्रॉब्लम होने पर तुरंत डॉक्टर से कॉन्टैक्ट करें।
-डॉ। अवध दुबे, सीनियर आई स्पेशलिस्ट