भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ। राजेंद्र प्रसाद को रोलेक्स कम्पनी ने 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र के जन्म पर 18 कैरेट सोने की कलाई पर बांधने वाली एक घड़ी तोहफ़े में दी थी। मशहूर सथबी नीलामी घर उसी घड़ी को 13 नवंबर को स्विट्ज़रलैंड में नीलाम करेगी।

डा राजेंद्र प्रसाद के परपोते डा अशोक प्रसाद जो अभी गोरखपुर में रहते हैं, उन्होंने इस नीलामी को रोकने के लिए स्विट्ज़रलैंड स्थित भारतीय राजदूत चित्रा नारायणन को दो बार ईमेल भेजकर आग्रह किया कि इस नीलामी को रोका जाए और इस घड़ी को वापस भारत लाकर संग्राहलय में रखा जाए। आख़िरी ईमेल भेजे हुए एक सप्ताह से ज़्यादा वक्त हो चुका है पर अबतक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है।

निराशा

अशोक प्रसाद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उन्होंने इस ईमेल में यूनेस्को के चार्टर का हवाला भी दिया है जिसके हिसाब से भारतीय सरकार इस नीलामी को रोकने के लिए दख़ल दे सकती है।

सरकार के ठंडे रवैए से निराश होकर अशोक प्रसाद कहते हैं,“अफ़सोस तो हो रहा है। ये राष्ट्रीय संपत्ति है। डॉ। राजेंद्र प्रसाद की विरासत एक घड़ी की मोहताज तो नहीं है और ये हम अपने लिए तो मांग नहीं रहे हैं। हम सरकार से तो कुछ भी नहीं मांग रहे हैं। लेकिन अगर देश को इसकी क़ीमत नहीं समझ में आ रही है तो ठीक है शायद जो बोली लगाकर इसे ख़रीदेगा, वो इसकी ज़्यादा इज़्ज़त कर पाए.”

अशोक प्रसाद बताते हैं कि 1963 में उनके परिवार के पटना स्थित घर से ये घड़ी चोरी हो गई। इस नीलाम घर ने ये घोषणा की है कि ये घड़ी डॉ। राजेंद्र प्रसाद की है। लेकिन नीलाम घर का कहना है कि ये चीज़ नीलामी के लिए इसी लिए रखी गई है क्योंकि वो चोरी की गई वस्तुओं की सूची में नहीं है। " अगर सरकार 13 नवंबर तक न जागी तो भारत के पहले राष्ट्रपति की सोने की घड़ी शायद किस्से कहानियों का हिस्सा भर बन कर रह जाए।

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