देहरादून:  दुकानों पर सरेआम लेपर्ड के नाखून बिकने के दून में आए दो मामलों ने वन विभाग की कार्य शैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह उठाया जा रहा है कि वन विभाग जब भी लेपर्ड या टाइगर जैसे किसी वन्य जीव की मौत की पुष्टि करता है, तो उसके साथ यह ब्योरा भी रखा जाता है कि इन जीवों के अंग मिले हैं या नहीं। पिछले कुछ सालों में वन विभाग ने इन वन्य जीवों का जो रिकॉर्ड रखा है, उसमें 37 लेपर्ड और 6 टाइगर को ही शिकारियों द्वारा मारे जाने की बात कही गई है।

 

तो गुपचुप हो रहा है शिकार

वन्य जीवों का शिकार लगातार होता रहा है, लेकिन अब वन कानून सख्त हो जाने के कारण ऐसे मामलों में कमी दर्ज हुई है। वन्य जीवों की मौत के ज्यादातर मामलों में वन विभाग ने जीवों के कीमत अंग बरामद कर दिये जाने का भी दावा किया है, फिर भी बाजारों में लेपर्ड के नाखून बिकने के मामले ने विभाग की चिंता बढ़ा दी है।

 

विभाग कर रहा छानबीन

दो दुकानों पर लेपर्ड और उल्लू के नाखून बिकने के मामले की पुलिस जांच कर रही है, लेकिन वन विभाग भी इस मामले में जानकारी जुटाने का प्रयास कर रहा है कि आखिर लेपर्ड के नाखून दुकानों तक कैसे पहुंचे और इन जीवों की हत्या उत्तराखंड के ही जंगलों में हुई या कहीं और से नाखून यहां लाये गये। अब तक इस मामले में कोई ठोस जानकारी विभाग को नहीं मिल पाई है।

 

37 लेपर्ड मारे गये 18 साल में

वन विभाग के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2001 से अब तक राज्यभर में कुल 37 लेपर्ड और 6 टाइगर शिकारियों के हाथों मारे गये हैं। इनमें भी ज्यादातर के अंग वन विभाग ने बरामद करने का दावा किया है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अब भी लगातार इन दुर्लभ होते जा रहे वन्य जीवों का शिकार किया जा रहा है और विभाग को पता ही नहीं चल पा रहा है।

 

शिकारियों पर विभाग लगातार नजर रखता है। जहां तक लेपर्ड के नाखून मिलने की बात है तो इस बारे में जांच की जा रही है कि ये नाखून लेपर्ड के ही हैं या किसी और जीव के। यह भी पता लगाया जाएगा कि ये देहरादून की दुकानों में कैसे पहुंचे।

जयराज, पीसीसीएफ, उत्तराखंड