स्कूल में लादे गए बोझ से बच्चे अपना बचपन खो रहे हैं। अंजाने में गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। आई नेक्स्ट अपने राउड टेबल डिकशन की फाइंडिंग्स को सीबीएसई स्कूलों के संगठन ‘सहोदय’ को बाकायदा लिखित में भेजेगा, ताकि बच्चों के स्कूल बैग को हल्का करने पर एक राय बनायी जा सके। सहोदय के मेंबर और सीबीसई की तरफ से सिटी कोआर्डिनेटर प्रिंसीपल एचएम राउत ने भरोसा दिलाया है कि वो सभी स्कूलों को एक राय बनाने के लिए प्रयास करेंगे ताकि स्कूल बैग का वजन कम हो सके और बच्चे, पेरेंट्स राहत महसूस कर सकें।

किताबें सीमित हों
ग्रेट एजूकेशन केन बी प्रोवाइडेड विदाउट बुक्स। डिस्कशन में किताबों को लेकर गंभीर बहस हुई। दीवान पब्लिक  स्कूल के प्रिंसीपल का सुझाव था कि पांचवी क्लास तक के बच्चों पर किताबों का वजन कम से कम होना चाहिए। सवाल उठा कि स्कूल बैग बिल 2006 में सुझाए गए बिंदुओ और सीबीएसई की गाइड लाइन का पालन क्यों नहीं होता? राउत ने कहा कि हिंदी, इंग्लिश और मैथ्स के अलावा और किसी भी सब्जेक्ट की बुक को डेली स्कूल में नहीं लाना चाहिए। बाकी सभी सब्जेक्ट बिना बुक्स के पढ़ाए जा सकते हैं। बल्कि टीचर को अपनी स्पेसमेन कापी से ही स्कूल में पढ़ाना चाहिए। इससे किताबों का बोझ नहीं होगा। डिस्कशन में अनुराग गुप्ता, आरडी त्यागी आदि ने वजन कम करने की जरूरत पर बल दिया। बैठक में ये बात सामने आई कि सभी स्कूल अलग-अलग राह पकड़ेंगे तो स्कूल बैग का बोझ कम नहीं हो पाएगा। बोझ कम करना है तो सभी स्कूलों को एकजुट होकर बच्चे के हित में कदम उठाने होंगे। फिर सवाल आया कि आखिर गड़बड़ी किस स्तर पर है?

पब्लिशर की चलेगी तो.
क्या पब्लिशर्स और स्कूल वाले मिलकर मोटे कमीशन के लिए अपनी महंगी किताबें थोपते हैं? एमएच राउत ने बताया कि हमारे यहां कम से कम किताबें रखी गई हैं। खासकर पांचवी तक। उन्होंने माना कि कमर्शियलाइजेशनके कारण कई पब्लिशर अपने फायदे के लिए एक ही सब्जेक्ट की कई तरह की बुक्स छापते हैं। लेकिन स्कूलों को कोर सब्जेक्ट का ध्यान रखते हुए बुक्स कम करनी चाहिए। इससे बच्चों पर बोझ घटेगा। एसबीएस पब्लिक स्कूल के हेड आरडी त्यागी ने कहा कि पब्लिशर्स के कहे अनुसार ही स्कूल चलने लगे तो स्कूल बैग का वजन कभी कम नहीं हो पाएगा। एजेंल्स एकेडमी की कीर्ति गुप्ता ने भी सहमति जताई।

टाइम टेबल से नहीं लाते बैग
राउंड टेबल डिस्कशन में स्कूलों का कहना था कि कई बार बच्चे सारी किताबें और कापी लाते हैं। टाइम टेबल के हिसाब से अपना बैग नहीं लाते। पेरेंटस भी अपने बच्चों का बैग कभी चेक नहीं करते हैं। स्कूल में टीचर्स कभी चेक नहीं करते कि बच्चा जरुरी बुक्स के अलावा फालतू का सामान तो कैरी नहीं कर रहे। अगर ध्यान दिया जाए तो इससे भी बोझ कम होगा। अक्सर कई स्टूडेंट्स अपने ट्यूशन वाली कापी और क्रिकेट बैट या कोई और इक्युपमेंट ले आते हैं जिससे अनवांटेड वेट बढ़ता है। डिस्कशन में एक्सपर्टस का कहना था कि हैवी मैटीरियल रखना हो तो बैग की फस्र्ट पाकेट में ही हैवी किताबें रखनी चाहिए। जो कमर से टच होने वाले एरिया में हो, इससे वजन कम महसूस होता है।

वर्कशीट हो ज्यादा
स्कूल बैग के वजन को कम कैसे किया जाए। इस पर सभी ने अपनी राय व्यक्त की। जो सुझाव आए उसमें
1.बच्चों को नोट बुक्स की जगह वर्कशीट में ही सारा काम कराना चाहिए। ये वर्कशीट स्कूल में ही स्टूडेंटस को दी जाए और बाद में स्कूल अपने पास ही रखें। इससे बच्चे पर नोट बुक्स का वजन कम होगा।
2. बुक्स को क्वार्टरली बेसिस पर डिवाइड कर दिया जाए। एक क्वार्टर के हिसाब से एक ही बुक में सभी जरूरी सब्जेक्टस को जोड़ दिया जाए। ताकि एक की बुक से काम चल सके।
3. नोट बुक्स का फार्मेट खत्म कर देना चाहिए।
4. दक्षिण भारत के कई स्कूलों में एक ही बुक होती है। जिसमें सभी जरूरी सब्जेक्ट के पार्ट होते हैं। ये बुक दो पार्ट में होती है। हाफ इयरली एग्जाम से पहले एक सेट और बाद में दूसरा सेट इस्तेमाल किया जाता है।
5. इस तरह के कोर्स बनाए जाने चाहिए जिससे बुक्स का बर्डन कम हो सके।
6. पब्लिशर्स के अनुसार ना चलकर बच्चों की क्षमता और जरूरत को ध्यान में रखकर किताबें तय होनी चाहिए।

पेरेंट्स ध्यान दें
- बच्चों की जिद पर पेरेंटस उनकी पसंद का फैंसी टेडी बियर वाला बैग तो दिलवा देते हैं, लेकिन वो ये चेक करना भूल जाते हैैं कि बैग का वजन कितना है। ऐसे बैग्स का वजन डेढ़ से दो किलो के बीच में होता है। उसके में दो किलो किताबें डालते ही उसका वजन चार किलो हो जाता है। लेकिन पेरेंट्स इस बात पर ध्यान नहीं देते। चेक करना चाहिए कि बैग का मैटीरियल कैसा यूज किया गया है। स्कूल बैग की स्ट्रैप फोम वाले और चौड़े हों ताकि बैग का सारा वेट कंधे पर एक ही प्वाइंट पर ना पड़े और बच्चे को स्कायलोसिस जैसी बीमारी ना हो। बच्चों को स्कूल में वाटर बॉटल लाने के बजाए स्कूल में ही लगे वाटर प्यूरीफायर से ही पानी पीना सुनिश्चित हो तो बैग का वेट और कम रहेगा।

मिले सुझाव
- स्कूलों को एसेंब्ली में स्टूडेंटस को बताएं कि वो अनवांटेड वेट कैरी ना करें।
- टीचर्स को चाहिए कि वो छोटे बच्चों की डायरी में पेरेंटस नोट लिखें ताकि पेरेंट्स बच्चों के स्कूल बैग को चेक करते रहें।

कंप्यूटर इन प्री स्कूल
- प्री स्कूलों में तो कंप्यूटर एजूकेशन होनी ही नहीं चाहिए।
- सीबीएसई ने भी कहा है कि छोटे बच्चों को कंप्यूटर से दूर रखें।
- लगातार कंप्यूटर स्क्रीन देखने से बच्चों की आंखों पर बुरा असर पड़ता है।
- कंप्यूटर और टीवी मोबाइल के चक्कर में बच्चों ने खेलना कूदना बंद कर दिया है, जो उनके विकास के लिए जरूरी है।
- आज-कल के बच्चे कंप्यूटर ऐज में ही पैदा हुए हैं। इन्हें कंप्यूटर सिखाने की जरूरत नहीं ये अपने आप सब सीख जाएंगे।

जंक फूड इन कैंटीन
हर स्कूल की कैंटीन में खाने के नाम पर जंक फूड बेचा जा रहा है। स्कूल के बाहर भी ये सिलसिला चल रहा है। इस पर आरडी त्यागी ने कहा कि सारा कुछ स्कूल के हाथ में होता है। स्कूल चाहे तो इन सब पर लगाम लगा सकता है। कीर्ति गुप्ता ने बताया कि, हमारे प्री स्कूल में अगर कभी बच्चा लंच नहीं लाता है तो उसे स्कूल कैंटीन में आया द्वारा खाना बनवाकर खिलाया जाता है। लेकिन उसे जंक फूड नहीं दिया जाता। डॉ। सैनी ने कहा कि स्कूल मैनेजमेंट को इन सब चीजों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। राउत ने कहा कि इस बारे में स्कूलों को जागरुक होना पड़ेगा।

पेरेंट्स एकजुट हों, सुनने को मजबूर होंगे स्कूल
सरदार भगत सिंह ने कहा था कि बहरों से सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है। ऐसा ही कुछ फिर से करने की जरूरत है। पेरेंटस चाहते है कि मेरठ पेरेंटस एसोसिशन के पदाधिकारी खुलकर अपनी बात कहें। डीएम से अपनी बात कहने और शासन स्तर तक बात पहुंचाने की बात हो रही है। लेकिन एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारी स्कूल वालें और पब्लिशर्स के हितों की राग अलाप रह हैं, बच्चे और पेरेंट्स की नहीं।

किताबें, ड्रेस एक ही दुकान से क्यों?
एक ही दुकान को किताब, ड्रेस और स्टेशनरी का ठेका देने का विरोध हुआ। डिस्कशन में प्रिंसीपल राउत ने सफाई दी कि हमारे स्कूल में ऐसी कोई कंडीशन नहीं रखी गई है कि सारी किताबें एक ही दुकान से लेनी है। स्कूल की तरफ से सिर्फ एक सुझाव दिया जाता है। पेरेंट चाहें तो कहीं से भी खरीद सकते हैं। वैसे भी हमारे यहां पर कुछ ही किताबें प्राइवेट पब्लिशर्स की होती हैं। सिक्स से ट्वेल्व तक आधी किताबें एनसीईआरटी की लगाई जाती हैं।

40 की किताब 140 में क्यों?
ये मिलीभगत से होता है। पब्लिशर का खेल है। कई बार तो किताबों पर रेट ही नहीं छापे जाते है। जिन पर छापे जाते हैं उन पर बुक सेलर येलो टैग लगाकर नए रेट लिख दिए जाते हैं। इन पब्लिशर और बुक सेलर्स पर अंकुश लगाना थोड़ा कठिन है।

मोरल साइंस की भी बुक
डिसकशन के दौरान एक हास्यास्पद बात समाने आई। एचएम राउत ने बताया कि कुछ स्कूलों में तो मोरल साइंस की किताबें लगा दी गई हैं। जिनका बाकायदा एग्जाम भी होच है। बच्चे से सवाल किया जाता है, वाट इज आनस्टी? बच्चा भले ही कितना भी ऑनेस्ट हो, लेकिन अगर वो सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो उसे नंबर जीरो ही मिलेंगे।

ये बच निकले
राउंड टेबल डिसकशन के लिए आई नेक्स्ट ने शांति निकेतन गल्र्स स्कूल के डायरेक्टर विशाल जैन, ट्रांसलेम एकेडमी के प्रिंसीपल सुधांशु शेखर और दीवान इंटर नेशनल के प्रिंसीपल नरेशपाल सिंह को भी इनवाइट किया गया था, लेकिन ये लोग नहीं आए। विशाल जैन ने लास्ट मोमेंट तक आने के लिए सहमति जाहिर की थी। लेकिन वो भी आए नहीं। पता नहीं उन्हें किसी बात का डर था?

National News inextlive from India News Desk