'डंडे से पता करता हूं आदमी कच्चा है या पका'

तपस्विनी मुक्ताबाई की ओर देखते हुए कुम्हार ने कहा, 'इससे ठोककर मैं पता लगाता हूं कि घड़े कच्चे हैं या पके.' इस पर मुक्ताबाई ने फिर मुस्कुरा कर कुम्हार से पूछा, 'क्या इससे इंसानों को ठोककर पता लगा सकते हैं कि वे कच्चे हैं पके. आखिर हम भी तो मिट्टी के ही बने हैं.' इस पर कुम्हार ने कहा, 'हां-हां, क्यों नहीं! अभी डंडे से ठोककर आपको बताता हूं कौन इंसान कच्चा है और कौन पका.' इतना कहकर उन्होंने चाक पर मिट्टी छोड़कर डंडा हाथ में थाम कर खड़े हो गए.

डंडा लेकर एक-एक इंसान के सिर पर ठोकने लगे

डंडा लेकर कुम्हार भगवत चर्चा कर रहे संतों की ओर बढ़े. मुक्ताबाई ने यह देखा तो अपने मुंह पर हाथ रख लिया. वे मन ही मन मुस्कुरा कर सोचने लगीं कि देखें अब क्या होता है. इधर कुम्हार डंडा लेकर एक-एक संत के सामने जाता और डंडे से उसके सिर पर धीरे से ठोकता और आगे बढ़ जाता. कुछ संतों ने उसकी हरकत को कौतूहल समझ कर अनदेखा कर दिया, कुछ को लगा इसमें कुछ रहस्य है तो कुछ ने इसे महज मजाक समझ कर अनदेखा कर दिया. सब संत अनदेखा कर रहे थे लेकिन नामदेव अंदर ही अंदर गुस्से से जले जा रहे थे. उन्हें उस कुम्हार की हरकत से अपमान महसूस हो रहा था.

अहंकार रूपी सर्प के होते हुए कोई संत कैसे?

यह नामदेव के तमतमाए चेहरे से साफ झलक रहा था. कुम्हार ने उनके सिर पर डंडा रखते हुए कहा, 'यह घड़ा अभी कच्चा है.' इतना सुनते ही सब नामदेव की ओर देखने लगे. कुम्हार ने कहा, 'तपस्वी श्रेष्ठ! आपने ज्ञानार्जन किया है. ग्रंथों के स्वाध्याय के बाद निश्चित ही आप संत हैं लेकिन आपके हृदय का अहंकार अभी मरा नहीं है. तभी तो आपका ध्यान मान और अपमान की ओर तुरंत चला गया.' नामदेव समझ चुके थे कि उनका ज्ञान अधूरा है. उन्हें इस बात का भी भान हो गया कि अहंकार वह दलदल है जिसमें धीरे-धीरे ज्ञान दफन होकर दम तोड़ देता है. इसके बाद उन्होंने संत विठोबा खेचर से दीक्षा ली.