तेजी से भागती जिंदगी और सूचनाओं का तीव्र प्रसार मनुष्यों को जैविक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह से किस प्रकार नुकसान पहुंचा रहा है? सत्यम, देहरादून

इतिहास गवाह है कि मनुष्यों को अपने आध्यात्मिक जीवन के साथ जीवन के अन्य पहलुओं, जैसे- करियर, परिवार, सामाजिकता तथा अन्य चीजों में सामंजस्य व संतुलन स्थापित करने में हमेशा ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। मनुष्य का ध्यान हमेशा आसानी से भटकता रहा है। सैकड़ों-हजारों साल पुराने आध्यात्मिक शास्त्र और शिक्षाएं भी दिमाग को स्थिर रखने की शिक्षा देते हैं। तो यह केवल आधुनिक तकनीक नहीं है, जो हमें यह कठिनाई दे रही है।

तेजी से भागती जिंदगी और आधुनिक तकनीक हमें बस अपना ध्यान भटकाने के नए तरीके प्रदान कर रहे हैं। लोग दिन में कई घंटे कंप्यूटर पर या अपने मोबाइल फोन पर बिताते हैं, जिसका गंभीर रूप से हानिकारक प्रभाव हमारी पीठ, गर्दन, रक्त संचार और पॉस्चर पर पड़ता है। हम अपने घरों से बाहर प्रकृति के सान्निध्य में भी पर्याप्त समय नहीं बिताते हैं, जो कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। इसके अलावा, सोशल मीडिया ने और भी खतरनाक स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें हम नकली संबंधों को वास्तविक समझने की गलती करते हैं।

हम वास्तविक लोगों के बजाय सोशल मीडिया पर समय बिताना पसंद करते हैं और यह भूल जाते हैं कि हम फेसबुक पर अपने कई 'मित्रों’ को जानते तक नहीं हैं। सोशल मीडिया ने हम पर पहचान बनाने का एक नया दबाव बना दिया है। दुखद यह है कि हम वास्तविक, गहरी और सच्ची दुनिया के बजाय इस सतही और नकली दुनिया में अपना समय और अपनी ऊर्जा खर्च करना ज्यादा पसंद करते हैं। हालांकि हम समय को पीछे की ओर नहीं ले जा सकते। आधुनिक तकनीक लंबे समय तक रहेगी इसलिए, प्रश्न यह होना चाहिए कि हम अपने आध्यात्मिक संबंध कैसे बनाए रखें और कैसे यह सुनिश्चित करें कि हमारा ध्यान न भटके।

यह महत्वपूर्ण है कि हम अनुशासन में रहकर तकनीक को समय दें। हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हम जीवन में कुछ काम करें न कि केवल प्रतिक्रिया दें। सोशल मीडिया ने हमें प्रतिक्रिया देने वाले रोबोट में बदल दिया है। मोबाइल में बीप बजते ही हम अपना कार्य छोड़कर उसमें लग जाते हैं। हमें इस आदत पर नियंत्रण करना होगा।

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