- रोडवेज बिना ट्रेनिंग दिए ही संविदा ड्राइवर्स को थमा रहा स्टीयरिंग
- सिटी में बने
प्रदेश के एक मात्र मॉडल मोटर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के पास सिलेबस ही नहीं
- अनट्रेंड ड्राइवर्स की वजह से आए दिन हो रहे रोडवेज बसों से एक्सीडेंट


संविदा यानि की कॉन्ट्रेक्ट। इस शब्द को आपने खूब सुना होगा। संविदा मतलब होता है अस्थायी। अनसिक्योर। रोडवेज भी अपनी बसों को सड़क पर दौड़ाने के लिए सविंदा पर ड्राइवर्स को भर्ती करता है। इन संविदा ड्राइवर्स ने सिटी के लोगों की जिंदगी को भी संविदा बनाने का पूरा इंतजाम कर दिया है। क्योंकि रोडवेज ने सारे नियम कानून की अनदेखी कर बिना ट्रेनिंग के ही संविदा ड्राइवर्स को स्टीयरिंग थमाकर सड़कों पर छोड़ दिया है। जिस वजह से रोडवेज बसों से एक्सीडेंट्स की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। जबकि सिटी के ही विकास नगर डिपो में ही करोड़ों की लागत से बना प्रदेश का अकेला मॉर्डन मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट मौजूद है। लेकिन दूसरी सच्चाई ये है कि इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग के लिए कोई सिलेबस ही नहीं है जिसके आधार पर ड्राइवर्स को ट्रेंड किया जाए। लिखा-पढ़ी पूरा करने के लिए सिर्फ सर्टिफिकेट थमा दिया जाता है।

आंकड़े गलत या प्रिंसिपल?

रोडवेज के नियमों के मुताबिक, संविदा पर रखे जाने के लिए भी ड्राइवर को इंस्टीट्यूट से ट्रेनिंग पास करना जरूरी है। इंस्टीट्यूट से जारी सर्टिफिकेट देखकर ही उन्हें रखा जाता है। मोटर ड्राइविंग इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल धनजी राम ने बताया कि 2012 में पूरे यूपी से टोटल 1862 लोग ट्रेनिंग के लिए इंस्टीट्यूट में आए। जिसमें से 882 लोगों को पास किया गया। जब कि 980 को ट्रेनिंग में फेल कर दिया गया। जबकि आंकड़े इस बयान से मेल नहीं खाते। क्योंकि पूरे साल में यूपी में लगभग 5000 से ज्यादा संविदा ड्राइवर्स की भर्ती हुई। सिटी में ही 643 संविदा ड्राइवर्स रखे गए। रोडवेज के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ट्रेनिंग में फेल होने वाले ड्राइवर्स से पैसे लेकर उन्हें पास का सर्टिफिकेट थमा दिया जाता है। यही ड्राइवर्स जब बस लेकर सड़कों पर उतरते हैं तो एक्सीडेंट की आशंका बनी रहती है। बीते कुछ महीनों में रोडवेज बसों से जो दुर्घटनाएं हुईं उन्हें चलाने वाले ज्यादातर ड्राइवर संविदा पर ही थे।

जान से खिलवाड़ का लाइसेंस

सोर्सेज के मुताबिक संविदा ड्राइवर्स कभी भी अचानक घर बैठ जाते हैं या दूसरी नौकरी शुरू कर देते हैं। ऐसे में बसों के पहिए जाम हो जाते हैं। इसलिए आनन-फानन में भर्ती प्रक्रिया होती है। सेंट्रल रीजनल वर्कशॉप के प्रांतीय मंत्री अंबादत्त त्रिपाठी का कहना है कि दो महीने पहले करीब 50 संविदा ड्राइवर की भर्ती की गई। ये सभी नियम-कानूनों को ताख पर रखकर पैसों के बल पर हुई। जिसने पैसा दे दिया वो बन गया रोडवेज ड्राइवर फिर उसे भले ही सही से गाड़ी चलानी आती हो या नहीं। एक तरीके से ये पब्लिक की जान से खिलावाड़ करने का लाइसेंस थमा दिया जाता है.

फैकल्टी का टोटा
पूरे यूपी के रोडवेज ड्राइवर्स को ट्रेनिंग देने वाले एक मात्र इंस्टीट्यूट में सिर्फ 4 फैकल्टी हैं। वर्कशॉप, सिमूलेटर, प्रैक्टिकल क्लास, ड्राइविंग टेस्ट को एक ही फैकल्टी संभालती है। फैकल्टी कम होने की वजह से ड्राइवर्स की ट्रेनिंग प्रॉपर होना मुश्किल है। हालांकि, प्रिंसिपल धनजी राम भी मानते हैं कि इससे फर्क सिर्फ आम जनता पर ही पड़ रहा है। अनट्रेंड ड्राइवर फ्यूल एक्पेंसिव को बढ़ाने के साथ सड़क पर दुर्घटनाएं भी कर रहे हैं।

करोड़ों की मशीनें बेकार
केंद्र सरकार और यूपीएसआरटीसी ने 2006 में सड़क दुर्घटनाओं और फ्यूल खर्च को रोकने के लिए मॉडल ड्राइविंग ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट को स्टेबलिश किया था। 3 करोड़ 38 लाख 86 हजार रुपए खर्च कर इंस्टीट्यूट में सभी जरूरी मशीनें व गाडिय़ों की सुविधा शुरू की गई। लेकिन फिलहाल इन मशीनों को काई यूज नहीं किया जा रहा है।

सरकारी गाडिय़ों से प्राइवेट काम
ट्यूजडे को जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर वर्कशॉप पर पहुंचा तो पहले तो वहां खड़े इंस्ट्रक्टर बीपी शुक्ला ने रिपोर्टर को जाने से रोका। रिपोर्टर के परिचय देने के बाद ही इंस्ट्रक्टर ने जाने दिया। गाडिय़ों की डिटेल्स मांगने पर पता चला कि टे्रनिंग इंस्टीट्यूट में 6 छोटे वाहन है। इनमें टवेरा, इंडिगो, जैसी गाडिय़ां भी हैं। इस दौरान एक लोडर वहां से गायब था। जब बीपी शुक्ला से इसकी जानकारी ली तो पता चला कि किसी प्राइवेट काम से उसे प्रिंसिपल ने कहीं भेजा है।

ज्यादातर फिजिकली अनफिट

रोडवेज बसों को चलाने वाले परमानेंट ड्राइवर्स में आधे से ज्यादा फिजिकली अनफिट हैं। किसी को एक आंख से दिखाई ही नहीं देता तो किसी की आंख में मोतियाबिंद है। पिछले दिनों 24वें सड़क सुरक्षा सप्ताह में लगे आई चेकअप कैंप में ये खुलासा भी हुआ था। चेकअप कैंप में 155 ड्राइवर्स में 54 जांच में फेल पाए गए थे। जांच में दो ड्राइवर तो ऐसे मिले थे जिनकी एक आंख पूरी तरह से खराब निकली थी, जब कि 16 ड्राइवर की आंखों में मोतियाबिंद, 32 ड्राइवर की दूर की नजर कमजोर निकली थी। लेकिन इसके बाद भी रोडवेज ने उनकी आंखों का इलाज नहीं कराया। ये ड्राइवर्स अब भी बसों को दौड़ा रहे हैं.  आपको बता दें कि ये सिर्फ 155 ड्राइवर्स का मामला था। जब कि पूरी सिटी में 16 सौ से अधिक ड्राइवर्स हैं।  

जांच रिपोर्ट
चेकअप                 155 ड्राइवर्स
एक आंख खराब         2 ड्राइवर
मोतियाबिंद              16 ड्राइवर्स
दूर की आई साइट वीक 32
कम रोशनी               4

हाल में हुई दुर्घटनाएं
- कल्याणपुर में रोडवेज ने टेंपो को मारी टक्कर महिला की मौत
- टूंडला में रोडवेज बस हादसा, ड्राइवर बुरी तरह हुआ चुटहिल
- कानपुर देहात में बस खड़ी डीसीएम में घुसी, डाइवर समेत कई पैसेंजर घायल
- झकरकटी बस अड्डे में ही बस का संतुलन बिगड़ा, पैसेंजर्स बाल-बाल बचे
- किदवई नगर में रोडवेज बस ने पैदल यात्री को टक्कर मारी
- बजरिया में स्कूल वैन से टकराई रोडवेज बस, क्षेत्रीय लोगों ने किया बवाल

इंस्टीट्यूट मे सुविधा
-ड्राइवर्स की ट्रेनिंग के लिए सात एसी रूम बनाए गए
- 500 ड्राइवर्स की क्षमता का एसी ऑडीटोरियम
- 25 डारमेट्री रूम
- कांफ्रेंस हॉल

ये है प्रोसेस
स्किल टेस्ट- आरआए स्तर से होता है
स्पेशलाइज्ड टेस्ट- ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में
1- 8 के साइन पर गाड़ी चलाना
2- जेड पार्किंग
3- गेडियंट (ढ़लान पर गाड़ी चलाना)
4- साइन एंड सिग्नल ट्रेनिंग
5- मेडिकल चेकअप

अनिवार्यता
लंबाई- 5.3 इंच
लाइसेंस- 1.5 इयर का हैवी मोटर व्हीकल का ड्राइविंग लाइसेंस
एजूकेशन- क्लास 8 पास
आखों की रौशनी- 6/6