जमाखोरों ने मार्केट से गायब कर दी लीवर की दवा, मरीज बेहाल

- अथॉरिटी ने एल्बुमिन की कीमत 8 हजार से घटाकर 3,800 रुपये कर दी है

- दवा कंपनियों ने इसके डिस्ट्रिब्यूटर सीमित कर दिए हैं

- मेरठ में चार माह से नहीं आया दवा का कोई स्टॉक

Meerut : आने वाले समय में लीवर के मरीजों की मुश्किलें और भी बढ़ेंगी। मेरठ ही नहीं बल्कि देशभर में लाइफ सेविंग ड्रग एल्बुमिन की भारी कमी ने लीवर के पेशेंट को परेशानी में डाल दिया है। कई शहरों में इसकी ब्लैक मार्केटिंग शुरू हो गई है। मेरठ में तो यह दवा गायब ही हो गई है। हालात तो यहां तक पहुंच गए हैं कि शहर के बड़े अस्पताल में भी यह दवा मिल पाना मुश्किल हो गया है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर सरकार ने समय पर इस दवा को बाजार में उतारने के लिए कदम नहीं उठाया तो आने वाले दिनों में लीवर पेशेंट की समस्या बढ़ सकती है। केमिस्टों का मानना है कि जब से इस दवा के रेट को कंट्रोल करने के लिए नैशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने ऑर्डर जारी किया है, तब से दवा कंपनी ने इस दवा को सीमित कर दिया है और इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

शुरू हो गई ब्लैक मार्केटिंग

मेरठ में केमिस्टों के पास भी यह दवा उपलब्ध नहीं है। दवा कंपनियों ने डिस्ट्रिब्यूटर सीमित कर दिया है। सूत्रों की मानें तो जब से अथॉरटी ने इस दवा की कीमत 8 हजार से घटाकर फ्8 सौ रुपये कर दी है, तब से मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने पुल सिस्टम बनाकर बाजार से दवा का शॉर्टेज कर दिया है। यहां तक कि डिस्ट्रीब्यूशन भी सीमित कर दिया है। दवा नहीं होने से कई छोटे शहरों में इसकी ब्लैक मार्केटिंग शुरू हो गई है। दूसरा जमाखोरों ने दवा का स्टॉक रोक कर इसे महंगे दामों पर ब्लैक में बेचना शुरू कर दिया है।

तो ऐसे कम पड़ा स्टॉक

मेरठ में बैस्टर इंडिया फार्मा कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटर महेंद्र चौधरी ने बताया कि इस दवा का स्टॉक तो ऊपर से ही खत्म है। चार महीने पहले तक रिलायंस कंपनी इस दवा का प्रॉडक्शन करती थी। यह दवा यूएसए में बनती है। कुछ समय पहले रिलायंस कंपनी की इस दवा का एक सैम्पल फेल हो गया था। बस तभी से यह दवा आनी बंद हो गई। चार माह पहले तक देश में एक महीने में डेढ़ लाख के आसपास दवा की सप्लाई थी। वहीं दूसरी ओर बैस्टर इंडिया फार्मा कंपनी और इनटेक कंपनी इस दवा की खपत को पूरी नहीं कर पाई। इनमें बैस्टर लगभग ब्0 हजार और इनटेक केवल चार हजार बोतल प्रोडक्शन ही कर पाती है। क्योंकि इस दवा के सॉल्ट और बनाने की लागत काफी ज्यादा है। ब्0 हजार की यह प्रोडक्शन जो की देश में खपत का आधा भी नहीं है। स्टॉक कम होने के साथ ही जमाखोरों ने भी इसका खूब फायदा उठाया और लोग आज इस दवा की सौ एमएल की बोतल को चार हजार रुपये तक में खरीदने को तैयार हैं। जबकि इसका एमआरपी मात्र ख्ख् सौ रुपये के आसपास है।

प्रतिदिन आते हैं एक हजार से ज्यादा मरीज

अगर शहर के बड़े अस्पतालों के औसतन आंकड़ों पर जाएं तो आनंद हॉस्पिटल, केएमसी, जसवंत राय, होप हॉस्पिटल, भाग्यश्री हॉस्पिटल और अन्य हॉस्पिटल में प्रतिदिन चार पेशेंट लीवर की बीमारी से पीडि़त आते हैं। सिटी में ख्भ्0 से भी ज्यादा हॉस्पिटल हैं, जिनमें औसतन एक हजार लीवर पेशेंट रोजाना इलाज को आते हैं। डॉक्टर्स के अनुसार तो दस में चार पेशेंट को लीवर की ही शिकायत रहती है।

गंभीर हो गया है ये मामला

यह एक जीवन रक्षक दवा है। डॉक्टर्स के अनुसार यह दवा मरीज को उस समय चढ़ाई जाती है। जब मरीज के खून बनना बंद हो जाता है या फिर बिल्कुल ही खत्म हो जाता है। अक्सर डॉक्टर्स की भाषा में इसे प्लेटलेट्स कम होना भी कहा जाता है। एल्बुमिन आदमी के खून से बनता है। जब किसी में खून खत्म हो जाता है तो पीडि़त को एल्बुमिन की बोतल चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। यह जल्दी ही रिकवरी करता है। एक तरह से यह जीवनदायनी दवा है। अपने देश में यह दवा आमतौर पर जर्मनी से मंगवाई जाती है। लेकिन अभी यह बाजार में उपलब्ध नहीं है। यह गंभीर मामला है। सरकार को इस पर सोचने की जरूरत है। ड्रग कंट्रोलर को दवा कंपनियों के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए। जब मामला लाइव सेविंग ड्रग का हो तो सरकार को तुरंत फैसला करना चाहिए।

क्या है एल्बुमिन

एल्बुमिन इंसान के बॉडी में पाए जाने वाला मुख्य प्रोटीन है जो ब्लड प्लाज्मा में पाया जाता है, लेकिन जब लीवर एल्बुमिन नहीं बना पाता है तो बॉडी को बाहर से एल्बुमिन की जरूरत पड़ती है। इसलिए एल्बुमिन सीरम ब्लड प्रोडक्ट से बनाया जाता है। यह लाइफ सेविंग होता है और भारत में यह नहीं बनता है। भारत में आमतौर पर जर्मनी और यूएसए से यह मंगाया जाता है। टॉनिक लीवर फेल्योर, बॉडी में प्रोटीन की कमी, सर्जरी के दौरान, फैटी लीवर के पेशेंट को इसकी जरूरत होती है। अगर यह दवा नहीं हो तो खासतौर पर लीवर ट्रांसप्लांट नहीं हो सकता।

दवा व्यापारी से हॉस्पिटल तक परेशान

यह दवा तो बाजार में है ही नहीं। बाजार में इसकी शॉर्टेज चल रही है। मरीज तो मरीज डॉक्टर्स भी परेशान हैं। लेकिन पीछे से ही माल नहीं आ रहा है।

मनोज शर्मा, कोषाध्यक्ष, ड्रग फूड कॉस्मेटिक मैन्यूफैक्चरिंग एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन

दवा तो बाजार में है ही नहीं। दवा न होने की वजह से कस्टमर को न बोलना पड़ता है। डिस्ट्रीब्यूटर्स से भी कांटेक्ट किया है, मगर उनका कहना है कि दवा कंपनी से ही नहीं आ रही।

रजनीश कौशल, महामंत्री, ड्रग फूड कॉस्मेटिक मैन्यूफैक्चरिंग एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन

देश में इस दवा की खपत डेढ़ लाख के आसपास है। चार माह पहले जब रिलायंस कंपनी का सैंपल फेल हो गया था तो बैस्टर इंडिया फार्मा कंपनी व इंटेक कम्पनी द्वारा उतनी दवा प्रोड्क्शन नहीं हो पाया, जितनी आवश्यकता है। दवा का प्रोडक्शन कम होने की वजह से दवा मार्केट में नहीं मिल पा रही है। मेरठ में तो यह दवा है नहीं।

महेंद्र चौधरी, डिस्ट्रीब्यूटर मेरठ, बैस्टर इंडिया फार्मा कंपनी

वाकई ही इस दवा की कमी की वजह से काफी परेशानी हो रही है। अगर इसी तरह से चलता रहा तो मरीजों की परेशानी बढ़ सकती है।

-डॉ। सुनील गुप्ता, आईएमए अध्यक्ष

इधर उधर से दवा मंगाने की कोशिश तो की जाती है, मगर दवा नहीं मिल रही है। इस दवा के बदले में कोई दूसरा सॉल्ट भी मौजूद नहीं है।

-डॉ। तनुराज सिरोही, फिजिशियन

एक दिन में तीन से चार पेशेंट तो लीवर के आते ही हैं। मगर हॉस्पिटल में एल्बुमिन दवा ही नहीं है। इसलिए काफी परेशानी हो रही है।

-डॉ। प्रशांत सोलंकी, फिजिशियन