- शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों का ग्राफ बेहद कमजोर

- पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की लिटरेसी रेट 63.98 फीसदी

- मेरठ में 40 फीसदी आठवीं से पहले छोड़ देती हैं पढ़ाई

Meerut : जब पढ़ाई की बात आती है तो परिवार का पूरा फोकस लड़कों पर ही होता है। ऐसे परिवार बहुत ही कम ही मिलेंगे जो लड़कियों की भी पढ़ाई का ध्यान लड़कों की तरह रखते हैं। इसलिए अधिकतर शहरों, राज्यों और देशों में लिटरेसी रेट लड़कों के मुकाबले लड़कियों का कम ही मिलेगा। जबकि किसी एक लड़के के पढ़ने से सिर्फ उसी को फायदा होता है। जब एक लड़की होती है तो पूरे परिवार को फायदा होता है। क्योंकि वो अपने बच्चों को पढ़ाती है। अपने पति के बिजनेस में हाथ बंटाती है। बूढ़े माता-पिता या सास-ससुर की मदद करती है। इसके बाद भी इनकी पढ़ाई के बारे में कम ही लोग सोचते हैं। अगर बात मेरठ की करें तो 100 में 65 महिलाएं भी पढ़ी नहीं हैं। अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज भी हम इस एडवांस माहौल में लड़कियों की पढ़ाई के मामले में कितने पीछे हैं

म्भ् फीसदी भी नहीं

वर्ष ख्0क्क् मतगणना के हिसाब से मेरठ की लिटरेसी रेट की बात करें तो यह 7ख्.8ब् फीसदी है। जबकि मेरठ में मेल लिटरेसी 80.7ब् फीसदी है। मेरठ में महिलाओं की शिक्षा का स्तर काफी बुरा है। सिर्फ म्फ्.98 फीसदी महिलाएं की लिटरेट हैं। माध्यमिक शिक्षा संघ के एडीआईओएस सीपी सिंह का कहना है कि ये बहुत ही आश्चर्य की बात है कि सभी सुविधाएं होने के बावजूद मेरठ का लिटरेसी रेट काफी कम है। कम से कम एवरेज रेट के बराबर तो होना ही होना चाहिए था। अगर बात पूरे प्रदेश की करें तो एवरेज लिटरेसी रेट म्7.म्8 फीसदी है। जबकि मेल लिटरेसी रेट 77.ख्8 फीसदी और फीमेल लिटरेसी रेट भ्क्.फ्म् फीसदी है। वहीं पूरे देश की बात बात करें तो एवरेज लिटरेसी रेट 7ब्.0ब् फीसदी, मेल लिटरेसी 8ख्.क्ब् फीसदी और फीमेल लिटरेसी म्भ्.ब्म् फीसदी है।

ड्रॉपआउट स्टूडेंट्स की भी कमी नहीं

इंडिया यूनिसेफ के आंकड़ों में देश में ब्ख् फीसदी बच्चे आठवीं क्लास से पहले स्कूल छोड़ देते हैं। जिनमें से अधिकतर संख्या लड़कियों की होती है। मेरठ के आंकड़ों पर गौर करते हैं। हर साल यूपी माध्यमिक स्कूलों में ब्भ् हजार लड़कियां पड़ती है। जिनमें से क्ख् हजार लड़कियां टेंथ के बाद स्कूल छोड़ देती है। वहीं अगर बेसिक स्कूल की बात करें तो फ‌र्स्ट से एट क्लास तक टोटल स्टूडेंट्स की संख्या क्.भ् लाख है। जिनमें से 90 हजार लड़कियां ही पढ़ती हैं। ताज्जुब की बात तो ये है कि किसी न किसी मजबूरी की वजह से सिक्स्थ से लेकर एट तक फ्ख् हजार लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। जबकि फ‌र्स्ट से फिफ्थ तक ख्0 हजार लड़कियां पढ़ाई छोड़कर घर बैठ जाती हैं। वहीं सीबीएसई स्कूलों में लड़कियों की संख्या ख्.70 लाख है। जबकि ड्रॉपआउट का रेश्यो न के बराबर है।

क्या हैं कारण?

- आज भी लड़कियों को बोझ की तरह समझा जाता है।

- माता-पिता के अनपढ़ होने की वजह से।

- लड़कों की पढ़ाई पर ध्यान देने की वजह से।

- जल्दी शादी करने के कारण पढ़ाई छूट जाना।

- बड़े परिवार में छोटे भाई बहनों को पालने के कारण।

- फैमिली इनकम ज्यादा न होना।

सबसे बड़ा फैक्टर है माता पिता का अनपढ़ होना। जब वो ही अनपढ़ होंगे तो वो लड़कियों की एजुकेशन के बारे में क्या ध्यान रखेंगे। फिर सोच ये भी होती है कि लड़कियों को पढ़ाने का क्या फायदा? घर में रहेगी तो काम सीखेगी। बाद में ससुराल में काम आएगा। यही सोच समाज से बदलनी होगी।

- पूनम देवदत्त, सीबीएसई काउंसलर

मेरे हिसाब से दो सबसे बड़े कारण फैमिली इनकम और रिलीजियस इश्यू हैं। ज्यादातर पब्लिक लड़कों की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं। जबकि लड़कियां भी उतनी ही आगे बढ़ सकती हैं। लड़कियों के पढ़ने से सोसायटी भी आगे बढ़ती है।

- विशाल जैन, डायरेक्टर, शांति निकेतन विद्यापीठ

इस शहर में जनरल लोगों की सोच यही है कि जल्द से जल्द लड़की की शादी करो। लड़की को पढ़ाने का कोई फायदा नहीं है। इस सोच को बदलना काफी जरूरी है। लड़कियों के पढ़ने के कई फायदे होते हैं। उससे एक ही नहीं दो परिवार शिक्षित होते हैं।

- सविता चड्ढा, प्रिंसीपल, दिल्ली पब्लिक स्कूल

आज भी गांव देहात के इलाकों में लड़कियों की पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। उन्हें लगता है लड़का पढ़ेगा तो आगे जाकर घर का सहारा बनेगा और लड़की पराया धन है। दूसरे घर को रोशन करेगी। इस सोच का बदलना काफी जरूरी है।

- सीपी सिंह, एडीआईओएस