GORAKHPUR:

डीडीयूजीयू का संवाद भवन शनिवार को अलग ही अंदाज में नजर आ रहा था। मुख्य द्वार के दोनों तरफ गाडि़यों की लम्बी कतार, अंदर घुसते ही दाहिनी ओर किताबों के स्टॉल और बायीं ओर बनाया गया छोटा सा स्टेज, जहां से नियमित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की जा रही थी। संवाद भवन का हॉल जागरूक पाठकों और श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था। मौका था हिन्दी भाषा पर आधारित पहले साहित्य समागम का। हर्षवर्धन फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम के पहले दिन का पांचों सत्र भाषा, साहित्य, मीडिया व फिल्म पर केन्द्रीत था। जिसमें अलग-अलग मुद्दों पर विद्वानों ने न केवल अपने विचार रखें बल्कि श्रोताओं के सवालों का जवाब भी दिया।

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, प्रो। रामदेव शुक्ल, प्रो। चितरंजन मिश्र, अतुल सर्राफ व फाउंडेशन के अध्यक्ष आनंद वर्धन सिंह ने दीप प्रज्वलन कर समागम का उद्घाटन किया। फाउंडेशन के अध्यक्ष आनन्द वर्धन सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि पूर्व सांसद व वरिष्ठ राजनेता हर्षवर्धन सिंह की याद में स्थापित यह फाउंडेशन हिन्दी भाषा में आयोजित इस समागम के माध्यम से लोगों को साहित्य व सामाज से जोड़ने का काम करेगा।

लगातार चला कार्यक्रम

पहले सत्र में सार्क भाषा के तौर पर नेपाली भाषा पर चर्चा की गई जिसका विषय था संस्कृत से उद्भूत नेपाली व हिन्दी भाषा का समृद्ध सम्बंध दोनों देशों के लिए अनुग्राही। दार्जिलिंग से आए डॉ। मनप्रसाद सुब्बा, प्रो। रामदेव शुक्ल, डॉ। चितरंजन मिश्रा, योगाचार्य जीएन सरस्वती व वीना सिन्हा ने कहा कि नेपाली और हिन्दी भाषा के कई शब्दों का इस्तेमाल दोनों ही भाषाओं में होता है। वक्ताओं ने दोनों भाषाओं के साहित्यों का एक-दूसरे में अनुवाद किए जाने पर बल दिया। साहित्य समागमों को व्यापक व उपयोगी बनाने के उपाय विषय पर आयोजित दूसरे सत्र में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, शान्तनु गुप्ता तथा अनुराधा गोयल ने परिचर्चा की जिसका संचालन एके सिंह ने किया। वक्ताओं ने साहित्य को आम जनों तक ले जाने पर बल दिया। तृतीय सत्र हिन्दी भाषी क्षेत्र में अंग्रेजी साहित्य शीर्षक से आयोजित था जिसका संचालन कमलेश त्रिपाठी ने किया। डॉ। मनप्रसाद सुब्बा, डॉ। हुमा सब्जपोश, डॉ। नंदिता सिंह ने अंग्रेजी भाषा के बढ़ते वर्चस्व पर चिंता जाहिर की। वक्ताओं ने युवाओं को अपनी भाषा में साहित्य अध्ययन करने का सुझाव दिया। चौथा सत्र फिल्मी गानों से लोक संगीत ने क्या खोया क्या पाया? विषय पर आधारित था। डॉ। करुणा पाण्डेय, रविन्द्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाई, महेन्द्र नाथ श्रीवास्तव तथा सारेगामापा फेम मशहूर निर्माता-निर्देशक गजेन्द्र सिंह ने वर्तमान लोक संगीत के स्वरूप पर चर्चा करते हुए लोक संस्कृति के संरक्षण को महत्वपूर्ण बताया। सत्र का संचालन महेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने किया। अंतिम सत्र में भाषा में हिंग्लिश तथा टेलीग्रैफिक शब्दों का प्रवेश, सोशल मीडिया का साहित्य पर प्रभाव विषय पर आयोजित चर्चा में साहित्यकार डॉ। विद्या बिन्दु सिंह, मशहूर पत्रकार राहुल देव व मशहूर अभिनेता राजा बुंदेला ने अपने विचार प्रस्तुत किए। सत्र का संचालन युवा पत्रकार यशवन्त सिंह ने किया।

पहले दिन पांच किताबों का विमोचन

पुस्तक लेखक 1- आइने गोरखपुर पीके लहरी व केके पांडेय

2- द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर शांतनु गुप्ता

3-शब्द सुरेन्द्र काले

4- टिपिकल टेल ऑफ एन इंडियन सेल्समैन कमलेश त्रिपाठी

5- पत्तों पर ठहरी ओस की बूंदें नीरजा हेमेन्द्र