हर तरफ खतरा है - कहीं खुले में रखे ट्रांसफार्मर हैं, कहीं रेलिंग से चिपके हुए केबिल तो कहीं खुले हुए स्विच बोर्ड। यानी हमेशा 440 वोल्ट का खतरा  बना रहता है। पहले ट्रांसफार्मर ऊपर लगते थे। लेकिन बदलने में असुविधा होती थी इस लिए नीचे प्लेटफार्म बना कर रखा जाने लगा। इन ट्रांसफार्मर्स के चारों ओर फेंसिंग की गई। कुछ लोहे की जालियां चोरी हो गई और कुछ को हटा उसमें चाय और सब्जी वाले जा घुसे। इससे दुर्घनाएं बढ़ गई हैं।

कई जगह ट्रांसफामर्स के फेज वाले डिस्ट्री ब्यूशन वायर लतीन पर बिछे हैं कही जाली से सटा कर चाय के ढाबे खुले हैं.  सिटी में लगे ट्रांसफार्मरों का यूज लोग अपने हिसाब से कर रहे हैं। कोई उसकी जाली पर कपड़े सुखा रहा है तो किसी ने ट्रांसफार्मर से लगी टट्र तान रखी है।

Who is responsible
हम  अक्सर गलतियां डिपार्टमेंट की निकालते हैं। माना कि डिपार्टमेंट में खामिया हैं। कई बार गल्ती हामारी भी होती है। दुर्घटना के बाद जिंदाबाद मुर्दाबाद और रास्ता जाम आम बात है। लेकिन दुर्घटना हुई क्यों इसे जानने की कोशिश कोई नहीं करता। ट्रांसफार्मर से सटेंगे तो करेंट लगेगा ही।

मेंटेनेंस के नाम पर आते हैं लाखों
वहीं डिपार्टमेंट में एनुअल मेंटेनेंस के नाम पर पैसे भी आते हैं लेकिन वह कहां खर्च होते हैं इसका पता नहीं। पुराने लखनऊ में बने डिवाइडरों के पास से 440 वोल्ट का केबिल लोहे की रेलिंग से चिपका कर रखा गया है। बरसात के मौसम में अक्सर इन रेलिंग्स पर करेंट आ जाता है।

Old city में कटिया connections
ओल्ड सिटी में अधिकतर घरों में आज भी कटिये के भरोसे पावर सप्लाई चल रही है। मीटर तो लगभग सभी के यहां लगा है लेकिन लाइट कटिये से ही जलती है। पुराने लखनऊ में अक्सर कटिया डाल कर बिजली चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए टीमें भी गयीं लेकिन उन्हें बैरंग लौटने पर वहां की पब्लिक मजबूर कर देती है। कटिया से अगर करेंट लग गया तो बचने का चांस ना के बराबर रहता है क्यों कि इसमें ना तो प्रॉपर अर्थिंग होती है ना ही तुरंत लाइनों को काटने की व्यवस्था।

साल भर में पंद्रह परसेंट काम
बिजली विभाग ने केबिल बदलने का काम एक साल पहले शुरू किया था। इस दौरान केवल 15 परसेंट ही काम पूरा किया जा सका। इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि तार बदले जाने के लिए दिन भर सप्लाई बंद करनी पड़ती है और राजधानी में ऐसा कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। इसी लिए काम पर असर पड़ रहा है।