ओडिशा में साल 1999 में ऐसे ही एक समुद्री तूफ़ान ने भीषण तबाही मचाई थी और दस हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई थी. 14 साल बाद फिर से एक भीषण तूफ़ान ओडिशा और आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ रहा है. ओडिशा सरकार की कोशिश है कि इस बार तूफ़ान के कारण एक भी व्यक्ति की जान न जाए.

"हमें पाँच दिन पहले ही इस तूफ़ान की जानकारी मिल गई थी. हम तूफ़ान का रास्ता तो नहीं बदल सकते लेकिन लोगों को इसके रास्ते से ज़रूर हटा सकते हैं. तमाम जिलों के अधिकारी बचाव कार्यों में जुटे हैं. सिर्फ़ इंसानों की ही नहीं बल्कि जानवरों की जान बचाना भी हमारी प्राथमिकता है. हमने तूफ़ान के दौरान जानवरों को खुला छोड़ने के निर्देश दिए हैं.

-पीके महापात्र, राहत आयुक्त, ओडिशा

स्थानीय पत्रकार संदीप साहू का कहना है कि ओडिशा में करीब तीन लाख लोगों को तटीय इलाक़ों से सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा रहा है. इनमें से तकरीबन डेढ़ लाख लोग गंजाम ज़िले के हैं जो मछुआरे हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि शनिवार सुबह तक प्रभावित इलाकों से लोगों को सुरक्षित इलाक़ों में पहुँचाने का काम पूरा कर लिया जाएगा.

ओडिशा में राहत कार्य राज्य के विशेष राहत आयुक्त पीके महापात्रा के निर्देशन में किया जा रहा है.

महापात्रा ने बीबीसी को बताया, "तूफ़ान करीब 240 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से पहुँचेगा. सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता यह है कि इस बार कोई हताहत न हो. हम तटीय ओडिशा के सभी इलाक़ों को खाली करा रहे हैं."

उन्होंने कहा, "हमें पाँच दिन पहले ही इस तूफ़ान की जानकारी मिल गई थी. हम तूफ़ान का रास्ता तो नहीं बदल सकते लेकिन लोगों को इसके रास्ते से ज़रूर हटा सकते हैं. तमाम जिलों के अधिकारी बचाव कार्यों में जुटे हैं. सिर्फ़ इंसानों की ही नहीं बल्कि जानवरों की जान बचाना भी हमारी प्राथमिकता है. हमने तूफ़ान के दौरान जानवरों को खुला छोड़ने के निर्देश दिए हैं."

प्रभावित इलाके

महापात्रा के मुताबिक ओडिशा के गंजाम, पुरी, खुर्दा और जगतसिंहपुर जिलों के सबसे ज़्यादा प्रभावित होने की संभावना है. शनिवार सुबह तक सभी इलाक़ों को खाली कराने की कोशिशें जारी हैं. लोगों से अपने कच्चे घरों को छोड़कर राहत कैंपों में पहुँचने की अपील की गई है.

इस बार राहत कैंपों में प्रभावित लोगों को पका हुआ खाना भी उपलब्ध करवाया जाएगा. शनिवार को भारी बारिश के कारण लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाएंगे इसलिए शुक्रवार की रात भर लोगों को राहत कैंपों में पहुँचाने का कार्य किया गया.

पायलिन: लाखों को निकाला गया,तीनों सेनाएं तूफ़ान से भिड़ने तैयार

राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई दल (एनडीआरएफ़) ने भी तूफ़ान से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारियाँ की हैं. दल के निदेशक कृष्ण चौधरी इसे एक परीक्षा मानते हैं.

वे कहते हैं, "निश्चित रूप से हमारे सामने एक बड़ा ख़तरा है, लेकिन सकारात्मक पहलू यह है कि इस बार हमारे पास इसके बारे में पहले से ही जानकारियाँ हैं. हमारी टीमें चिन्हित किए गए इलाक़ों में पहुँच गई हैं. पिछले कुछ सालों में हमारी क्षमता भी बढ़ी है. इस लिहाज़ से हम जानें बचाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. यही नहीं सरकार की बाकी तमाम इकाइयाँ भी अलर्ट पर हैं."

रणनीति

आपात स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकारें केंद्रीय गृह मंत्रालय और एनडीआरएफ़ के संपर्क में है. संदीप साहू के मुताबिक एनडीआरएफ की 23 टीम प्रभावित इलाकों में सक्रिय है. हर टीम में 35-40 लोग हैं.

जबकि 11 कंपनियाँ आंध्र प्रदेश में तैनात की गई हैं. हालात के और भी ख़राब होने की स्थिति में कई टीमों को रिजर्व में भी रखा गया है.

"निश्चित रूप से हमारे सामने एक बड़ा ख़तरा है, लेकिन सकारात्मक पहलू यह है कि इस बार हमारे पास इसके बारे में पहले से ही जानकारियाँ हैं. हमारी टीमें चिन्हित किए गए इलाक़ों में पहुँच गई हैं. पिछले कुछ सालों में हमारी क्षमता भी बढ़ी है. इस लिहाज़ से हम जानें बचाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. यही नहीं सरकार की बाकी तमाम इकाइयाँ भी अलर्ट पर हैं."

-कृष्ण चौधरी, निदेशक, एनडीआरएफ

मौसम विभाग के निदेशक एलएस राठौर के मुताबिक तूफ़ान शनिवार शाम को ओडिशा के तट पर दस्तक देगा.

राठौर ने बीबीसी को बताया, "शनिवार शाम तक समुद्री तूफ़ान पायलिन गोपालपुर के तट पर दस्तक देगा. जब यह तूफ़ान तट से टकराएगा तब इसकी रफ़्तार दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक होगी. प्रभावित इलाकों में भारी बारिश होगी जबकि ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में 25 सेंटीमीटर से भी अधिक बारिश होने की संभावना है."

उन्होनें कहा, "लोगों के पास इस बार बचाव के लिए काफी वक्त है. मौसम विभाग पिछले तीन दिनों से लगातार इसके बारे में जानकारियाँ राज्य और केंद्र सरकार को दे रहा है. प्रभावित होने वाले दोनों राज्यों (ओडिशा और आंध्र प्रदेश) में इस बार बचाव को तमाम उपाय अपनाए गए हैं. साथ ही इस बार प्रभावित लोगों को पका हुआ खाना भी मुहैया करवाया जाएगा."

इतिहास

ओडिशा में 1999 में आए समूद्री तूफ़ान के कारण दस हज़ार से अधिक लोगों को जान गँवानी पड़ी थी. तूफ़ान पायलिन भी लगभग उसी तीव्रता का रहेगा. तो क्या इस बार नुकसान को कम किया जा सकेगा?

इस बारे में राठौर कहते हैं, "अग्रिम सूचना हो तो प्रबंधन व्यवस्था ठीक रहती है. मैं समझता हूँ कि इस बार कम से कम जान-माल का नुकसान होना चाहिए. बावजूद तमाम व्यवस्थाओं के, हवा की तेज गति के कारण कुछ दुर्घटनाएं होने की आशंका है."

राठौर कहते हैं, "प्रभावित इलाक़े के लोगों को संयम बरतते हुए सरकारी सूचनाओं एवं प्रशासन के आदेशों का पालन करना चाहिए."

तूफ़ान दक्षिण-पूर्वी भारत के तट की ओर बढ़ रहा है और इसके साथ ही सरकारी एजेंसियों की परीक्षा की घड़ी भी नज़दीक आ रही है.

सवाल यही है कि क्या इस बार वक्त रहते मिली जानकारियाँ होते हुए लोगों की जानें बचाई जा सकेंगी?

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