क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: लोकसभा इलेक्शन को देखते हुए गाडि़यों की डिमांड बढ़ गई है. प्रशासन को चुनाव में अधिकारियों को लाने-ले जाने के लिए गाडि़यों की जरूरत पड़ेगी. लेकिन सरकार की अपनी बसें स्टोर में पड़ी कबाड़ बन रही हैं. वहीं दूसरी ओर प्रशासन चुनाव को लेकर प्राइवेट गाडि़यों को पकड़ रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे सरकारी वाहनों का उपयोग न करते हुए पैसे की बर्बादी की जा रही है. अगर सरकार की बसों का इस्तेमाल चुनाव में कर लिया जाता तो पैसे भी बच जाते और गाडि़यां भी रोड पर निकल जातीं. बताते चलें कि नगर निगम की 70 सिटी बसें दो साल से बकरी बाजार स्थित स्टोर में खड़ी हैं.

सरकारी दर पर होता है भुगतान

चुनाव में प्रशासन प्राइवेट बसों को हायर करता है. वहीं जरूरत पड़ने पर स्कूल बसों को भी हायर किया जाता है. इसके लिए सभी को सरकारी दर के हिसाब से भुगतान किया जाता है. वहीं डीजल और ड्राइवर का खर्च अलग से दिया जाता है. ऐसे में नगर निगम की बसों से काम लिया जाता तो चुनाव में किया जाने वाला खर्च बच जाता. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जरूरत पड़ने पर भी सिटी बसों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा है.

टूरिस्ट प्लेस के लिए हो रही बुकिंग

बसों के संचालन को लेकर कोई भी टेंडर में इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा है. इस चक्कर में नगर निगम 10 बार टेंडर निकाल चुका है. अब रेट घटाकर फिर से आवेदन मांगे गए हैं. लेकिन कोई भी सिटी बस चलाने को तैयार नहीं है. हालांकि एक दो बसों की बुकिंग टूरिस्ट प्लेस के लिए की जा रही है, जिसमें नई सिटी बसों को भेजा जा रहा है. बाकी की नई बसों को कुछ रूट पर इंडिविजुअल लोगों को चलाने के लिए दिया गया है.