-अब बच्चे, बुजुर्ग और युवा सभी बढ़ चढ़कर नए स्टाइल में जलाभिषेक में शामिल हो रहे हैं

BAREILLY: बदलते वक्त के साथ कांवडि़यों का वेश भी बदल गया है। कांवडि़यों का स्टाइल भी बदल गया है। शहर के पुजारियों और महन्तों के मुताबिक कांवडि़यों के मिजाज समेत आस्था भी बदलती जा रही है। अब बच्चे, बुजुर्ग और युवा सभी बढ़चढ़कर नए स्टाइल में जलाभिषेक में शामिल हो रहे हैं।

जींस टीर्शट में कांवडि़ए

सावन माह में कांवडि़यों का मॉडर्न लुक देखने लायक है। आज के कांवडि़ए हाथ में मोबाइल, आंखों पर गॉगल्स, जींस, टीशर्ट, कैप और पैरों में जूते के आधुनिक परिधानों से लैस हो गए हैं। संगीतमयी भजनों पर थिरकते हुए जत्था कछला व अन्य तयशुदा स्थलों से गंगाजली के लिए रवाना होता है। बता दें कि शहर की कई गारमेंट्स की दुकानों पर इस वेशभूषा की भरमार हो जाती है। जिसकी जमकर खरीददारी भी होती है। मैक्सिमम सौ रुपए में टीशर्ट, 20 रुपए में कैप, 20 रुपए में बेल्ट, 10 रुपए में झंडी और 20 रुपए में गमझा मिलता है।

कांवड़ भी बदल गई

गंगाजली भरने रवाना होने वाले कांवडि़यों की कांवड़ भी काफी अट्रैक्टिव हो गई है। उसे खूबसूरत बनाने के लिए कांवडि़यों द्वारा डेकोरेशन पर करीब 2 हजार रुपए तक का खर्चा किया जाता है। बांस से बनी कांवड़ दो सौ में मिल जाती है। लेकिन उसे डेकोरेट करने में मिनिमम 4 सौ से 2 हजार तक लग जाते हैं। पिछले दिनों कालीबाड़ी और बड़ी बमनपुरी से गुजरने वाले कांवड़ काफी खूबसूरती से डेकोरेट की गई थी। अनुमान के मुताबिक एक कांवडि़ए द्वारा परिधान और कांवड़ को सजाकर कछला जाने और आने में करीब 6 हजार रुपए का खर्चा होता है।

करीब 20 वर्ष पूर्व कांवडि़यों का परिधान गेरूआ धोती, गमझा होता था। बदलते वक्त के साथ कांवडि़यों के परिधान में बदलाव आ गया है। भक्तों के मन में आस्था और विश्वास होना चाहिए, परिधान केवल तन ढंकने के लिए हैं।

पं। संजय सिंह

पूर्व में होने वाले कई प्रयोजन करना अब संभव नहीं है। आस्था और भक्ति में कमी नहीं होनी चाहिए। पहनावे और भजनों की धुनों में सराबोर होने से मन में विश्वास बरकरार रहता है। विगत 20 वर्षो में शिव भक्तों की संख्या बढ़ी है।

पं। राजेंद्र त्रिपाठी