हुआ सौ करोड़ का revenue loss
बालू की अवैध ढुलाई के मामले में झारखंड भी पीछे नहीं है। यहां पिछले दो साल से हर नदी तट से इसकी इल्लीगल माइनिंग हो रही है। गवर्नमेंट द्वारा इस पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है और न ही कोई सैंड माइनिंग पॉलिसी ही तैयार की गई है। इस कारण स्टेट गवर्नमेंट को एक अनुमान के मुताबिक लगभग सौ करोड़ रुपए का रेवेन्यू लॉस हुआ है। बावजूद इसके यह अब भी जारी है।

हर river bed पर होती है sand mining
स्टेट के कई रिवर बेड से बालू की इल्लीगल माइनिंग हो रही है। इनमें स्वर्णरेखा, खरकई, रोरो, संजय, कारो, कोयल, बैतरणी, दामोदर व देव सहित कई अन्य नदियां हैं, जहां से रोजाना बड़े पैमाने पर इल्लीगल सैंड माइनिंग हो रही हैं। प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनियों के साथ ही सैंड माइनिंग के काम में एक बड़ा रैकेट भी लगा हुआ है। प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनियां तो अपने लिए माइनिंग करती हैं, जबकि रैकेट इसका उठाव कर स्टॉक करता है और बाद में इसकी सप्लाई की जाती है।

पंचायत पर थी देखरेख की जिम्मेवारी
वर्ष 2001 में स्टेट के फस्र्ट चीफ मिनिस्टर बाबूलाल मरांडी ने अनाउंस किया था कि बालू नेचुरल रिसोर्स है और रूरल एरिया के लोग इसका फ्री ऑफ कॉस्ट यूज कर सकते हैं, हालांकि इसके लिए कोई नोटिफिकेशन इश्यू नहीं किया गया था। बाद में स्टेट गवर्नमेंट ने एक ऑर्डर इश्यू कर ग्र्राम पंचायत को व अर्बन एरिया में नोटिफाइड एरिया को सैंड माइनिंग की देखरेख करने का जिम्मा दिया। इससे होने वाली इनकम को एरिया के डेवलपमेंट पर खर्च करना था। हालांकि इसका इंप्लीमेंटेशन नहीं हो सका। इसके तहत संबंधित एरिया के मुखिया डिस्ट्रिक्ट पंचायती राज ऑफिसर के साथ मिलकर माइनिंग की देखरेख करते और इनकम का 80 परसेंट विलेज के डेवलपमेंट पर खर्च किया जाना था। इस प्रोसीजर को पंचायत इलेक्शन के बाद वर्ष 2010 से शुरू किया जाना था, लेकिन इसपर कोई काम नहीं हो सका। बाद में 27 फरवरी 2012 को सेंट्रल गवर्नमेंट ने बिना इन्वॉयरमेंट मिनिस्ट्री के अप्रूवल के सैंड माइनिंग पर रोक लगा दी।

National green tribunal ने लगाई रोक
अब नेशनल ग्र्रीन ट्रिब्यूनल ने एक आदेश जारी कर कंट्री के किसी भी रिवर बेड से बिना प्रोपर लाइसेंस व इन्वॉयरमेंट  क्लियरेंस के सैंड माइनिंग पर रोक लगा दी है। इस संबंध में सभी डीसी, एसपी व माइनिंग अथॉरिटी को डाइरेक्शन देते हुए कार्रवाई करने को कहा गया है।

'जमशेदपुर इस मामले में थोड़ा अलग है। फॉर्मर डीसी सुनील वर्णवाल ने वर्ष 2004 में एक आदेश में कहा था कि ट्रेजरी द्वारा कंस्ट्रक्शन कंपनियों का बिल सैंड परचेजिंग से संबंधित डॉक्यूमेंट्स प्रोड्यूस करने के बाद ही पास किया जाएगा.'
-रत्नेश कुमार सिन्हा, डिस्ट्रिक्ट माइनिंग ऑफिसर, इस्ट सिंहभूम

Report by: goutam.ojha@inext.co.in