हर इंसान सुबह से रात तक किसी न किसी कार्य में लगा रहता है। जब भी हम कोई कार्य करते हैं, तो काम करने के लिए हमें औरों से संपर्क करना पड़ता है- चाहे हम ऑफिस में हों, घर पर हों, या फिर किसी सामाजिक गतिविधि में लगे हुए हों। कई बार इंसान यही सोचता है कि मेरा काम होने में कोई न कोई बाधा डाल रहा है, कोई न कोई रुकावट डाल रहा है। जब हमारे सामने तकलीफें आती हैं, तो हम उन्हें कैसे झेलें और हम कैसा व्यवहार करें, हम मन ही मन यह सोचते रहते हैं।

अगर किसी ने हमारे साथ कोई गड़बड़ की हो, तो हमारे अंदर भी यही विचार होते हैं कि हम भी उसके साथ गड़बड़ करें। पर अगर आप ध्यान से सोचेंगे तो पाएंगे- अगर एक आदमी ने कोई गलत काम किया है और दूसरा भी बदले में गलत काम करता है, तो पहला और ज्यादा गलत काम करता है, फिर दूसरा और ज्यादा गलत काम करता है, और गलत चीजें दिन पर दिन बढ़ती चली जाती हैं। उससे तकलीफ सिर्फ उन दोनों को ही नहीं, बल्कि जितने भी लोग उनके दायरे में आते हैं, उन सबको होती है। तो प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए?

जो भी इस धरती पर आता है, उसको कोई न कोई दुख लगा रहता है। ज्यादातर हम सोचते हैं कि दुख हमें औरों की ओर से आ रहा है। हम यही सोचते हैं कि हम बिल्कुल ठीक हैं, बाकी सारे गलत हैं। और फिर हम उनको और ज्यादा दुख देने की कोशिश करते हैं। तो इंसान की प्रतिक्रिया कैसी हो, ताकि हमारी तरफ जो दुख आया है, उससे हम निपट सकें। जब हम महापुरुषों की जिंदगी की ओर देखते हैं, तो उनमें से कइयों की जिंदगी में बहुत तकलीफें आईं, लेकिन उन्होंने उन तकलीफों के जवाब में औरों को तकलीफें नहीं दीं।

ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया गया, तो उनकी जुबान से यही निकला कि हे प्रभु! ये इंसान जो मेरे साथ ऐसा कर रहे हैं, ये नासमझ हैं, तो आप अपनी मौज में इन्हें माफ कर दीजिएगा। यानी जब दुख उनकी तरफ आया, तो उन्होंने उसे सहन किया और अपनी तरफ से औरों की ओर प्रेम पहुंचाया।

हर अवस्था में शांत रहें

गुस्से में जवाब देना बहुत आसान होता है, लेकिन बलवान वह नहीं जो लड़ाई करे। बलवान वह है जो हर अवस्था में शांत रहे। अगर हम धर्मग्रंथों को पढ़ें, तो वे सभी हमें यही समझाते हैं कि जब मन शांत होगा, इंद्रियां शांत होंगी, तभी हम इस शरीर के अंदर असलियत का अनुभव कर पाएंगे। असलियत यही है कि हम प्रभु के अंश हैं। हम चेतन हैं। हम प्रेम से भरपूर हैं।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

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