- दो करोड़ में सिमटा बजट, प्राधिकरण ने दिया था पांच करोड़ से अधिक का प्रस्ताव

-अब जिला व प्रमंडल नहीं, राज्यस्तरीय प्रतियोगिता के भरोसे है स्टेट की प्रतिभा

PATNA: बिहार में खेल और खिलाड़ी की स्थिति कैसे संवरेगी, यह तो कहना मुश्किल है। बिहार सरकार का खेल का एनुअल बजट करीब दो करोड़ है, जिसमें किसी प्रकार की वृद्धि नहीं की गई है, जबकि इस साल राज्य खेल प्राधिकरण का प्रस्ताव करीब पांच करोड़ भ्म् लाख का था। इसे वित्त विभाग ने सिरे से खारिज कर दिया। यही वजह है कि अब खिलाडि़यों को इस बारे में सोचना पड़ रहा है कि आखिर जिलों में खेलों का आयोजन ही नहीं हो, तो स्थानीय स्तर पर खेल कैसे उभरेगा। एनुअल स्पो‌र्ट्स कैलेंडर को देखें, तो पता चलता है कि जिला स्तर के लिए राज्य का बजट आवंटन क्भ्ब्0000 रुपए है। प्रमंडल स्तर का आवंटन 980000 रुपए है।

इस प्रकार बचाया जा रहा है पैसा

आमतौर पर जिला स्तरीय, प्रमंडल स्तरीय और फिर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता होती रही है, पर बजट की कमी की वजह से या कहें कि सीमित बजट के कारण कई खेल की प्रतियोगिता केवल राज्य स्तर पर करायी जा रही है। इसके कारण जिला स्तर पर कोई खिलाड़ी उसमें पार्टिसिपेट नहीं कर सके, तो वह राज्य स्तर में शामिल ही नहीं होगा।

एसोसिएशन भी हैं नाराज

बजट कटौती को लेकर खेल एसोसिएशन भी नाराज है। इस बारे में बिहार बाल बैडमिंटन के सेक्रेटरी गौरीशंकर का कहना है कि इससे खेल को बढ़ावा देना एक खोखली बात होगी। इसमें सोचने वाली बात है कि एक तो पैसा कम और जो खर्च होगा, उसका लाभ भी नहीं मिल पाएगा। वहीं, बिहार राज्य फुटबॉल एसोसिएशन के सेक्रेटरी इम्तियाज हुसैन का कहना है कि स्थानीय स्तर के खेल इससे गौण हो जाएंगे। स्थानीय स्तर की प्रतिभा को बढ़ावा देना मुश्किल हो जाएगा। जानकारी हो कि अगर स्थानीय स्तर पर खेल के ट्रेनिंग आदि की व्यवस्था हो, तो इसे कुछ हद तक संभाला जा सकता था।

प्राधिकरण नहीं ले सकता निर्णय

जानकारी हो कि हर राज्य में खेल प्राधिकरण है और वहां विभाग ही बजट बनाते हैं। झारखंड इसका उदाहरण है, लेकिन बिहार में स्थिति इसके ठीक उलट है। यहां प्राधिकरण केवल प्रस्ताव भेज सकते हैं। बजट की राशि अंतत: वित्त विभाग ही स्वीकृत करेगा। इससे पहले कला, संस्कृति एवं युवा विभाग इसकी समीक्षा करता है। बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के डायरेक्टर कम सेक्रेटरी आशीष कुमार सिन्हा ने माना कि अधिकार सीमित है और प्रस्ताव स्वीकृत होने पर ही खेल योजनाओं को गति मिल सकती है।

स्कूली से लेकर राज्यस्तरीय प्रतियोगिता

किसी भी राज्य में खेल का विकास देखना हो, तो इसमें स्कूली स्तर की खेल व्यवस्था को देखना जरूरी है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्कूलों में प्राय: संसाधनों का अभाव रहता है। ऐसे में ग्राम स्तर पर अगर कोई प्रतिभा हो, तो उसे आगे लाने के लिए डिमांड के मुताबिक खेल की सुविधाएं ही नहीं हैं। विद्यालय खेल के अंतर्गत आवंटन पर नजर डालें, तो पता चलता है कि कुल क्ब्,ख्7ब्भ्फ्भ् रुपए मंजूर है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि इसी में राज्य ओपेन प्रतियोगिता और राष्ट्रीय प्रतिभागिता भी शामिल है। जानकारी हो कि स्थानीय स्तर पर खेल को बढ़ावा नहीं मिल पाने के कारण महिला खेलों की स्थिति सबसे अधिक प्रभावित होगी। इसका कारण है स्थानीय स्तर पर प्रतियोगिताओं कम हो जाती हैं।

प्रस्तावित था, लेकिन रह गए बाहर

जानकारी हो कि ड्रैगन बोट, सिलम्बम, पोलो साइकिल, ड्रांस स्पो‌र्ट्स सहित क्ख् खेलों को नई सूची में शामिल करने की योजना थी, लेकिन कला संस्कृति एवं युवा विभाग ने इस पर अहसमति जताने हुए इसे शामिल नहीं करने का निर्णय लिया। इसके साथ ही जिला स्तर की प्रतियोगिताओं के आयोजन में भी की कटौती की गई। यही वजह है कि पुराने खेल के खिलाडि़यों में भी मायूसी है। जानकारी हो कि खेल कैलेंडर में कुल फ्0 खेल शामिल हैं, अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता तो कुल ब्ख् खेल हो जाते।

बिहार राज्य खेल प्राधिकरण, कला संस्कृति एवं युवा विभाग की नोडल एजेंसी है। विभाग को पांच करोड़ से अधिक का बजट प्रस्तावित किया गया था, पर वित्त विभाग में इसे स्वीकृति नहीं मिल पाने के कारण दो करोड़ का ही बजट है, इसलिए जिला स्तर की प्रतियोगिताओं पर असर पड़ रहा है।

आशीष कुमार सिन्हा, डायरेक्टर कम सेक्रेटरी, बिहार राज्य खेल प्राधिकरण