एलयू की जमीन पर इंक्रोचमेट बढ़ता जा रहा है और यहां के जिम्मेदार अफसर इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। ताजा मामले में लोक निर्माण विभाग ने छात्र संघ भवन से लेकर डीपीए बिल्डिंग तक गोमती बंधे के पैरलल एक दीवार बना डाली है। इसे गोमती किनारे बनने वाली रोड के लिए यूज किया जाना है.
 खास बात यह रही कि इतनी बड़ी दीवार बनने की जानकारी एलयू अथॉरिटीज को तब हुई जब इस कब्जे से रिलेटेड न्यूज समाचारपत्रों में छपी। इसके बाद आनन फानन में एलयू वीसी ने काम रुकवाया पर इसपर अपनी स्थिति एलयू अब तक स्पष्ट नहीं कर सका है। अब यूनिवर्सिटी का कहना है कि रोड बनना पब्लिक इंट्रेस्ट में है इसलिए एलयू ने इसका विरोध नहीं किया। हालाकि रोड बनने के बाद इस दीवार के कारण एलयू ही इस रोड का यूज नहीं कर सकेगा। सिर्फ इसी मामले में नहीं इससे पहले भी एलयू कई मामलों में इन्क्रोचमेंट को लेकर उदासीनता का रवैया अपनाता रहा है.
फिजूल है नजूल
जानकारों की मानें तो लोक निर्माण विभाग ने जिस नियम के तहत सड़क बनाने के लिए खुद को जायज बताया है वह 1862 के बंदोबस्ती अधिनियम के तहत है। इस लिहाज से इन जमीनों को नजूल कहा जाता रहा है। इसी आधार पर बने एक नक्शे का हवाला देकर लोक निर्माण विभाग ने इस जमीन पर एलयू के कब्जे की बात कही और एलयू का निर्माण विभाग चुप बैठ गया.
इसके बाद रोड बनाने के लिए दीवार बनाने का काम शुरू हो गया। बाद में न्यूजपेपर्स में छपी खबरों का संज्ञान लेकर इस काम पर रोक लगाई गई। इससे पहले तक तो एलयू के वीसी को भी इतनी बड़ी दीवार नहीं दिखाई दी जबकि ऑफिस जाते समय यह उनके ठीक सामने पड़ती है.
फिर तो पूरी university अवैध है
एलयू के एक टीचर कहते हैं कि अगर इस आधार पर एलयू का इस जमीन पर दावा खारिज किया जा रहा है तो पूरी यूनिवर्सिटी ही अवैध हो जाएगी। क्योंकि यूनिवर्सिटी की स्थापना ही इसके कई सालों बाद हुई है। स्थापना के पहले ही राजा महाराजाओं की ओर से एलयू को जमीनें दान की गईं। इसके अलावा एक्ट ऑफ पजेसन के हिसाब से भी एलयू का इन जमीनों पर हक बनता है। वहीं एलयू के स्पोक्सपर्सन डा। राजेश मिश्रा के अनुसार एलयू में काफी कुछ नियमों से इतर परंपरा के आधार पर है। कई पेपर्स बाढ़ में या फिर कुछ और कारणों से बेकार हो गए। इन पर नियमों से आगे जाकर सोचना होता है। उन्होंने कहा कि ऐसी सारी प्रापर्टी की जानकारी तो मुझे भी पूरी तरह से नहीं है। हां एलयू का एक्सटेंशन गोमती के किनारे तक बताया जाता है। बाद में बांध बनाने के लिए सार्वजनिक लाभ को देखते हुए जमीन दे दी गई थी और इस मामले में भी कुछ ऐसा ही है पर इसका तरीका गलत अपनाया गया है.
बाहरी संपत्तियों पर कब्जा
एलयू कैंपस के बाहर भी कुछ प्रापर्टी हैं जिनपर एलयू अपना दावा जताता रहा है। इसमें हजरतगंज और चारबाग की डेलीगेसी भी शामिल है.
IT चौराहे पर है बड़ी property
एलयू को पुराने समय से जानने वाले लोग इस बात को बखूबी जानते हैं कि एलयू के मैनेजमेंट हॉस्टल से लेकर आईटी चौराहे के बीच में जमीन का बड़ा हिस्सा यूनिवर्सिटी का है। अब इन जमीनों पर दूसरों का कब्जा है और इनका इस्तेमाल व्यावसायिक उपयोग के लिए हो रहा है। एक पुराने जानकार ने बताया कि शायद आजकल के लोगों को पता भी नहीं होगा कि कभी यहीं पर कुलपति आवास हुआ करता था.
कोई record ही नहीं
एलयू अधिकारियों ने अपनी जमीन पर कब्जा होने के बाद भी कार्रवाई करने में हमेशा देरी की। इस मामले में पड़ताल करने पर सामने आया कि एलयू के पास इन सारी प्रापर्टीज के कागजात पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए किसी भी प्रापर्टी पर दावा करने से पहले उन्हें सारे पेपर्स का इंतजाम करना पड़ता है। बातचीत के दौरान यह भी सामने आया कि कई पेपर्स समय-समय पर जानबूझकर गायब कर दिए गए या फिर गायब करवा दिए गए। एक संदर्भ का हवाला देते हुए कर्मचारी परिषद के महामंत्री संजय शुक्ला बताते हैं कि कुछ समय पहले निर्माण विभाग से संबंधित एक फाइल नहीं मिल रही थी। इस पर एक्शन लेते हुए कई कर्मचारियों को सस्पेंड करने की बात कही जाने लगी। नतीजा सामने था कुछ ही दिनों के भीतर वह फाइल प्रशासनिक भवन तक पहुंच गई। इस मामले में भी प्रशासन की ओर से सख्त कदम उठाए जाने चाहिए.
कैसे होता है कब्जा
अगर एलयू में पुराने मामलों को देखें तो कैंपस के आसपास या फिर अंदर कब्जा करने के लिए पहले तो लोग छोटा मोटा कंस्ट्रक्शन करते हैं और इसके बाद धीरे-धीरे उसी को बढ़ाते जाते हैं। शुरुआती दौर में एलयू इस पर ध्यान नहीं देता तो बाद में उसे इसके लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ता है। यहीं पर अंदर से सांठ गांठ करके और कुछ पेपर्स में यूनिवर्सिटी की लापरवाही का फायदा उठाकर कब्जेदार खुद को सही ठहरा देते हैं.
उठते हैं सवाल
इन सारे मामलों में एलयू की ओर से जो भी देरी हुई उस पर सवाल भी उठ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो कुछ मामलों में भले ही पेपर्स न रहे हों या फिर ध्यान न गया हो, लेकिन कई मामलों में तो संबंधित अधिकारियों की ओर से जानबूझकर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए देरी की गई या फिर पेपर्स गायब हो गए। ताजा मामले को ही लें तो सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में पेपर्स सात महीने पहले ही प्रशासनिक भवन पहुंच चुके थे, लेकिन तब इस संबंध में कोई कार्रवाई करने में इसलिए कोताही की गई क्योंकि कुछ लोगों को फायदा पहुंचाना था। यहां तक कि बताया जा रहा है कि इसमें पैसों का भी लेन देन शामिल है। हालांकि सबूतों के अभाव में कोई भी किसी का नाम लेने को तैयार नहीं है पर जांच की मांग कर्मचारी परिषद के अलावा कई शिक्षक भी कर रहे हैं.
New campus भी घेरे में
लखनऊ विश्वविद्यालय का न्यू कैंपस भी इन्क्रोचमेंट के घेरे में है। कर्मचारी नेताओं से बातचीत के दौरान सामने आया कि एलयू के न्यू कैंपस में बने बैंक के पीछे काफी दूरी तक ऐसी जमीन है जो एलयू बाउंड्री में नहीं है पर वो एलयू की जमीन है। इसके साथ ही दूसरी ओर बाउंड्री पार रेलवे क्रासिंग तक जमीन का एक बड़ा हिस्सा भी इनक्रोचमेंट का शिकार बताया जा रहा है। पर एलयू के आलाधिकारियों का इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया। सूत्रों की मानें तो इस संदर्भ में पर्सनल इंट्रेस्ट के चलते कई अधिकारियों ने विश्वविद्यालय को गुमराह करने के लिए मामले को दबाने में अपनी भूमिका निभाई है.
हटाया गया था अतिक्रमण
इससे पहले एलयू में साइन डाई कराने वाले पूर्व कुलपति प्रो। आरपी सिंह ने एलयू की कब्जे वाली प्रापट्री को वापस लेने का अभियान शुरू किया था। उन्होंने इसके लिए कैंपस के अंदर कर्मचारियों के हातों में जा जाकर अनधिकृत रूप से रह रहे लोगों को बाहर किया था और अवैध घरों को तोड़ कर गिरवा दिया था। लेकिन उसके बाद अभी पिछले साल ही उनमें से एक घर का फिर से निर्माण हुआ और जानकारी मिलने के बाद भी एलयू के सक्षम अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर सके.

विश्वविद्यालय की इन सभी संपत्तियों के रखरखाव के लिए प्रॉक्टर को सक्षम अधिकारी माना जाता रहा है। लेकिन वो और उनके साथ ही निर्माण विभाग और रजिस्ट्रार ऑफिस के कुछ लोगों ने इस पूरे मामले में जानबूझकर देरी की है। इससे संबंधित अधिकारियों की भूमिका के बारे में जांच होनी चाहिए। कर्मचारी परिषद यह भी मांग करती है कि एलयू को अपनी परिसंपत्तियों के संबंध में एक नक्शा जारी करना चाहिए और इसकी पूरी जानकारी लोगों के सामने रखनी चाहिए.
-रिंकू राय, अध्यक्ष, एलयू कर्मचारी परिषद

असल में एलयू एक तरफ तो सबसे डेलीगेसी के नाम पर फीस वसूल रहा है और दूसरी ओर यहां के कई अधिकारी अवैध कब्जेदारों से भी वसूली करते हैं। इसलिए कार्रवाई नहीं हो पाती। नहीं तो मौका मिलते ही किसी न किसी तरह से स्टूडेंट्स से पैसे लेने वाला एलयू इतनी बड़ी प्रापर्टी पर चुप रहे यह समझ से बाहर है.
-शिव भूषण सिंह, पूर्व छात्र नेता, एलयू

रोड बनना एक पब्लिक इंट्रेस्ट का मैटर है इसलिए एलयू इस पर थोड़ा लचीला रुख अपना रहा है। हम इस संबंध में शासन से संपर्क मे हैं कि या तो इसे एलयू की प्रापर्टी माना जाए या रोड बनने की दशा में यूनिवर्सिटी को इसका सही मुआवजा दिया जाए.
-डा। राजेश मिश्रा, प्रवक्ता, एलयू

लखनऊ यूनिवर्सिटी की प्रापर्टी पर इस तरह के कब्जे के पीछे रजिस्ट्रार ऑफिस के वो लोग हैं जो पैसे लेकर पेपर्स गायब करते हैं। मैंने अपने कार्यकाल में कई अवैध कब्जों को हटवाया था। वर्तमान कुलपति को भी चाहिए कि वे इसपर ध्यान दें ताकि कब्जा करने के प्रयासों पर लगाम लग सके.
-प्रो। आरपी सिंह, पूर्व कुलपति, एलयू